– अकेले बड़ाबाजार में 2 व्यवसायी अब तक कर चुके हैं आत्महत्या
कोलकाता : सरकार भले ही लाख दावे करे कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है, लेकिन बंगाल में करीब 7 लाख मारवाड़ियों के कारोबार और रोजगार पर अब तक ताले लटके हैं। सरकार ने 31 अगस्त तक लॉकडाउन बढ़ा दिया है, जिससे कम से कम इस महीने और इन कारोबारियों को किसी तरह की राहत की उम्मीद नजर नहीं आ रही। कोरोना वायरस को लेकर जारी लॉकडाउन ने जहां लोगों के रोजी रोटी पर ताला लगा दिया। वहीं लाचारी और मजबूरी ने काम के स्वरूप को बदलने को बेबस कर दिया है। लॉकडाउन से पहले तक व्यवसायी वर्ग बड़ी मेहनत कर घर परिवार, जिला, राज्य और देश के विकास में भागीदार बनता था लेकिन आज वही व्यापारी मजबूर बैठा है। लोग दबाव में आ गये हैं। जिससे पूछिये कि क्या हाल है तो जवाब एक ही आता है भाई, मूड खराब है। केन्द्र सरकार ने भले ही लॉकडाउन से व्यवसाय को उबारने के लिए कई घोषणाएं की हों लेकिन ये घोषणाएं वास्तविकता के धरातल पर खरी नहीं उतरीं।

सारे थोक बाजार बंद, धंधा पूरी तरह ठप, यहां काम करने वाले हजारों श्रमिकों की नौकरी भी चली गई: सरकार भले ही लाख दावे करे कि अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है, लेकिन बंगाल में लगभग 7 लाख मारवाड़ियों के कारोबार और रोजगार पर अब तक ताले लटके हैं। सरकार ने 31 अगस्त तक लॉकडाउन बढ़ा दिया है, जिससे कम से कम इस महीने और इन कारोबारियों को किसी तरह की राहत की उम्मीद नजर नहीं आ रही। बीच-बीच में किए जा रहे संपूर्ण लॉकडाउन से रही-सही उम्मीद पर भी पानी फिर रहा है।

कहते हैं बड़ाबाजार मारवाड़ियों से ही चलता है। इसके अलावा बड़े पैमाने पर सराफा का कारोबार मारवाड़ी ही संभालते हैं। बागड़ी मार्केट, सत्यनारायण पार्क, सूता पट्टी, कॉटन पट्टी, बड़तल्ला, बांसतल्ला, राजा कटरा, पोस्ता बाजार, मुक्ताराम बाबू स्ट्रीट, रानी कोठी, नंदराम मार्केट, एमजी रोड मार्केट आदि सबकी पहचान राजस्थान और हरियाणा के मारवाड़ी बाहुल्य बाजारों के रूप में है। ट्रांसपोर्ट के हब ताराचंद दत्त स्ट्रीट, गणेश टॉकिज तथा विदेशों तक से लकड़ी के गोले का बाजार महर्षि देवेंद्र रोड पर भी मारवाड़ी कारोबारी बड़ी संख्या में हैं। इनमें यूपी-बिहार-झारखंड सहित अन्य राज्यों के हिन्दीभाषी कारोबारियों को भी मिला लिया जाए तो यह संख्या लाखों में पहुंच जाएगी। हावड़ा का बजरंग बली बाजार और मानिकतला बाजार में लोहे का पूरा कारोबार भी हिन्दीभाषी ही संभालते हैं। चाहे बैरकपुर शिल्पांचल हो या फिर रानीगंज-आसनसोल की बात की जाये या सिलीगुड़ी ही क्यों न हो। साढ़े चार महीने से न सिर्फ इन लाखों कारोबारियों के कारोबार पर ताला जड़ा हुआ है, बल्कि इनके यहां काम करने वाले और पूरे शहर में जगह-जगह ठेले-खोमचे लगाने वालों का रोजगार भी चला गया है। जूट मिलों के हजारों श्रमिकों को भी रोटी के लाले पड़ गए। यह हाल तो केवल कोलकाता का है, राज्य के बाकी शहरों में भी स्थितियां इतनी ही खराब हैं।

हजारों तो शहर ही छोड़ गए : मार्च में जब लॉकडाउन हुआ था तो सबको लगा था कि 21 दिन की ही तो बात है, 14 अप्रैल से सब खुल जाएगा। लेकिन वो 21 दिन आज 137 दिन बाद भी खत्म नहीं हो पाए हैं। न दुकान खुली, न कारखाने चले तो भला कारोबारी या दुकानदार अपने कर्मचारी-श्रमिक को पैसा कहां से देता? ऐसे में जब न किराया देने को पैसे बचे और न रोजी-रोटी का भरोसा तो हजारों श्रमिक जान जोखिम में डालकर अपने-अपने प्रदेशों को लौट गए। सबसे ज्यादा संख्या बिहार, यूपी और झारखंड लौटने वालों की रही। अब अगर सब कुछ खुल आए और वे लौट भी आएं (इसकी संभावना बहुत कम है कि सब लौटेंगे), तो भी उनकी नौकरी या रोजगार वापस मिल जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
कब तक पेट काटकर देते?: सबकुछ बंद होने के बावजूद कारोबारी-व्यापारी-उद्यमी ने कोई काम-धंधा न होते हुए भी किसी तरह अप्रैल-मई का वेतन तो अपने कर्मचारियों-श्रमिकों को दे दिया, लेकिन जब धंधे पर ही ताला है तो वे भी कितने दिन पेट काटकर उनकी मदद करते? ऐसे में कुछ ने अपने कर्मचारियों की छंटनी की तो कुछ ने तनख्वाह में कटौती कर किसी तरह काम चलाने का प्रयास किया। लेकिन आगे से आगे बढ़ते जा रहे लॉकडाउन के कारण कर्मचारियों-श्रमिकों से बुरे फंसे हैं कारोबारी-उद्यमी। श्रमिक तो कहीं और नौकरी खोज भी लेंगे, लेकिन कारोबारियों ने लाखों रुपये कारोबार में लगा रखे हैं, वे कहां जाएं?

सरकार के प्रयास नाकाफी: सेटर फॉर मॉनिटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी नामक शोध संस्थान का कहना है कि सरकार के प्रयास नाकाफी हैं और ऐसे में निचले स्तर के छोटे कारोबारी तक न कोई खास मदद पहुंच पा रही और न जल्दी हालात सामान्य होते नजर आ रहे। उसके अनुसार देशभर में करीब 30 करोड़ लोगों की पगार में 50 प्रतिशत की कमी आ चुकी है और करीब 10 करोड़ लोगों की नौकरियां या रोजगार छिन गए हैं। इनमें चारों महानगरों की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है तो स्वाभाविक रूप से कोलकाता से भी बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हुए हैं।

– बड़ाबाजार में ही कर चुके हैं दो व्यवसायी आत्महत्या:बड़ाबाजार व्यवसाय का पूरे बंगाल में हब कहा जाता है। आर्थिक गतिविधियों का हालचाल यह इलाका खूब बताता है। लॉकडाउन के 5 महीना व्यवसाय जगत पर कैसा रहा इसका अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि मानसिक परेशानी के कारण दो व्यवसाइयों ने अब तक आत्महत्या कर ली है। जरा, सोचिए जब कोई आत्महत्या का निर्णय लेता है तो कितना मायूस या मजबूर होकर। ये दिल दहलाने वाली तथा स्थितियों को बयां करने वाली घटनाओं में पहली घटना है 24 जुलाई की। 26, बड़तल्ला स्ट्रीट की, जहां स्वर्ण व्यवसायी नरेन्द्र कुमार सुनालिया ने छत से कूद कर जान दे दी। पुलिस ने जांच में बताया था कि वे काफी मानसिक अवसाद में थे। इसी तरह 7 अगस्त को लक्ष्मी नारायण अग्रवाल (50) नाम के व्यवसायी सर हरिराम गोयनका स्ट्रीट स्थित गोदाम में फंदे से झूल गये। उनका बहुत पुराना ग्रोसरी का व्यवसाय था। ये तो हुई बड़ाबाजार की बात। दूसरे स्थान पर भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं तथा यह सोचने को मजबूर कर रही हैं कि कहां से कहां हम आ गये हैं।

– ‘संभलकर व्यापार करें ’-पीआर अग्रवाल: रूपा समूह के चेयरमैन व वरिष्ठ उद्योगपति पी. आर. अग्रवाल ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी का असर पूरे विश्व पर पड़ा है। आर्थिक व सामाजिक प्रभाव हर व्यक्ति पर पड़ा है। व्यापार भी इससे अछूता नहीं है। वर्तमान समय में जरूरत है कि लोग संभलकर व्यापार करें। सबसे पहले आपको अपना जीवन बचाना है, इसके बाद ही कुछ और है। एेसे में व्यापार में सुरक्षा के हर पहलू का ध्यान रखें। आर्थिक मंदी वर्तमान में सबके लिए है, हालांकि स्थिति धीरे-

‘हर क्षेत्र पर हुआ बुरा असर ’-सीताराम शर्मा: उद्योगपति सीताराम शर्मा ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी के कारण परिस्थिति काफी कठिन है। समाज का हर वर्ग इससे जूझ रहा है। रोज कमाने वालों से लेकर उद्योग जगत पर भी इसका असर हुआ है। अंदर ही अंदर लोग घुटन में हैं। नौकरीपेशा वालों पर भी काफी असर पड़ा है। आवश्यकता है कि सरकार वर्तमान समय में लोगों के हित के लिए कुछ कारगर कदम उठाए, ताकि मध्यम वर्ग से लेकर हर वर्ग को परिस्थिति से जूझने में मदद मिले।

‘हर स्तर पर व्यवसाय प्रभावित’-कमल दुगड़: बीएमडी ग्रुप के डायरेक्टर कमल दुगड़ ने कहा कि लॉकडाउन में वैश्विक और स्थानीय स्तर पर व्यावसायिक गतिविधियों को बहुत गहरे तक प्रभावित किया है। पर्यटन, हॉस्पिटैलिटी व सर्विस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के लिए यह समय काफी निराशाजनक रहा। उत्पादन क्षेत्र से जुड़े अनेक संस्थानों की आर्थिक गतिविधियां ठप हो गयी या गंभीर रूप से प्रभावित रही लेकिन केंद्रीय व राज्य सरकारों ने व्यापक रूप से योजनाबद्ध तरीके से अर्थव्यवस्था को सहारा और सहयोग प्रदान किया।
‘धीरज के साथ काम करें’-विक्की सिकरिया : सिकरिया ग्रुप के प्रमुख विक्की राज सिकरिया ने बताया कि यह धैर्य का समय है। कपड़ा, रियल ईस्टेट या फिर सोना-चांदी मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। केन्द्र सरकार ने फंड से संबंधित कई घोषणाएं की थीं लेकिन जब व्यवसायी बैंकों में पहुंचे तो फंड ही नहीं था। रियल ईस्टेट की बात करूं तो यहां भी दो भाग में बंटे हैं व्यवसायी, जिनका बैक अप मजबूत है, वे प्रोपर्टी की कीमत कम नहीं कर रहे और जिनके पास फंड क्राइसिस है वे मोलभाव कर बेच रहे हैं।
‘लॉकडाउन ने मायूस किया’-सिद्धार्थ रूपचंद सावनसुखा: सावनसुखा ग्रुप के एमडी सिद्धार्थ रूपचंद सावनसुखा ने बताया कि कोरोना काल में सारे व्यवसायी एक ही नाव पर सवार है। लोग मायूस है, घर पर रहकर चिढ़े हुए हैं। यह सबको मालूम है कि मारवाड़ी समाज हमेशा से कामकाज में आगे रहने वाला है। लॉकडाउन ने सोच पर भी बंदिश लगा रखी है। फिलहाल मैं यही कहूंगा कि इस वक्त धैर्य धारण करें। आशावादी बने रहें। ज्वेलरी उद्योग को जल्द उबरने की कोशिश जारी है।
‘उत्पादन में आयी है कमी’-ललित बेरीवाल: श्याम स्टील के डायरेक्टर व साल्टलेक संस्कृत संसद के प्रेसिडेंट लिलत बेरीवाल ने कहा कि लॉकडाउन में व्यवसाय व उद्योग दोनों ही मंदा है। हमारे यहां भी प्लांट में केवल 50 प्रतिशत ही उत्पादन हो रहा है। वहीं दुर्गापुर व रानीगंज के प्लांट में मजदूरों की भी समस्या है। उन्होंने कहा कि जिनके घर में बूढ़े व बीमार है वे अपने घरों में सुरक्षित रहे। अभी धैर्य से काम लेने का समय है। सही समय पर सब कुछ ठीक हो जायेगा।

‘व्यवसाय के लिए है बुरा समय ’-सुदेश पोद्दार: होटल एण्ड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ ईस्टर्न इंडिया (एचआरएईआई) के सचिव सुदेश पोद्दार ने कहा कि व्यवसायियों के लिए लॉकडाउन का समय काफी बुरा रहा। व्यवसाय पूरी तरह बैठ गया था। ना उड़ानें चालू थी, ना होटल व रेस्टोरेंट। व्यवसाय को पुनरुद्धार करने में ना जाने कितना समय लगेगा। पहले 3 महीने तो किसी तरह कर्मचारियों को सैलरी का भुगतान किया गया, लेकिन उसके बाद यह भी मुश्किल हो गया।
‘अनिश्चितता से जूझ रहे व्यवसायी’-हसमुख ए शाह: हसमुख ए शाह, चेयरमैन, प्रिमियर टी लिमिटेड ने कहा कि फरवरी/ मार्च 2020 से ही मूल्य वर्धित चाय का निर्यात भारत से कम होना शुरू हो गया था। अनिश्चिततापूर्ण जीवन, लॉकडाउन, कार्गो की प्रतिबंधित आवाजाही, उड़ानों का रद्द होना, होर्का सेगमेंट का बंद होना, ये सब इतनी तेजी से हुआ, जिस पर कोई विश्वास नहीं कर सकता। इससे चाय व्यवसाइयों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।
‘व्यवसाय हो गया है मंदा’-राज कुमार अग्रवाल: भीखाराम चांदमल (राजूजी) के डायरेक्टर राज कुमार अग्रवाल ने कहा कि लॉकडाउन का काफी असर हुआ है। मिठाई के व्यवसाय पर भी इसका गहरा प्रभाव हुआ है। दुकान से 90 प्रतिशत बिक्री कम हो गयी है। व्यवसाय काफी मंदा हो गया है। हर एक समाज ही प्रभावित हुआ है। ऐसे में यह अनिश्चित काल के लिए है जहां व्यवसाय को बंद करना या करवाकर रखना सही नहीं है।
‘ ठोस कदम है जरूरी’-बिनय दुबे : बीडी ग्रुप के चेयरपर्सन बिनय दुबे ने बताया कि कोरोना माहामारी के प्रभाव से व्यवसाय पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है। सबसे अधिक प्रभाव नौकरी पेशा मिडिल क्लास पर पड़ा है। हर क्षेत्र में स्थिति के सामान्य होने में कम से कम दिसंबर तक का समय लग जाएगा। यह अब लोगों की सोच में बैठ गया है। सरकार को लोगों को और जागरुक करना चाहिए।
‘ पिस गया मिडिल क्लास’ -विश्वनाथ अग्रवाल : पोस्ता बाजार मर्चेंट्स एसोसिएशन के महासचिव विश्वनाथ अग्रवाल ने कहा, ‘लॉकडाउन में पोस्ता बाजार भी कुछ दिनों के लिए बंद हो गया था जिस कारण डिस्ट्रिब्यूशन सिस्टम बिगड़ गया था। ऐसे में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्वयं पोस्ता बाजार खुलवाया था। मिडिल क्लास व्यवसायी हो या फिर लोग हो, वे इन सबमें बुरी तरह पिस गये।’ फिलहाल उबरने की कोशिश जारी है।

‘नुकसान से नहीं उबरे हैं व्यवसायी’-अरुण भुवालका : चेम्बर ऑफ टेक्सटाइल, ट्रेड एण्ड इंडस्ट्री (कोट्टी) के अध्यक्ष अरुण भुवालका ने कहा कि व्यावसायिक दृष्टि से लॉकडाउन का समय बहुत ही खराब रहा। इस कारण हर तरह के व्यवसायियों को काफी असुविधा हुई। बिक्री के कई मौसम चले गये, नुकसान इतना हुआ कि अब तक व्यवसायी इससे उबर नहीं पाये हैं। पूरी तरह गैर नियोजित तरीके से लॉकडाउन किया गया था। कपड़ा व्यवसाय पर काफी बुरा असर पड़ा है।