बीकानेर। स्वास्थ्य एवं साहित्य संगम के राष्ट्रीय कवि चौपाल की 196वीं कड़ी राजीव गांधी मार्ग रविवार 24 मार्च 2019 को साहित्य सभा में उपस्थित कविवृन्द काव्य रचना के साथ अपनी प्रस्तुति दी। मुख्य अतिथि श्री- वली मोहम्मद वली, विशिष्ट अतिथि श्री- हनुमन्त गोड
कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए देवी शरण शर्मा- सरस्वती वन्दना, हे मां तुझे शत-शत नमन स्तुति की तथा अपनी रचना में राजनीति दुल्हन के कितने दावेदार, किसके संग फेरे लिऐ किससे निभाया प्यार। अजीत राज- होली मेरी तो होली… उस दिन जिस दिन आया था मेरा सपुत खुन से लथपथ होकर।


फजल मोहम्मद- कोई दिशा भी वही है हाथों में लकीरों पर, हे मेरे नाथ दोस्तों की तीरों पर  मनोहर चावली- क्या समझता तेरी बैरूखी से मैं डर जाउंगा, मुझे पता क्या होगा मेरा फिर भी मैं आउंगा। सरदार अली का सन्देश – रचना तभी पढो जब पुरा समय धर्म सभा में उपस्थित रहें। किशननाथ खरपतवार- नित रा हुऐ उझाड़ देश री हालत माड़ी। रंगकर्मी बी.एल. नवीन- यु तो लाख हसीन देखे है… तुमसा नहीं देखा… एक शानदार गीत सुनाया।
एम.रफीक कादरी- है नीले गगन के तले धरती का प्यार पले। डॉ. तुलसीराम मोदी- उड़ती फिरे गगन मांय टूक टूक हुकारें हाले… जूना जुंगा री कहाणी कैती उड़ती फिरे… मेहबूब अली- जमीं आस्मां से मेहंगा नाम हुसैन का महबुब की दुकान में है धाम हुसैन का शिव प्रकाश दाधीच- फुल तो है कई पर चमन एक है, हे सितारे कई पर गगन एक है।
भजन गाायक बुधाराम नायक, गुरू शिष्य संबध नाम देणे के बाद अपने शिष्य की सात जन्म तक ख्याल रखता है। धमेन्द्र राठोड़- काई खुब मनाई होली दिलीप सिंह- बांट दिया इस धरती को चान्द सितारों का क्या होगा। बाबूलालल जी छंगाणी- ”पर भाईड़ा पार पडनदे कोनी। राजू लखोटिया- आ लोट के आजा मेरे मीत…पर बांसूरी वादन किया। जुगल किशोर पुरोहित- शब्द-स्वर व गीत है शब्द ही आधार है काव्य का गीत का गुंजायमान भी। कैलाश टाक- बयां मेरे अन्दाज शेरों में बदलने लगे है, मन के ख्याल गजलो में ढलने लगे। नेमीचन्द जी गहलोत- थारी म्हारी छोडे भाईडा तु कर चोखो काम। मेहराजु दीन- मारी है तख्त ओर ताज पे ठोकर हुसैन ने। सिराजुदीन भुटा- कवि चौपाल की निगाहों से जिन्दगी संवरती है।

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डा महेश चुग- पुरूष हूं मैं शुद्ध शाकाहारी,, पर अनेको रातो क्षुधा से बावला हो… चबाया है मांस रबड़ की तरह..। गोपीचन्द प्राणेश- पाळो मत…पाळो मत पाकिस्तान नुगरों धणो ओ पापी…। शिवप्रकाश सोलंकी- मधुरस के फुलों से जी भर के छलकाने से… मिष्ठान सी मुस्कान से…। वली मोहम्मद वली- अदब का नाम लेकर हम अदाकारी नहीं करते किसी के साथ रह कर उस से गधारी नहीं करते। लीलाधर सोनी- सासू वार जायोडो महने प्यारो लागे है। रामेश्वर जी- वाह रे कृपालु तु है दयालु जो मृत्यु का दिन गोपनीय किया…। हनुमन्त गौर- मेरी गुलफ हो मेरी शहनाईयों में रहना, मैं बागवां हू मिरी तिरी रहनाईयों में रहना…।