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बीकानेर। धर्म का काम बुराइयों को समाप्त करना है चाहे वह व्यक्ति में हो, समाज में या राजनीति में हो। इन सभी में व्याप्त बुराइयां जैसे बाल विवाह, वृद्ध विवाह, दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, विधवाओं पर होने वाली त्रासदी, अशिक्षा, मृत्युभोज, शोक अभिव्यक्ति आदि सामाजिक कुरूढिय़ां को दूर करना ही धर्म है। यह कार्य आचार्य तुलसी ने किया इसलिए क्रांतदृष्टा कहलाए। यह विचार गंगाशहर स्थित नैतिकता का शक्तिपीठ पर आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि पर आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता संगीता सुराणा ने कही। उन्होंने कहा कि की भ्रान्ति से मुक्ति का अभियान ही व्यक्ति को उन्नति की और ले जाता है। जीवन में असफल व्यक्ति के पास आलोचनाओं के अलावा अन्य कोई कार्य नहीं होता। आचार्य तुलसी ने नारी उत्थान का महत्वपूर्ण अवदान दिया।

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आचार्य तुलसी के अवदानों से कुरूढिय़ों दूर किया जिससे समाज को नया मोड़ और नई दिशा प्रदान की। उन्होंने महामानव आचार्य तुलसी के प्रति विनम्र श्रद्धाभिव्यक्ति दी। शासनश्री साध्वीश्री मधुरेखाजी ने कहा कि 50 वर्ष पूर्व गुरुदेव आचार्य तुलसी का वृहद् आशीर्वाद प्राप्त हुआ। साध्वीश्री ने कहा कि प्रथम संस्कार प्रदाता मां होती है। उसकी शक्ति से व्यक्तित्व निर्माण में सहायता मिलती है। आचार्य तुलसी की मां वंदना जी ने जो संस्कार बचपन में उनमें भरे उसी का ही प्रतिफल है कि हमें कालजयी व्यक्तित्व मिला। अत: अपने जीवन में सबसे पहले मां को प्रणाम करना चाहिए। साध्वीश्री ने बताया कि आचार्यश्री तुलसी की बाड़मेर यात्रा से कुरूढिय़ों को मिटाने का आंदोलन शुरू किया। एक वर्ष तक पति की मृत्यु के बाद कमरे में दुबकी रहने वाली महिलाओं को शोक से बाहर निकाला। आचार्यश्री तुलसी ने बाड़मेर में शंखनाद फूंक कर विधवा प्रथा को दूर करने का ऐतिहासिक कदम उठाया। जिससे महिलाओं को पृष्ठ भूमि पर मुख्य योगदान मिला। उन्होंने कहा कि गणाधिपति आचार्यश्री के व्यक्तित्व, कृतित्व, नेतृत्व में समाज को नई दिशा मिली है। साध्वीश्री मधुयशाजी ने कहा कि जो तपते है, खपते हैं, फूल बनकर स्वयं महकते हैं और दूसरों को भी महकाते हैं। वे दिव्यात्माएं सदा अभिवन्दनीय होते हैं। साध्वीश्री ने कहा कि 34 वर्ष की अवस्था में मानवता को जाग्रति करने के लिए एक महान अभियान चलाया और उसका नाम था अणुव्रत अभियान। उन्होंने कहा कि इतिहास कांच के टुकड़ों से नहीं बनता बल्कि चमकीले हीरों से बनता है। जैसे आचार्य तुलसी ने अपने जीवन को तपा कर हीरे के भांति सदा चमकने वाला व्रत हमें दिया जो आज अणुव्रत के नाम से देश-विदेश तक अपनी छाप छोड़ रहा है।

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आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष जैन लूणकरण छाजेड़ ने संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा कि आचार्य तुलसी ने नया मोड़, विसर्जन से समाज को कुरूढिय़ों से उबारा। छाजेड़ ने कहा कि आचार्य तुलसी ने सामाजिक कुरूतियों को दूर करने एहम कदम उठाया। आचार्यश्री के दक्षिण यात्रा में भी समाज में व्याप्त कुरूतियां दूर हुई। छाजेड़ ने कहा कि आचार्यश्री के अणुव्रत के नियमों को देश में ही नहीं विदेशों में भी अपनाया गया है।
संगोष्ठी में काव्य पाठ प्रज्ञा नौलखा ने ”राष्ट्रसंत को नमन हमारा सुनाया और मनोज छाजेड़ ने अणुव्रत गीत ‘नैतिकता की सुरसरिता में…का संगान किया। साध्वीश्री नीयतिप्रभाजी ने ‘वंदना मां का नन्दन दुलारा गीतिका सुनाई। संगोष्ठी में नयनतारा छलानी व सुधा भूरा ने मुख्य वक्ता संगीता सुराणा को तथा सुमन छाजेड़ व प्रेम बोथरा ने प्रज्ञा नौलखा का स्मृति चिन्ह व साहित्य भेंट कर सम्मान किया गया।