क्षमायाचना इस युग की अच्छाई का प्रतीक : मुनि श्री मनोज्ञसागर
सामूहिक क्षमायाचना इस युग की अच्छाई का प्रतीक : मुनि श्री मनोज्ञसागर
सामूहिक क्षमायाचना इस युग की अच्छाई का प्रतीक : मुनि श्री मनोज्ञसागर

बीकानेर। अलग अलग दिन सम्वत्सरी मनाने वाले लोग सामूहिक रूप से क्षमायाचना करते हैं, यह इस युग की अच्छाई का प्रतीक है। यह बात मुनि श्री मनोज्ञसागर जी ने आज यहां तेरापंथ भवन में जैन महासभा द्वारा आयोजित समग्र जैन समाज के सामूहिक क्षमतक्षामना एवं तप अभिनन्दन समारोह को सम्बोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि कोयले को धोने से उसका कालापन समाप्त नहीं होता, उसको जलाने से उसका कालापन ख्त्म होता है। उसी प्रकार सम्प्रदायवाद की दिवारों को मिटाने से ही जैन एकता सम्भव होगी। मनोज्ञसागर जी ने समाज में आधुनिकता के नाम पर फैल रही बुराइयों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि तथकाथित बड़े लोगों के परिजन इसमें लिप्त रहते हैं, उनको आगे आकर सुधार की प्रक्रिया प्रारम्भ करनी होगी। मुनि श्री ने समाज को नशा, प्रदर्शन व आडम्बर से दूर रहने की बात कहते हुए सभी से क्षमतक्षामना की व तप की अनुमोदना की।

समारोह को सम्बोधित करते हुए वयोवृद्ध मुनिश्री राजकरण जी ने कहा कि देष की आजादी के बाद आचार्य श्री तुलसी ने सम्प्रदायतीत प्रेम के बीज बोये। जिसके फलस्वरूप आज बहुत बड़ी एकता व साम्प्रदायिक सौहार्द देखने को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि 70 वर्ष पूर्व विभिन्न सम्प्रदाय के साधु-साध्वियों के एक ही मंच पर नहीं आते थे लेकिन अब आने लगे हैं। मुनि श्री ने कहा कि जैन एकता के लिए और अधिक प्रयास करने व प्रमोद भावना बढ़ाने की आवष्यकता है। मुनि श्री राजकरण जी ने कहा कि हम सभी एक दूसरे के अच्छे कार्यों को देखें व कमियों को सुधारने का प्रषस करें। समारोह को सम्बोधित करते हुए मुनिश्री पीयूषकुमार जी ने कहा कि सामूहिक क्षमापना दिवस मनाने की परम्परा को सम्पूर्ण जैन समाज ने बीकानेर जैन महासभा की परम्परा को मान्यता दी है। उन्होंने कहा कि विष्व के सभी प्राणी हमारे मित्र है। हम इनमें से किसी के प्रति शत्रुता की भावना रखते हैं तो हमारे जैनत्व की कमी है। उन्होंने कहा कि कटु सत्य भी प्रेम भरे शब्दों में कहने की भावना रखनी चाहिए। मुनि श्री विनीतकुमार जी ने कहा कि हम दूसरों को अन्तर्मन से क्षमा प्रदान करें। ऐसा कोई अवसर न आये कि हमारे मन में दूसरों के प्रति दुर्भावना आए। साध्वीश्री परमयषा ने गितिका क्षमा दिवस आया है, नया सवेरा आया है के माध्यम से अपने भाव व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि आज का दिन हमें यह याद दिलाता है कि जीवन में अहम् को भुलाकर अर्हम् को जागृत करें।
हमें क्षमा, सहनशीलता व ऋजुता का विकास करना चाहिए। साधुमार्गी संघ, बीकानेर के जयचन्दलाल डागा ने कहा कि जिन व्यक्तियों के साथ राग-द्वेष होता है उनसे क्षमायाचना अवष्य करें। उन्होंने कहा कि क्षमा याचना का दिन मैत्री का यह संदेष देता है कि कदम से कदम मिलाकर चलो। डागा ने कहा कि क्षमा हमारे जीवन का श्रृंगार है, यह जीवन की उत्कृष्ट स्थिति है। इस अवसर पर उद्बोधन देते हुए साध्वी कमलप्रभा जी ने कहा कि क्षमत क्षामना समारोह की सार्थकता तभी है जब हम न की गांठे खोलें। दूसरे क्या कर रहें है, यह ख्याल रहता है परन्तु हम क्या कर रहे है यह ख्याल नहीं रहता है। साध्वी श्री ने कहा कि क्षमा वीरों का आभूषण है। क्षमापना का दिन अपने आपको देखने का दिन होता है। उन्होंने कहा कि क्षमा की अराधना करने वालों पर क्रोध का जहर नहीं चढता। साध्वीश्री ने कहा कि क्षमा वह चिकित्सा पद्धति है जिससे सम्पूर्ण जीवन का कायाकल्प हो सकता है। मुनि शान्ति कुमार जी ने कहा कि क्षमा याचना पथदर्षन है. जैन जीवन का आकर्षण है, उन्होंने कहा कि क्षमा वाणी से टूटा मन पुन: जुड़ जाता है।
भीनासर से समागत साध्वी श्री मोहनां जी के सहवर्ती साध्वी श्री संकल्प श्री जी ने कहा कि क्षमत क्षामना से पारिवारिक सामंजस्य बढता है तथा जीवन को बदलने की प्रक्रिया प्रारम्भ होती। साध्वीश्री ने कहा कि क्षमायाचना के दिन भीतर के कांटो को बाहर निकाल देना चाहिए। यह कलुषिता धोने का दिन होता है। साध्वीश्री जी ने कहा कि मैत्री, सौहार्द्र एवं करुणा के सूखते हुए स्त्रोतों को सींचित करने की आवष्यकता है। पारसमुनि जी का सन्देश रिदकरन सेठिया ने पढा। समारोह को सम्बोधित करते हुए जैन लूणकरण छाजेड़ ने कहा कि जैन संस्कृति के अवदानों को दुनिया अपना रही है, हमें अपनी संस्कृति व संस्कारों के प्रति जागरूक होना चाहिए। समारोह को सम्बोधित करते हुए साधुमार्गी जैन श्रावक संघ गंगाशहर, भीनासर के चंचल बोथरा ने कहा कि सबके प्रति मैत्री का भाव क्षमत क्षामना है। तप:गच्छ श्री संघ के सुरेन्द्र बद्धानी ने कहा कि जो सहन कर सकता है वही क्षमा कर सकता है। उन्होंने कहा कि निंदा व प्रशंसा, मान व अपमान में समभाव से रहने वाला व्यक्ति ही क्षमा कर सकता है। खतरगच्छ संघ बीकानेर के घेवरचन्द मुसरफ ने कहा कि खमत खामणा से घृणा की गांठे लुप्त हो सकती हैं। समारोह में दिगम्बर समाज के विनोद जैन, हुकमगच्छीय श्रावक संघ गंगाशहर के मेघराज सेठिया, बीकानेर के अशोक श्रीमाल, तेरापंथी सभा गंगाशहर के किशनलाल बैद, तेरापंथी सभा बीकानेर के अध्यक्ष सुरपत बोथरा, जैन युथ क्लब के मनीष व भीनासर के महेन्द्र बैद ने भी अपने अपने संघों की तरफ से क्षमतक्षामना करते हुए इसके महत्व पर प्रकाश डाला। समारोह का शुभारम्भ मुनिश्री राजकरण जी द्वारा नवकार महामंत्र के पाठ से हुआ। मंगलाचरण करते हुए मुनि श्री श्रेयांस कुमार जी एवं भंवरलाल डाकलिया ने मैत्री गीत का मधुर संगान किया। स्वागत भाषण जैन महासभा के अध्यक्ष इन्द्रमल सुराणा ने किया।
पूर्व महामंत्री जतनलाल दूगड़ ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मुंह से निकला शब्द वापस नहीं आ सकता। गलती करके क्षमा मांगने की अपेक्षा मन, वचन कर्म से ऐसा कोई कार्य न हो जिससे किसी के दिल को ठेस पंहुचे, एसा विवेक जागृत होना चाहिए। संचालन जैन लूणकरण छाजेड़ ने किया। । समारोह में 8 व 8 दिनों से अधिक की तपस्या करने वालों 259 व्यक्तियों का अभिनन्दन करते हुए महापौर नारायण चौपडा, थानमल बोथरा, विमल कोचर, गुलाबचन्द बोथरा, जिनेन्द्र जैन, निर्मल दस्सानी, जयचन्दलाल डागा, जतन दूगड़, मोहन सुराना, पानमल नाहटा, सुरपत बोथरा, सुरेन्द्र बाद्धानी, मेघराज बोथरा, विनोद बाफना इत्यादि अनेक गणमान्य व्यक्तियों द्वारा तपस्वीजनों को अभिनन्दन पत्र, स्मृति चिन्ह एवं साहित्य आदि भेंट करके उनके तप कि अनुमोदना की ।