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बीकानेर। बीकानेर के नये न्यायालय भवन की लाईब्रेरी में मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण अधिनियम 2017 (तीन तलाक) विषय पर परिचर्चा रखी गई। जिसमें मुख्य वक्ता के रूप श्रीमति हुमा असद ने बोलते हुए कुरान, हदीस एंव शुरा में तलाक की स्थिति को बताया साथ ही उसकी संविधान के अनुच्छेद 14 व 16 की विवेचना की। कार्यक्रम में सर्वप्रथम सर्वप्रथम श्रीमति हुमा असद ने बताया कि कुरान के अध्याय 2 की आयत संख्या 228 से 240 में तलाक का वर्णन किया है लेकिन विश्ेष यह है कि यह तीन तलाक नही है। इसी प्रकार इस्लामिक ग्रन्थ शुरा के अनुसार अध्याय 4 आयत संख्या 35 में कहा गया है कि यदि पति पत्नी में किसी प्रकार का विवाद होता है तो उसे तीन माह की समयावधि में मध्यस्थ के माध्यम से निपटाना चाहिये और दोनों सहमत हो जाये तो निकाह लगातार रहेगा। इसमें हलाला की आवश्यकता नही है ये तलाक ए हसन है। जिन्होने कुरान एंव अन्य धार्मिक दृष्टान्तों के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के परिपेक्ष में बिल का समर्थन किया।

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इसके बाद कार्यक्रम में वरिष्ठ अधिवक्ता श्री अनवर सैयद ने बोलते हुए कहा कि मुस्लिम विधि के तीन भाग है पहला कुरान यानि अल्ला की वाणी दुसरा हदीश यानि मुहम्मद साहब के द्वारा जो जिन्दगी के नियम बनाये गये है और तीसरा सुन्नत जो उन्होने जीवन के व्यवहार में अनुभव किया। उन्होने कहा कि इन सभी में तलाक नही है। इस प्रकार जो तलाक चलाया जा रहा वह समाज की कुरीति है क्योकि तालिम दो प्रकार की होती है एक दीनी यानि धार्मिक और दुसरी बुनियादी यानि वर्तमान चलन में जो हो। मुस्लिम समाज इन दोनों तालिम से दूर है इसी कारण समाज में यह एक बुराई पनप गई है। जिन्होने अपने वक्तव्य में बिल का समर्थन किया। इसके बाद कार्यक्रम में बीकानेर बार के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री मुमताज भाटी ने कहा कि मुस्लिम समाज इन दोनों तालिम से दूर है इसलिए समाज की डोर चन्द हाथो में चली गई है जो इन्सानियत को नही समझते है और वो अपनी पंचायती बनाये रखने के लिए इसको बनाये रखना चाहते है। उन्होने कहा कि संविधान में बराबरी का अधिकार है वे एक तरफ बोलते है कि मुस्लिमों में निकाह एक प्रकार की संविदा है फिर उस संविदा को एक तरफा तोडने का अधिकार एक ही पक्ष को क्यो दिया जा रहा है। इसके बाद उन्होने कहा कि मुस्लिम समाज को बनाये रखने के लिए इस प्रकार के बिल की आवश्यकता है। इसके बाद कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री ओम आचार्य ने बिल के प्रारूप के सम्बन्ध में कहा कि जब अधिवक्ताओं का यह कार्यक्रम है और बिल पर चर्चा हो रही है तो चर्चा भी विधिक तौर पर ही होनी चाहिये। उन्होने कहा चुंकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीन तलाक को शुन्य घोषित कर दिया गया है और फिर भी कोई तीन तलाक देता है तो यह कार्य अविधिक माना जायेगा और उसके लिए दण्ड का प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार बिल में मुस्लिम पति शब्द नही लिख कर व्यक्ति शब्द लिखा गया है। यानि दोनों में से एक पक्ष यदि दुसरे धर्म का हो तो भी यह बिल प्रभावी होगा। इसलिए स्पष्ट है कि विधायिका इस मसले पर कितनी गम्भीर है और हर छोटी छोटी बात पर ध्यान दिया गया है और इसे जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिये। कार्यक्रम में इसके बाद बार अध्यक्ष श्री रविकान्त वर्मा में अपने विचार रखे तथा अधिवक्ता परिषद के संयोजक श्री हरिनारायण सारस्वत ने सभी आगन्तुको का धन्यवाद दिया। कार्यक्रम का संचालन श्री अविनाश व्यास ने किया और उन्होने बिल की परिचर्चा को सारगर्भित करते हुए कहा कि इस बिल में दण्ड का प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की पालना नही करने के लिए किया गया है और इसलिए उसे लागू करना चाहिये। कार्यक्रम में अन्य कई वक्ताओं जिनमें कमलनारायण पुरोहित, विरेन्द्र आचार्य, धनराज सोनी, किशोर सिंह शेखावत शैलेष गुप्ता ने बिल के सम्बन्ध में अपने अपने विचार रखे तथा एक प्रस्ताव बना कर भेजने का कहा।