करवा चौथ के बहाने…..!
श्रीगंगानगर।[गोविंद गोयल] मुझे नहीं मालूम कि करवा चौथ का व्रत रखने से किसी पति की उम्र बढ़ी या नहीं। मुझे क्या,शायद किसी को भी इस बात का ज्ञान नहीं होगा। हां, इतना जरूर है कि इस देश का कोई त्योहार, पर्व ऐसा नहीं जिसके पीछे सामाजिक रिश्तों का कोई संदेश ना छिपा हो। करवा चौथ भी ऐसे ही एक रिश्ते के प्रति प्रेम, अपनापन दिखाने और खुद को किसी अपने पर न्योछावर कर देने का दिन है। जो नारी के लिए सबसे निकट का होता है। जो अंतिम सांस तक साथ रहता है। जाहिर है यह रिश्ता पति-पत्नी का है।

परंतु अगर पति-पत्नी के रिश्ते में हास-परिहास नहीं है तो फिर ये व्रत व्यर्थ है। पति-पत्नी मेँ अनौपचारिक संवाद नहीं है, या लंबे समय से बंद है तो फिर करवा चौथ का व्रत करने की जरूरत भी नहीं। दोनों के बीच अंतरंग रिश्ते नहीं है। कम है। उदासीन है, तब भी इस व्रत का क्या महत्व ! अंतरण रिश्ते का अर्थ मात्र अभिसार से नहीं है। अंतरंग रिश्तों में और भी बहुत कुछ होता है, चाहे वह किसी की मधुर मुस्कान ही क्यों ना हो। तकरार नहीं है, तब फिर किसके लिए ये व्रत! शब्द तकरार की बात कर रहे हैं, रार की नहीं। रिश्तों मेँ तकरार होना स्वाभाविक है।

क्योंकि जहां अपनापन, लगाव,समर्पण होता है, वहां तकरार होता ही है। इन सबके रहते भी ये व्रत करने वालों को साधुवाद। उस व्रत का अर्घ्य लेने वालों को प्रणाम। उक्त स्थितियों में भी व्रत करना यह दर्शाता है कि पत्नी, पति की कामना कर ही रही है। पति, पत्नी का मान रखने को बार बार छत पर ये देखने के लिये जाता है कि चाँद निकला या नहीं। खैर! कौन किन परिस्थितियों में व्रत करता है, वो जाने और उसके भाव। मगर इस दिन पत्नी अपने शरीर को सुंदर से सुंदर बनाने की कोशिश करती है। घरेलू नुस्खों से लेकर नामी ब्यूटी पार्लर की सेवा लेती है। लेकिन सोचने वाली बात ये है कि क्या केवल तन का सौंदर्य की इस व्रत का मर्म है! क्या इसका उद्देश्य मात्र इतना ही है कि पति को बदन के सम्पूर्ण सौंदर्य से एक बार फिर रूबरू करवाया जाये! या फिर आज के दौर में यह सब एक दूसरे से सुंदर दिखने की होड़! इसमें कोई शक नहीं कि सौंदर्य हर नारी की कामना है। सुंदर से भी सुंदर दिखना उसकी लालसा। पति को रिझाना उसका फर्ज भी है और अधिकार भी। परंतु केवल और केवल तन की सुंदरता को बढ़ा लेना। इस दिन खुद को और निखार लेना, पूरा दिन भूखा रहना। देर रात तक चाँद का इंतजार करना। फिर उसके दर्शन कर भोजन लेना भर ही करवा चौथ है ! या इतने से ही पति की उम्र लंबी हो जाती है!

नहीं! ऐसा नहीं है! पति-पत्नी की उस लंबी उम्र का कोई अर्थ नहीं अगर उनके रिश्ते ठीक नहीं है। उस लंबी आयु का भी क्या मतलब, जिसमें आधी ज़िंदगी एक दूसरे की तरफ पीठ फेर के सोने में गुजरी हो। या फिर मात्र परिवार की इज्जत बचाये रखने के लिये कुढ़-कुढ़ के ज़िंदगी का सफर आगे बढ़ रहा हो। यह व्रत तभी सार्थक होगा जब तन के साथ साथ मन की सुंदरता को भी महत्व दिया जाये। करवा चौथ का महत्व तब और बढ़ जायेगा जब पति पत्नी के बाहरी सौंदर्य के साथ साथ मन के सौंदर्य को भी पुरुष की नजर से देखेगा। उसे समझेगा। वो जमाना और रहा होगा जब महिलाओं के पास शायद करवा चौथ ही सजने सँवरने का बहाना था। आज तो यह नित की दिनचर्या है। इसलिए केवल और केवल शरीर को निखार लेने मात्र से पति की उम्र बढ़ जायेगी, ऐसा लगता तो नहीं। उम्र तब बढ़ी हुई मानी जाये जब पति-पत्नी का सफर हंसते-गाते आगे बढ़ रहा हो। उनके बीच केमेस्ट्री जबर्दस्त हो। दोनों एक दूसरे के मौन को समझते हों। तन के साथ साथ मन से भी संवाद करते हों। ये सब नहीं है तो करते रहो ये व्रत। क्या फर्क पड़ता है। दो लाइन पढ़ो-

जहां होती है मोहब्बत, वहीं होती है तकरार

दूसरे की बीवी से लड़ने, कौन जाता है मेरे यार।