आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि पर ”अस्पृश्यता निवारण में आचार्य तुलसी का योगदान’ विषय पर संगोष्ठी तथा ‘दलित सम्मेलन’ आयोजित
गंगाशहर। प्रवचनों के पंडालों से लौटती भीड़ समाज में परिवर्तन नहीं ला सकती। परिवर्तन के लिए प्रवृत्ति में बदलाव की आवश्यकता है। यह बात आज आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि पर आयोजित ”दलित सम्मेलन’ को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता अधीक्षण अभियंता जसवन्त खत्री ने कही। उन्होंने अस्पृश्यता का अर्थ बताते हुए कहा कि अपनों का अपनों से दूर होना अस्पृश्यता है।

इस दूरी का कारण है अलग-अलग धर्मों के भेदभाव। मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान होता है। व्यक्ति में सम्यक् ज्ञान व सम्यक् दृष्टि को होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अस्पृश्यता निवारण में आचार्य तुलसी का विशेष योगदान रहा। उनकी उदारमना सोच ने कभी छोटे-बड़ों में भेदभाव नहीं किया। उनके लिए तो पूरी धरती ही अपनी थी। उनका चिन्तन व्यापक था। मुख्यवक्ता खत्री ने श्रीकृष्ण का उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे भगवान श्रीकृष्ण जातिवाद के भेदभाव से परे थे वैसे ही हमें भी जातिवाद से दूर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऊंची या नीची जाति में जन्म लेना अपने-अपने कर्मों का फल है, इसमें जन्म लेने वाले लोगों का कोई दोष नहीं होता। उन्होंने बताया कि विश्व के दो प्रश्न है-सहअस्तित्व व शांति। इनका जवाब सिर्फ भारत ही दे सकता है, क्योंकि भारत ही वर्तमान का यथार्थ है। आचार्यश्री तुलसी ने हमेशा धार्मिक स्थलों मे प्रवचन किया तो दलितों की बस्ती में जाकर भी प्रवचन किया। केवल तेरापंथ समाज को ही नहीं अन्य व दलित समाज के व्यक्तियों को भी सम्मान दिया। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी ने सभी कौमों के व्यक्तियों को एक कतार में खड़ा करने एवं एक जाजम पर बैठाने का प्रयत्न किया एवं सफलता भी प्राप्त की। हमें समरसता के भावों को बढ़ाकर अवसरों में समानता लानी है। पुण्य व दया के भावों से नहीं, बल्कि उनको स्वावलम्बी बनाना जरूरी है। आचार्य तुलसी ने पांच महाव्रतों के साथ-साथ समाज के विरोधों को सहते हुए अणुव्रत का अवदान देकर हमें कृत-कृत किया है।


समारोह को सम्बोधित करते हुए साध्वीश्री सहजप्रभाजी ने कहा कि सच्चे इंसान की खोज में आचार्य तुलसी के चरण आगे बढ़े और बढ़ते गए। आज का युग तेजी से बढ़ रहा है, जिसमें आदमी छोटा होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि भाग्य के भरोसे नहीं रहना चाहिए। आचार्य तुलसी कभी भाग्य की लिफ्ट के भरोसे नहीं रहे। आज विज्ञान काफी ऊंचाई पर पहुंच गया है, लेकिन शायद मानवता की चाबी तो नीचे ही रह गई है। जिस समय आचार्य तुलसी ने अणुव्रत आन्दोलन का आगाज किया, उस समय लोग कपड़े पहनते थे थर्ड क्लास और जीवन जीते थे फस्ट क्लास। साध्वीश्री ने ”सादा जीवन उच्च विचार मानव जीवन का श्रृंगार, गंदी सोच और पैर की मोच आदमी को आगे बढऩे नहीं देतेÓÓ जैसी कहावतों के माध्यम से कहा कि पिछड़े कुल में जन्में हो, अगर उसकी सोच ऊंची हो, जीवन सादा हो तो वह हमेशा उच्च स्तर तक पहुंच सकता है। एक गीत ”धरती पर स्वर्ग उतर आए’ की प्रस्तुति से बताया कि आचार्य तुलसी ने धरती पर ही स्वर्ग उतार दिया है।
आचार्य तुलसी शान्ति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष जैन लूणकरण छाजेड़ ने कहा कि मनुष्य अछूत नहीं होता, अछूत दृष्प्रवृत्तियां होती है। आचार्य तुलसी कहते थे कि मेरा अस्पृश्यता में विश्वास नहीं है। यदि कोई अवतार भी आकर उसका समर्थन करे तो भी मैं इसे मानने को तैयार नहीं हो सकता। मेरा मनुष्य की एक जाति में विश्वास है, इन विचारों के साथ आचार्य श्री तुलसी ने एक नई क्रान्ति का प्रारम्भ करते हुए जातिवाद के खिलाफ समाज में नई हलचल पैदा कर दी। उन्होंने कहा कि सन् 1954, 55 की बात है। आचार्यश्री के मन में विकल्प उठा कि मानव-मानव एक है, फिर भेद क्यों? यह विचार मुनिश्री नथमलजी (युवाचार्य महाप्रज्ञ) के समक्ष रखा और इस पर कुछ लिखने के लिए निर्देशित किया। उन्होंने एक पुस्तिका लिखी, जिसमें जातिवाद की निरर्थकता सिद्ध की गयी। परन्तु उसके प्रकाशन को लेकर मन में कुछ संदेह था। पुस्तिका को देखकर आचार्य प्रवर ने कहा, ‘जब इन तथ्यों की स्थापना करनी ही है तो फिर भय किस बात का है? ऊहापोह होगा, होने दो। किताब को समाज के समक्ष आने दो। इससे मानवता की प्रतिष्ठा होगी। हमारे सामने उन लाखों-करोड़ों लोगों की तस्वीरें हैं, जिन्हें पददलित एवं अस्पृश्य कहकर लोगों ने ठुकरा दिया है। ऐसे लोगों को हमें ऊंचा उठाना है, सहारा देना है।Ó इस मंथन में आचार्य श्री तुलसी का अप्रतिम साहस बोल रहा था। छाजेड़ ने उपस्थित अतिथि तथा सभी का स्वागत किया।

मुकेश राजस्थानी ने कहा कि भारतीय संविधान में हरिजन शब्द नहीं है कमजोर वर्ग है। उन्होंने अपने आपको सौभाग्यशाली बताते हुए कहा कि मैं भी आचार्य तुलसी के सान्निध्य में रहा हूं। उनके विचारों से लाभान्वित भी हुआ हूं। उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी के सपनों को साकार रूप मिल रहा है। वे अछूतवाद से सहमत नहीं थे, उनमें मानव-मानव के प्रति समानता थी। उन्होंने ”मीनख-मीनख में भेदभाव री भींत अरे मत खींचों, कुण ऊंचो, कुण नीचोंÓÓ के गीत से भावांजलि अर्पित की।
महापौर नारायण चौपड़ा ने कहा कि आचार्य तुलसी ने समाज में व्याप्त द्वन्द को समाप्त कर दलितों को सम्मानजनक स्थिति में लाने का भरपूर प्रयास किया। आचार्य तुलसी ने आत्मा की आवाज सुनी व समाज को एक नई दिशा दी। आचार्य तुलसी के द्वारा प्रदत्त अणुव्रत आन्दोलन के माध्यम से दलित समाज को आज पूरे देश में सम्मान मिल रहा है।
95 वर्षीय पूर्णानन्द जी वानप्रस्थी ने कहा कि मेरे जीवन में बदलाव आचार्य तुलसी के कारण आया है। आचार्य महाप्रज्ञ से ध्यान सीखा जो अभी भी कर रहा हूं। मनोज सेठिया ने पूर्णानन्द जी का परिचय दिया। कार्यक्रम की शुरूआत साध्वीश्री प्रेमप्रभा जी द्वारा नमस्कार महामंत्र व उच्चारण के साथ हुई। साध्वी श्री द्वारा तुलसी जप करवाया गया। अनिल सेठिया ने आचार्य तुलसी द्वारा दलितों के प्रति दिये गये रिकॉडे्ड वक्तव्य को उपस्थित लोगों को सुनाया।
मुख्य वक्ता जसवन्त खत्री को डॉ. पी.सी. तातेड़, अमरचन्द सोनी, इन्द्रचन्द सेठिया, जतन संचेती ने जैन पताका, शॉल, साहित्य व आचार्य तुलसी की तस्वीर भेंट कर सम्मानित किया गया। भारतीय संस्कार निर्माण समिति के वरिष्ठ कार्यकर्ता पूर्णानन्द वानप्रस्थी का भरत गोलछा एवं तेरापंथ युवक परिषद् की टीम द्वारा स्वागत व सम्मान किया गया। मुकेश राजस्थानी का पवन सोनी, कौशल मालू द्वारा साहित्य एवं स्मृति चिन्ह भेंट किया गया। महापौर नारायण चौपड़ा को बाबूलाल महात्मा, पवन छाजेड़ द्वारा सम्मानित किया गया। तेरापंथी सभा गंगाशहर के मंत्री अमरचन्द सोनी को जैन लूणकरण छाजेड़ द्वारा साहित्य भेंट कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सरदारशहर की ज्ञानशाला के बच्चों ने तुलसी अष्टकम् व लघु नाटिका प्रस्तुत की। कार्यक्रम में हजारी देवड़ा, सुरजाराम नायक, नरेश नायक, भूराराम, टीकुराम मेघवाल सहित सैकड़ों की संख्या में लोग उपस्थित हुए। कुशल संचालन अनिल सेठिया ने किया।(PB)