उदयपुर साहित्य कला एवं संस्कृति संस्थान तथा राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित एक दिवसीय साहित्यकार संगोष्ठी एवं पंचम राष्ट्रीय अधिवेशन के अवसर पर महाराणा प्रताप संग्रहालय में आयोजित भव्य समारोह में डॉ.मुरलीधर कनेरिया की नवीं कृति ”बिखरे मोती’ (आलेख संग्रह)का लोकार्पण राजस्थान साहित्य अकादमी अध्यक्ष डॉ.इन्दुशेखर तत्पुरूष;उदयपुर, मुख्य अतिथि डॉ.संदीप अवस्थी;अजमेर, डॉ.नरेन्द्र मिश्र;जोधपुर, डॉ.श्री कृष्ण जुगनू;उदयपुर के कर कमलों द्वारा डॉ.माधव नागदा के मार्गदर्शन में देश के कौने कौने से पधारे साहित्यकारों समाज सेवियों तथा शिक्षा विदों की उपस्थिति में किया गया ।

इस पर उपस्थिति सभी बधुओ नें हर्ष ध्वनि एवं करतल ध्वनि से अभिवादन किया । कृति पर विचार व्यक्त करते हुए डॉ.माधव नागदा ने कहा कि मैं डॉ. मुरलीधर कनेरिया कि ही एक कविता का उदाहरण देना चाहँूगा जिसमे युवापीढी के भटकाव पर चिंता प्रकट करते हुए कहा है कि उन्हें बढना है/उन्हें पढना है/उन्हें अपनें आप को गढना है। परिवार के लिए/समाज के लिए/उससे भी महत्त्वपूर्ण है देशधर्म के लिए/उनका भटकाव अच्छा नहीं हैं/उनकी सेहत के लिए/परिवार,समाज ओर देश के लिए आएँ हम सब मिलकर विचारों की क्रांति का/शंखनाद करें, देश का नव निर्माण करें वैचारिक क्रांति, ”अंतस की पीडाÓÓ, पृष्ठ 78। इन आलेखो को हम तीन श्रैणियों में विभाजित कर सकते है। पहले वे जो किसी महत्त्वपूर्ण त्योहार की जानकारी देते है। ये है गुरू पूर्णिमा पर विशेष श्री कृष्ण जन्माष्टमी, ऋुराजबंसत,सामाजिक समरसता का पर्व होली तथा रक्षाबंधन । दूसरे है महापुरूष की जीवनी पर आधारित इन मै, धनवन्तरी, स्वामी विवेकानंद, भगवान महावीर, महाराणा प्रताप, महात्मागाँधी, लोहपुरूष सरदार वल्लभभाई पटेल, गुरूनानक, संतकबीर व पीपाजी। तीसरी श्रैणी मैं पत्रकार और पत्रकारिता,हिन्दी के बढते कदम,साहित्य में राष्ट्रीय चेतना पुष्टिमार्ग में मानवीय मूल्यों का संरक्षण,सर्वधर्म सद्भाव,नारी सशक्तिकरण एवं कुंभलगढ की दीवारे इस प्रकार हम देखते है कि इन निबंधो का फलक बहुत विस्तृत है । सभी निबंधो में भाषा की छटा देखने लायक है। मैं इस श्रैष्टकृति के लिए डॉ.मुरलीधर कनेरिया को बधाई देते हुए शुभकामना करता हंू।


डॉ.श्री कृष्ण जुगनू ने अपने विचार रखते हुए कहा
बिखरे मोती की रचनाएँ बाल और युवापीढी़ ही नहीं, बुजुर्गों के लिए भी सूचना और पाठन हेतु संग्रहणीय है। यह कृति कई कमियों को पूरी करती है। यह विघालय पर्वोत्सव के आयोजन के लिए पूर्तिपरक उपयोगी पुस्तक है। लेखनी दमदार है और विषय चयन बहुत संजीदा सदुपयोग मूलक और बडें उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया गया है। इसमें रचनाकार ने उदाहरण को बहुत महत्व दिया है और यथा स्थान अपने मतो का भी प्रतिपादन किया है। ‘बिखरे मोतीÓ 21 रचनाओं की माला है यह ”मुरली इक्कीसीÓÓ है मनोगत की पीठिका पर उत्तरमुखी शिवलिगं की तरह स्थापित है। इस कृति के लिए कोटि-कोटि बधाई।
डॉ.संदीप अवस्थी ने कनेरिया कि रचना धर्मिता की भूरि भूरि प्रसंशा करते हुए उक्त कृति कि देश के चारों दिशाओं में समीक्षा करा ने की प्रतिबद्धता दर्शाई । डॉ.नरेन्द्र मिश्र एवं डॉ.तत्पुरूष ने कनेरिया की नव कृति के लिए बधाई देते हुए उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए निरंतर साहित्य सृजन करते रहने एवं स्वस्थ्य रहने की कामना की। डॉ.कनेरिया नें सभी अतिथियों व समारोह में उपस्थित्त सभी महानुभावो के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए, उक्त पुस्तक पर अपने अपने विचार लिखकर भेजने का आव्हान किया।(PB)