जयपुर। विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी चयन के लिए आमेर में चल रहे बीजेपी के महामंथन के दूसरे चरण के अंतिम दिन जयपुर शहर की नौ और देहात की 10 सीटों समेत सीकर की आठ सीटों यानी 27 सीटों पर मंथन होगा। इस पूरे महामंथन में लगभग 10 हजार से ज्यादा वर्तमान और पूर्व जनप्रतिनिधियों के साथ पार्टी पदाधिकारी रायशुमारी कर रहे हैं। मंथन के दूसरे दिन रविवार को भी काफी हलचल रही। रविवार को अजमेर संभाग के भीलवाड़ा की सात व नागौर की दस सीटों समेत जयपुर संभाग के झुंझुनू की सात और अलवर की 11 सीटों पर यानी कुल 35 सीटों पर मंथन हुआ। महामंथन में झुंझुनूं के पिलानी से विधायक सुंदरलाल ने राजनीति से संन्यास की घोषणा करते हुए कहा के वे 86 साल के हो गए हैं, लिहाजा चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन उन्होंने अपने पुत्र कैलाश के लिए टिकट मांगी तो विरोधी धड़े ने रायशुमारी में ही पर्चें बंटवा दिए और कहा कि बेटे को उम्मीदवार बनाया तो पार्टी 50 हजार वोटों से हारेगी। वहीं नागौर के डेगाना से सिर्फ मंत्री अजय किलक का नाम ही आया। दूसरे नेताओं ने वहां दावेदारी नहीं जताई। पदाधिकारियों ने वी. सतीश के सामने सर्वसम्मति से किलक का नाम रखा। इससे डेगाना से किलक का टिकट तय माना जा रहा है।
रायशुमारी में सीएम वसुंधरा राजे ने कहा हमारी योजनाएं कांग्रेस को भी अच्छी लगने लगी है। कांग्रेस के बड़े नेता कह रहे हैं सरकार बनने पर वो बीजेपी की योजनाओं को चालू रखेंगे। राजे ने दावा किया कि बीजेपी की सरकार ही आएगी और हम ही हमारी योजनाएं चलाएंगे। कार्यकर्ता मिल बैठकर आपस के झगड़े खत्म करे। लाइक-डिसलाइक से ऊपर उठें।
रायशुमारी में प्रवेश को लेकर एक बार धा मुक्की भी हुई। प्रवेश नहीं देने पर झुंझुनूं के कार्यकर्ताओं ने हंगामा कर दिया। कईयों ने प्रवेश पत्र फाड़कर गुस्सा निकाला। बाद में बड़े नेताओं ने बीच बचाव कर मामले को शांत किया। रायशुमारी बैठक में रविवार को भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष मदन लाल सैनी ने पार्टी का टिकट मांग रहे उम्मीदवारों को चुनावों का गुर सिखाते हुए कहा कि हम कोई सरकार या एमएलए बनाने का काम नहीं कर रहे हैं।

आपराधिक अतीत वाले दावेदारों पर भाजपा में मचा घमासान

जयपुर बीजेपी में आपराधिक अतीत वाले दावेदारों पर घमासान छिड गया है। आपराधिक पृष्ठभूमि वाले करीब आधा दर्जन दावेदारों पर आपत्ति जताई गई है। इनमें हनुमानगढ़ के भादरा से एक हिस्ट्रीशीटर की दावेदारी पर विरोध किया गया है। यहां दुष्कर्म और हत्या जैसे आरोपों में नामजद रहे एक जातीय नेता की दावेदारी का विरोध जताया गया है। यह नेता आनंदपाल प्रकरण से लेकर अब तक कई मामलों में बीजेपी के खिलाफ आंदोलन चलाता रहा है। झालावाड़ के अकलेरा से टिकिट के एक प्रमुख दावेदार पर भी ऐतराज जताया जा रहा है। इस प्रबल दावेदार पर भी गंभीर किस्म के अपराध के दो दर्जन मामले चल रहे हैं वहीं झुंझुनू सीट पर भी दावेदारी ठोक रहे एक हिस्ट्रीशीटर के नाम पर भी मतभेद उभरा है। जातीय गणित के लिहाज से मजबूत इस दावेदार पर भी अपराध के कई संगीन आरोप हैं।
अपराधियों को बाहर रखने की पैरवी
इसके अलावा मारवाड़ में बाड़मेर जिले की शिव विधानसभा सीट से भी एक अपराधी को टिकिट देने पर विवाद उभरा है। खुद को संघ का करीबी बताने वाले इस दावेदार पर हत्या और जेल से फरार होने जैसे गंभीर आरोप हैं। रामसर थाने के हिस्ट्रीशीटर रहे इस दावेदार पर शराब तस्करी के कई मुकदमे चल रहे हैं। ऐसे में संघ ने आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहे लोगों को राजनीति से बाहर रखने के लिए यह कदम उठाया है।

जिलाध्यक्षों को भी चुनाव लडवा सकती है भाजपा

जयपुर राज्य में विधानसभा चुनावों के लिए प्रदेश भाजपा फूंक फूंक कर कदम रख रही है। मानवेन्द्र सिंह के कांग्रेस में शामिल होने के बाद भाजपा पदाधिकारी और आलाकमान अन्य नेताओं की नाराजगी से बचने का रास्ता निकाल रहें हैं। इस कडी में हाल ही जिलाध्यक्षों को चुनाव नहीं लडवाने के निर्णय पर भी मंथन शुरू कर दिया है। चुनाव प्रबंधन समिति के इस निर्णय के विरोध में अधिकांश जिलाध्यक्ष अपने पद से इस्तीफा देने की तैयारी में हैं। ऐसे में अब पार्टी ने साफ छवि और जनाधार वाले जिलाध्यक्षों को टिकट देने का मन बनाया है।
ज्ञात हो कि गत माह राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की अध्यक्षता में हुई चुनाव प्रबंधन समिति की पहली बैठक में निर्णय किया गया था कि जिलाध्यक्षों को टिकट नहीं दिया जाएगा, अगर कोई चुनाव लडऩा चाहता है तो उसे पद से इस्तीफा देना होगा। इस्तीफा देने के बाद भी टिकट पक्का नहीं माना जाएगा। पार्टी के इस निर्णय का जिलाध्यक्षों ने अंदरूनी विरोध शुरू कर दिया था और कई जिलाध्यक्ष तो अपना इस्तीफा देने को तैयार हो गए थे। ऐसे में अब पार्टी ने बीच का रास्ता निकालते हुए जिताऊ जिलाध्यक्षों को टिकट देने की तैयारी की है। इसके लिए हाल ही में विधानसभा चुनाव प्रभारी और केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने जिलाध्यक्षों की बैठक में कहा था कि जो जिलाध्यक्ष जिताऊ होगा तो उसे जरूर टिकट दिया जाएगा। संगठन के लिए जिलाध्यक्ष का पद बहुत महत्वपूर्ण है और जिले की राजनीति जिलाध्यक्ष के इर्द गिर्द ही घूमती है। उम्मीदवारों के प्रचार-प्रसार, नेताओं के दौरे, झंडे-बैनर, बैठकें सहित संगठन के महत्वपूर्ण कार्य जिलाध्यक्ष के हाथ में ही होते हैं। ऐसे में जिलाध्यक्षों की नाराजगी का खामियाजा पार्टी को भुगतना पड सकता था। इसी वजह से पार्टी को अपने निर्णय से पीछे हटना पड़ा है।

राजस्थान में वसुंधरा गुट को पटखनी देता शाह खेमा

जयपुर। राजस्थान में विधानसभा चुनावों के रणभेरी बजते ही अब बडे नेताओं ने अपनी दुश्मनी निकालने का रास्ता भी निकाल लिया है। इन चुनावों के बीच ही शाह खेमा वसुंधरा गुट को पटखनी देेने में जुट गया है। पिछले काफी दिनों से मीडिया और सत्ता के गलियारों में इस उठापटक को महसूस भी किया जा रहा था। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा रहा है कि गत दिनों विधानसभा चुनाव के प्रभारी
प्रकाश जावड़ेकर से राज्य में टिकट बंटवारे को लेकर पूछा गया था जावड़ेकर ने कहा कि पार्टी का चेहरा वसुंधरा राजे ही हैं वोट भी नरेंद्र मोदी और राजे के नाम पर ही मांगे जाएंगे लेकिन जिनके लिए वोट मांगे जाएंगे उन्हें तय करेंगे ‘हम’। यानी समझा जाए कि उम्मीदवारों के चयन का जिम्मा सिर्फ वसुंधरा राजे के पास नहीं होगा। गौरव यात्रा में सक्रिय रही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मीडिया के परिदृश्य से गायब सी हो गई हैं, इससे कयास लगाए जा रहे हैं कि राजस्थान में बड़े नेता ही बीजेपी को हराने में जुट गए हैं।
सितंबर का पूरा महीना कर्मचारियों की हड़ताल में कुर्बान हो गया था कर्मचारियों को अपनी मांगों को पूरा कराने के लिए यही मुफीद समय लगा था कोई भी सरकार कम से कम चुनाव के समय अपने लाखों कर्मचारियों की नाराजगी का रिस्क नहीं ले सकती। लेकिन बीजेपी जानबूझकर कर्मचारियों की नाराजगी का रिस्क ले रही है, यह भी एक सोची समझी रणनीति के तहत किया गया कार्य है। राजस्थान में सरकारी कर्मचारियों का प्रभाव है, आज भी अनगिनत लोग वोट डालने से पहले गांव के ‘मास्साब’ (टीचर), ‘डॉक्स्साब’ (डॉक्टर) या ‘कंपोडर साब’ (नर्सिंग स्टाफ) से सलाह जरूर लेते हैं। वसुंधरा राजे सरकार ने कर्मचारियों को अपने हाल पर छोड़ दिया रोडवेज कर्मचारियों को बता दिया गया है कि सातवें वेतन आयोग को लागू करने की उनकी मांग को नहीं माना जा सकता है।
यहां तक कि जयपुर में चलने वाली लो-फ्लोर बस सर्विस के कई ड्राइवर-कंडक्टरों को तो सस्पेंड तक कर दिया गया।सस्पेंशन और सख्ती के डर से फिलहाल ये कर्मचारी काम पर लौट गए लेकिन कर्मचारी संगठनों ने कसम खा ली कि चुनावों में भाजपा को सबक सिखाया जाएगा।
दरअसल, वसुंधरा राजे और पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के बीच सबकुछ ठीक नहीं है, पहले प्रदेश अध्यक्ष को लेकर मामला गर्माया। किसी तरह सुलझा तो अमित शाह और वसुंधरा राजे के अलग-अलग कार्यक्रमों पर लोगों का ध्यान गया और फिर जिस तरह अमित शाह ने अपनी टीम को राजस्थान में सक्रिय किया है, उसने भी वसुंधरा को खासा धक्का पहुंचाया है।
राजस्थान प्रभारी के रूप में वसुंधरा राजे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की नियुक्ति चाह रही थी, लेकिन पार्टी ने प्रकाश जावडेकर को लगा दिया। इससे पहले, अमित शाह ने राजे विरोधी ओम माथुर को भी अघोषित रूप से राजस्थान में ‘इन्वॉल्व’ कर दिया है (प्रदेशाध्यक्ष मदन लाल सैनी भी माथुर गुट के ही माने जाते हैं) बाद में टिकटों का फैसला करने के लिए शाह ने केंद्रीय मंत्रियों गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुन मेघवाल को अहम जिम्मा सौंप दिया। कुल मिलाकर अब टिकट वितरण में वसुंधरा राजे या उनके गुट की नहीं चलेगी। 2003 और 2013 के चुनावों में टिकट वितरण का पूरा काम वसुंधरा राजे के निर्देशन में ही किया गया था। बताया जा रहा है कि इससे राजे गुट को इस बार जीतने की स्थिति में मुख्यमंत्री बदले जाने की आशंका हो गई है राजनीति का एक सिद्धांत ये भी है कि अगर थाली आपके आगे से हटाने की कोशिश की जा रही हो तो उसे बिखेर दें, इससे पहले कि वो दूसरे के सामने सजाई जाए।(PB)