खाटूश्याम बाबा लक्खी मेला : उमड़ा आस्था का सैलाब
खाटूश्याम बाबा लक्खी मेला : उमड़ा आस्था का सैलाब
खाटूश्याम बाबा लक्खी मेला : उमड़ा आस्था का सैलाब

जयपुर। पांच दिन चलने वाले खाटूश्यामजी का लक्खी मेला।  इस मेले में देशभर से लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। लाखों की भीड़ में कुछ चेहरे ऐसे हैं, जो अपना बिजनेस, नौकरी से छुट्टी लेकर मेले के पांच दिन में लाखों  की भक्तों की सेवा में करोड़ों रुपए खर्च जाते हैं। इनमें डॉक्टर, इंजीनियर और कई कारोबारी शामिल हैं, जो भंडारों के जरिए श्रद्धालुओं के जरिए सेवा करते आये है।

रींगस से खाटू के बीच करीब 100 भंडारे हैं। जिनमें दो हजार लोग दूसरे राज्यों से आए हैं। श्रद्धालुओं की सेवा में पांच दिन में करीब 15 करोड़ रुपए खर्च होते हैं। रींगस में सबसे बड़ा भंडारा श्रीश्याम परिवार संघ भंटिंडा का है। जनरल सेक्रेटरी राजीव शर्मा के अनुसार, भंडारे में 500 लोग भक्तों की खाने-पीने और स्वास्थ्य सेवाओं का ध्यान रखते हैं। दो लाख श्रद्धालुओं पर एक करोड़ रुपए तक खर्च करते हैं। इन्हें श्रद्धालुओं के पैर दबाने, जूठी पत्तल उठाने में कोई गुरेज नहीं है। इंटीरियर डेकोरेशन कारोबार से जुड़े राजीव का कहना है कि भक्तों की सेवा ही श्याम की सेवा है।
पेशे से डॉक्टर अरुण, थके भक्तों के पैरों की मालिश कर रहे थे। पूछने पर कहते हैं-मैं तो मेरे शीश के दानी की सेवा कर रहा हूं। श्रीश्याम चरण ट्रस्ट लुधियाना के भंडारे में करीब 250 लोग कपड़ा कारोबार व टैक्सटाइल्स उद्योग से जुड़े हैं जो दिनरात भक्तों की सेवा में जुटे हैं। कैमिकल फैक्ट्री चलाने वाले लक्ष्मी सिंघानिया ने बताया कि भंडारे में मेडिकल सुविधाओं पर करीब 20 लाख रुपए का खर्चा होता है। इसमें इंदौर, दिल्ली, ग्वालियर से सैकड़ों लोग सारा काम छोड़कर सेवा के लिए आते हैं।
दिनेश अग्रवाल। देवली में मार्बल कारोबार छोड़कर मेले के दौरान श्याम भक्तों को नाश्ता व खाना देने में जुटे हैं। कारोबार को लेकर फोन भी आता है तो जवाब होता है-मेले के बाद फोन करना। पूछने पर कहते हैं- कारोबार तो सालभर ही करते हैं। आज जहां है, बाबा की वजह से ही है। देवली श्याम परिवार संस्था के 165 लोग लाखों श्रद्धालुओं के नाश्ते और खाने में जुटे हैं। यहां पर परिवार की महिलाएं ही खाना तैयार करती हैं। संस्था के प्रमोद मंगल बताते हैं, भंडारे में करीब नौ लाख रुपए खर्च होंगे।
लक्खी मेला अनूठी आस्था के साथ सर्वश्रेष्ठ इवेंट मैनेजमेंट का भी उदाहरण है। खाटू की आबादी करीब 14 हजार है। मेले में आते हैं 20 से 25 लाख श्रद्धालु। फिर भी किसी भी भक्त को कोई परेशानी नहीं होती। 25 लाख लोगों को आराम से बाबा के दर्शन हो जाते हैं और व्यवस्थाएं प्रभावित नहीं होती, इसके पीछे बड़ी वजह है, श्रद्धालुओं का अपना प्रबंधन।
दर्शन:-ग्यारस पर दर्शनों में करीब सात घंटे का वक्त लगता है। एक मिनट में दर्शन करते हैं करीब 400 श्रद्धालु। श्याम सेवक भजन व जयकारों से हौसला बढ़ाते हैं। ताकि थकावट न हो।
रींगस से शुरू होता है मेला। यहां देशभर के श्रद्धालु एक परिवार बन जाते हैं। एक मिनट में एक हजार से अधिक श्रद्धालु प्रवेश करते हैं। लाइन नहीं तोड़ते। खाटू तक 16 किमी सफर है।
पेयजल:-मेले में 60 लाख पाउच और करीब 10 ट्रक पानी की बोतलें इस्तेमाल होती हैं। पाउच पैकिंग के लिए मंदिर परिसर में मशीन है। लंबी लाइनों में जगह-जगह होता है पानी का इंतजाम।
मंदिर के द्वार पर आधा दर्जन से ज्यादा कमेटी के लोग खड़े रहते हैं। ये बाबा के जयघोष के साथ जल्द अंदर जाने को कहते हैं। भीड़ कंट्रोल करने के लिए हर कदम पर पांच स्वयंसेवक।
मेहमान:-मेले के दौरान चार-पांच दिन हर घर में मेहमान आते हैं। इसलिए इन्हें पूरी व्यवस्था पहले करनी पड़ती है। पांच दिन में औसत हर घर में 30 से 70 मेहमान आते हैं।
मंदिर में पहले से ही प्रसाद थैलियों में पैक किया जाता है। प्रसाद बनाने से लेकर पैकिंग व भक्तों को देने में ही 600 लोग लगे हैं। 25 क्विंटल से ज्यादा प्रसाद वितरित होता है।
सुरक्षा:-यात्रियों की सुरक्षा के लिए 1500 स्काउट गाइड, एक हजार से ज्यादा स्वयंसेवक और 3,000 सुरक्षाकर्मी लगाए गए हैं। जो कदम-कदम पर व्यवस्थाएं संभालते हैं।
14 हजार की आबादी वाले खाटू कस्बे में कैसे जुटते हैं 20 से 25 लाख श्रद्धालु। वो भी बिना असुविधा के। यह परिवारवाला मैनेजमेंट है। यह सिखाता है कैसे हम एक साथ रह सकते हैं।
पंरपरा 15 लाख में सिर्फ एक निशान बाबा को चढ़ेगा | हर बार 103 साल पुरानी रस्म निभाई जाती है। खाटू के दरबार में 15 लाख निशान चढ़े हैं। सिर्फ सूरजगढ़ का निशान बाबा को चढ़ता है, जो बाद में मंदिर के शिखर पर फहराया जाता है।