बीकानेर। लगभग चार दशक से लिखते हुए भी आज तक मैं स्वयं को एक नौसिखिया लेखक मानता हूं। पढ़- पढ़ कर लिखना सीखा और आज भी साहित्य, समय और समाज को पढ़- गुनकर सीख रहा हूं और लिख रहा हूं । अब तक मैंने जो लिखा है, उससे पूरी तरह संतुष्ट नहीं हूँ। मन में चिंता है कि साठ पार हो चुका हूं , अब मेरे पास समय कम बचा है और लिखना बहुत शेष है। शायद अब भी कुछ ऐसा लिख – रच सकूं कि जिसके मार्फत पाठकों के मन में सदैव जिंदा रह सकूं । वरिष्ठ व्यंग्यकार और कथाकार बुलाकी शर्मा ने मुक्ति संस्था और श्री नेहरू शारदा पीठ पीजी महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘ रूबरू ‘ कार्यक्रम में ये विचार व्यक्त किए।

स्थानीय जस्सूसर गेट स्थित एनएसपी कॉलेज के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में बुलाकी शर्मा ने अपने रचना संसार और रचना प्रक्रिया से अवगत कराते हुए कहा कि वे रचना को बेटे के रूप में नहीं वरन बेटी के रूप में देखते हैं । बेटे की गलतियों को प्राय: अनदेखा कर दिया जाता है किंतु बेटियों से पूरी तरह संस्कारित होने की अपेक्षा की जाती है । इसी तरह वे अपनी रचनाओं को हर दृष्टि से पूरी तरह साहित्यिक रूप से संस्कारित करके ही पाठकों के समक्ष रखने की कोशिश करते हैं और उस रचना पर पाठक जो प्रतिक्रिया देते हैं, उसे सहज भाव से स्वीकार करते हैं क्योंकि वे पाठक को ही सच्चा आलोचक मानते हैं । उन्होंने हिलोरो, लसनियो, मर्दजात आदि अपनी राजस्थानी कहानियों की रचना प्रक्रिया के बारे में बताया और कहा कि कोई रचना कब कहां से मिल जाए, पहले से कोई नहीं बता सकता । उन्होंने कहा कि रचना लिख चुकने के बाद वे उसके पहले पाठक बनते हैं और एक तटस्थ आलोचक की तरह जांचते- परखते हैं फिर भी खरा आलोचक पाठक को मानते हैं ।

 

कथापुरुष यादवेंद्र शर्मा ‘ चंद्र ‘ को अपना साहित्यिक अभिभावक और गुरू के रूप में सादर स्मरण करते हुए बुलाकी शर्मा ने कहा कि बचपन में चन्द्रजी को पढ़ते हुए उनके मन में लिखने की ललक पैदा हुई और उन्होंने साहस करके 14- 15 वर्ष की उम्र में कच्ची – पक्की कहानियां लिखनी शुरू कर दी और वे राष्ट्रीय समाचार पत्रों में छपीं तो सृजन के प्रति उनका आत्मबल बढ़ा। उपस्थित श्रोताओं ने बुलाकी शर्मा से उनकी विविध आयामी सृजन यात्रा पर अनेक सवाल किए । स्वागत उद्बोधन में नेहरू शारदा पीठ के प्राचार्य डॉक्टर प्रशांत बिस्सा ने कहा कि महाविद्यालय में विद्यार्थियों और साहित्यकारों के बीच इस तरह का आयोजन नगर में साहित्यिक वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा । मुक्ति के सचिव कवि – कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताते हुए कहा कि नगर में इस तरह का यह पहला आयोजन है । इस कार्यक्रम में आज वरिष्ठ साहित्यकार बुलाकी शर्मा के रचना कर्म से रूबरू हुए हैं तथा इसके पश्चात प्रतिमाह रूबरू कार्यक्रम के अंतर्गत हम ऐसे रचनाकार से संवाद कर सकेंगे जो एक दशक से निरंतरता सृजनरत है । उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि युवा वर्ग नगर के साहित्यकारों के रचना संसार और उनकी रचना प्रक्रिया से अवगत हो ताकि उनमें साहित्यिक संस्कार पैदा हो सके । उन्होंने कहा कि नगर के सक्रिय साहित्यकारों के साथ ही बाहर के रचनाकारों से भी संवाद होगा और यह कार्यक्रम एक वर्ष तक चलेगा । साहित्य अकादेमी नई दिल्ली में राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘ ने कहा कि संगीत और नाटक में जैसे रियाज जरूरी है वैसे ही साहित्य में भी रियाज यानी निरंतर सृजन किया जाना जरूरी है ।

रूबरू कार्यक्रम में यह कोशिश रहेगी कि जो साहित्यकार निरंतर सृजन कर रहे हैं, उनसे पाठक और साहित्य समाज प्रति माह रूबरू हो । उन्होंने कहा कि अपने अग्रज रचनाकारों की रचना यात्रा से रूबरू होकर ही युवा रचनाकार संस्कारित हो सकता है ।मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार लूणकरण छाजेड़ ने कहा कि आज का यह कार्यक्रम उनके लिए विशेष उपलब्धिमूलक है क्योंकि वह और बुलाकी शर्मा सहपाठी रहे हैं और यह भी रोचक और रोमांचक है कि हम दोनों वाणिज्य के विद्यार्थी रहे हैं इसके बावजूद धारा का विरुद्ध चलते हुए हम काम कर रहे हैं । बुलाकी शर्मा साहित्य में और वे पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर रहे हैं । उन्होंने अपेक्षा की कि आगे जब भी रूबरू कार्यक्रम हो, तब उस रचनाकार की रचनाओं को पढ़कर पूरी तैयारी से आएं ताकि उनके रचनाकर्म से संबंधित जिज्ञासाएं ज्यादा गंभीरता से रखी जा सके । युवा कवि – पत्रकार हरीश बी. शर्मा ने संयोजकीय वक्तव्य में कहा कि कविता के अलावा गद्य की लगभग सभी विधाओं में सृजनरत बुलाकी शर्मा की राजस्थानी में दस और हिंदी में सतरह पुस्तकें अब तक प्रकाशित हैं। साहित्य अकादेमी नई दिल्ली के सर्वोच्च पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हैं ।

रूबरू कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि सरल विशारद, नवनीत पाण्डे, राजाराम स्वर्णकार, चन्द्र शेखर जोशी,जनमजेय व्यास, कमल रंगा, डॉ. प्रमोद कुमार चमोली, डॉ. उषा किरण सोनी, डॉ. रेणुका व्यास, डॉ. नमामीशंकर आचार्य, मोइनुद्दीन कोहरी,अजय जोशी ,महेंद्र जैन ,सरल विशारद, हजारी देवड़ा, अविनाश व्यास, के के पुरोहित, आत्मा राम, नगेन्द्र किराड़ू , रूपचन्द्र तिवारी, मालचन्द तिवारी मनूजी, जाकिर भाई, रंगा राजस्थानी, अमित गोस्वामी, ब्रजेन्द्र गोस्वामी, कासिम बीकानेरी, मनीष जोशी, इसरार हसन कादरी, मूलचंद बोहरा, शिवशंकर व्यास, मोहम्मद इरशाद, अविनाश व्यास सहित अनेक लेखकों – श्रोताओं ने बुलाकी शर्मा से सवाल किए। कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार श्री हरीश बी शर्मा ने किया तथा युवा राजस्थानी साहित्यकार- आलोचक डॉक्टर गौरीशंकर प्रजापत ने आगंतुकों का आभार प्रदर्शन किया ।