बाड़मेर। गणाधीश पन्यास प्रवर श्री विनयकुशलमुनिजी महाराज की निश्रा में चल रहे अद्वितीय वर्षावास 2019 के अन्तर्गत जिनकांतिसागरसूरि आराधना भवन में पर्वाधिराज पर्युषण के तीसरे दिन प्रखर प्रवचनकार विरागमुनिजी जी महाराज ने उपस्थिति जनसमुदाय के समक्ष कल्पसूत्र का वांचन करते हुए कहा कि तमाम लौकिक और लोकात्तर पर्वों में श्री पर्युषण पर्व सर्वोत्कृष्ट है। जैसे मंत्रों में नवकार मंत्र, तीर्थों में शत्रुंजय तीर्थ, दानों में अभयदान, गुणों में विनय गुण, व्रतों में ब्रह्मचर्य व्रत, संतोष में नियम, तपस्या में शांति, तत्वों में सम्यकदर्शन, तत्व श्रेष्ठ है; वैसे सर्व उत्तम पर्वों में ‘श्री पर्युषण पर्वÓ श्रेष्ठ है।

जैसे दुग्ध में गो दुग्ध, जलों में गंगाजल, पट सूत्रों में हीर, वस्त्रों में चीर, अलंकारों में चूड़ामणि, ज्योतिषियों में निशामणि(चन्द्र), अश्वों में पंचवल्लभ किशोर, नृत्य कलाओं में मोर, हाथियों में ऐरावत, राक्षसों में रावण, वनों में नन्दन वन, काष्ठ में चन्दन, तेजस्वियों में आदित्य(सूर्य), साहसिकों में विक्रमादित्य, न्यायवंतों में श्रीराम, रूप में काम, सतियों में राजीमति, शास्त्रों में भगवती, वांजिंत्रों में भंभा(भेरी-झल्लरी), स्त्रियों में रंभा, सुगन्धों में कस्तुरी, वस्तुओं में तेजमतुरी, पुण्यश्लोकों में नल(राजा), पुष्पों में सहस्त्रदल कमल उत्तम है वैसे ही पर्वों मे पर्युषण पर्व को उत्तम जानना चाहिए।

Laxminath Papad Bikaner

मुनि श्री ने कहा कि कल्पसूत्र में उल्लेख मिलता है कि साधु महात्मा जिस क्षेत्र में चैमासा ठहरें उस क्षेत्र में कीचड़ नहीं हो, बयेन्द्रिय, तयेन्द्रिय, चैउरेन्द्रिय जीवों की उत्पति न हो, स्थण्डिल भूमि अर्थात् जंगल जाने का स्थान निरवद्य(जीव रहित) हो, ठहरने की धर्मशाला संयम जीवन के अनुकूल हो, दूध-दही-छाछ-घी प्रचुर मात्रा में मिलता हो, जैनों की बस्ती अच्छे प्रमाण में हो, व्याधिहर्ता कुशल वैद्य हो, बहुत औषधियाँ मिलती हो, अनाज आदि का काफी संग्रह हो, गांव का मालिक सज्जन हो, पाखण्डी कमती हो, भिक्षा आराम से मिल सकती हो, पठन पाठन-धर्म-ध्यान सुखपूर्वक हो सकता है ऐसे तेरह क्षेत्र मुनि के चातुर्मास योग्य होते है।

पहले तीर्थंकर के साधुओं को अपना धर्म जानना कठिन था, और अंतिम भगवंत के साधुओं को पालना कठिन है, मगर बावीस जिनेश्वरों के साधुओं को अपना धर्म जानना और पालना दोनों सरल था। आदीश्वर भगवान के साधु ऋजु-जड़ होते थे, उनको जितना कहा जाता उतना ही समझते थे, परंतु विशेष नहीं समझ सकते तथा महावीर के साुध वक्र-जड़ होते है, और बावीस तीर्थंकरों के साधु ऋजुप्राज्ञ होते थे।

मणिधारी जिनचन्द्रसूरिजी की स्र्वगारोहण दिवस गुरूवार को- खरतरगच्छ संघ चातुर्मास समिति के भूरचंद तातेड़ व मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश बी. छाजेड़ ने बताया कि कुष्ठमल लूणकरण भंसाली परिवार द्वारा कल्पसूत्र गुरू भगवंत को वोहराया गया तत्पष्चात् गुरूभगवंत के मुखारविन्द से कल्पसूत्र का वांचन किया गया। पर्वाधिराज पर्युषण पर्व की आराधना के अन्तर्गत गुरूवार को कल्पसूत्र की वांचन के साथ जैन जगत के दूसरे दादा गुरूदेव मणिधारी जिनचन्द्रसूरिजी महाराज की पुण्यतिथि निमित गुणानुवाद किया जायेगा एवं चैत्य परिपाटी के तहत् लीलडिय़ा धोरा स्थित संभवनाथ जिनालय व दादावाड़ी के चतुर्विध संघ के साथ दर्शन किए जायेगें तत्पश्चात् वही पर भक्तामर का पाठ होगा। रात्रि में स्थानीय वसी कोटड़ा चैबीस गांव भवन में अरिहंत कांकरिया एण्ड पार्टी ब्यावर द्वारा सुमधुर भजनों की प्रस्तुतियां दी जायेगी। गुरूवार को पाक्षिक प्रतिक्रमण सांय 5.30 बजे प्रारम्भ होगा। भगवान महावीर जन्मवांचन व स्वप्नावतरण का कार्यक्रम शुक्रवार को होगा।