प्रयागराज कुंभ में ऐसे कई बाबा आए हुए हैं, जो अपने आप में एक अनोखा हैं। ऐसे ही एक बाबा हैं सालिकराम महाराज, जिन्हें लोग ‘वनमानुष बाबा’ के नाम से बुलाते हैं। ‘वनमानुष बाबा’ का दावा है कि जब वो 8 साल के थे, तभी उन्हें सपने में मां काली ने दर्शन दिए थे, जिसके बाद से उनकी जिंदगी ही बदल गई। ‘वनमानुष बाबा’ एक ऐसी गाड़ी में रहते हैं, जो बिल्कुल किसी नई-नवेली दुल्हन की तरह सजी हुई है।

‘वनमानुष बाबा’ बताते हैं कि 24 घंटे में से वो सिर्फ 3 घंटे ही आराम करते हैं और बाकी के समय में माता काली की पूजा करते हैं। मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले में बरमान घाट के रहने वाले ‘वनमानुष बाबा’ सुई से अपने शरीर पर रक्त चंदन से धारी बनाते हैं। वह बताते हैं कि साल 1996 से वह सुई की नोंक से शरीर पर रक्त चंदन लगा रहे हैं, जबकि पहले वो सिर्फ पूजा करते थे। उनका कहना है कि मां काली ने उनसे ये करने का कहा है। ‘वनमानुष बाबा’ का कहना है कि मां काली ने पहले उनसे दिन में तीन बार 11 धारी का लेप लगाने को कहा था।

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लेकिन बाद में जब उन्होंने सिंहस्थ में मां की आराधना की तो उससे प्रसन्न होकर काली माता ने उनसे 28 धारी का लेप लगाने को कहा। तब से वह हर सुबह 5 बजे सुई से अपने शरीर पर रक्त चंदन का लेप लगाते हैं। कुंभ में विदेशी श्रद्धालु भी ‘वनमानुष बाबा’ के दर्शन के लिए आते हैं।

वह 4 बार से कुंभ और अर्धकुंभ में अपने रथनुमा वाहन से आ रहे हैं, जबकि इससे पहले वो अन्य साधनों से यहां आते थे। वह बताते हैं कि उनके रथ में दोनों तरफ शेर बने हैं, जिसे उन्होंने मां काली के आदेशानुसार बनवाया है। ‘वनमानुष बाबा’ बताते हैं कि उनके रथनुमा वाहन में मां काली और भगवान कृष्ण समेत सभी देवता विराजमान हैं।

ये बाबा जमीन पर कभी भी अपना पैर नहीं रखते हैं और हमेशा अपनी गाड़ी में ही रहते हैं। वह बताते हैं 2017 के सिंहस्थ में भगवान गणेश उनके सपने में आए थे और कहा था कि तुम्हें इसी रथ में रहना है। बाबा सिर्फ बरमान घाट के आश्रम में ही आकर अपनी गाड़ी से उतरते हैं, लेकिन यहां भी वो जूती पहने रहते हैं। ‘वनमानुष बाबा’ शादीशुदा हैं। उनकी पत्नी और एक बेटा है। खास बात ये है कि बाबा जहा-जहां जाते हैं, अपनी पत्नी को भी अपने साथ गाड़ी में लेकर चलते हैं। वह दिन से रात तक हर 3 घंटे में स्नान और पूजा पाठ करते हैं।

उसके बाद माता का बताएनुसार भजिया का प्रसाद खाते हैं और चाय पीते हैं। बाबा बताते हैं कि उन्होंने 12 साल तक नंगे पैर घूमकर गुरु की तलाश की, लेकिन मां काली की पूजा करने के चलते उन्हें किसी ने भी अपने शिष्य के रूप में स्वीकर नहीं किया। ऐसे में उन्होंने मां काली को ही अपना गुरु बना लिया।