Symposium on Rajassthani Stories
Symposium on Rajassthani Stories
राजस्थानी साहित्य पर आलोचना कर्म की जिम्मेवारी स्वयं रचनाकारों को ही उठानी होगी : डा. चारण

बीकानेर । “राजस्थानी साहित्य पर आलोचना कर्म की जिम्मेवारी स्वयं रचनाकारों को ही उठानी होगी क्योंकि राजस्थानी कहानी समेत अनेक विधाओं में सृजन हो रहा है किन्तु उसकी तटस्थ एवं खरी आलोचना नहीं हो पाने से उसका सही मूल्यांकन होना अभी शेष है।” यह विचार साहित्य अकादेमी नई दिल्ली एवं मुक्ति संस्था की ओर से आधुनिक राजस्थानी कहाणी माथे केन्द्रित परिसंवाद “अैनांण” के उद्धाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रतिष्ठित राजस्थानी कवि-नाटककार-समालोचक एवं साहित्य अकादेमी में राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल के संयोजक डा. अर्जुनदेव चारण ने व्यक्त किये ।

डा. चारण ने कहा कि एक दिवसीय समारोह में राजस्थानी के महत्वपूर्ण 20 कहानीकारों के साथ युवा एवं महिला कहानी लेखन पर गंभीर विमर्श रखने के पीछे अकादेमी की यही दृष्टि रही है कि कहानीकार ही कहानीकारों के रचनाकर्म पर विचार करे । उन्होने कहानीकारों से अपेक्षा की कि वे स्वयं निर्भय समालोचक बनकर अपनी रचनाओं को जांचें- परखें, ताकि उनकी रचनाओं में निरंतर परिमार्जन होता रहे ।

उद्धाटन सत्र के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कथाकार भंवरलाल भ्रमर ने कहा कि स्वानुभूतियों का संवेदनात्मक सृजन ही कहानी है । संवेदना जागृत करने वाली कहानी ही पाठक पर गहरा प्रभाव छोडती है । उन्होने अपनी सृजन यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि राजस्थानी कहानी का गंभीर मूल्यांकन किये जाने की अब भी प्रतिक्षा है जबकि राजस्थानी में अन्य भारतीय भाषाओं के समकक्ष कहानियों का सृजन हो रहो है । उन्होने अकादमी के इस आयोजन को सार्थक बताया, जिसमें कहानीकारों के सृजन पर बात होगी ।

साहित्य अकादेमी के प्रषासनिक अधिकारी शांतनु गंगोपाध्याय ने स्वागत भाषण में प्रसन्नता जाहिर की कि आधुनिक राजस्थानी कहानी में महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय सृजन हो रहा है । इस समारोह में राजस्थानी कहानी पर गंभीर विमर्श होगा, जिससे आगे रचनाकारों को नई दृष्टि मिलेगी ।

संयोजकीय वक्तव्य देते हुए मुक्ति के सचिव एवं कवि कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि बीकानेर को साहित्य की राजधानी कहा जाता है और अकादेमी ने राजस्थानी कहानी पर केन्द्रित कार्यकम का आयोजन बीकानेर में करके इसकी महत्ता को प्रतिपादित किया है ।

उद्धाटन सत्र पष्चात तीन सत्रों में कहानी विधा के विविध रचनाकारों पर आलोचकीय दृष्टि विद्वान समालोचकों द्वारा रखी गयी  ।

वरिष्ठ कवि मोहन आलोक की अध्यक्ष्ता में प्रथम सत्र का आयोजन हुआ । इस सत्र में समाचलोचक डा. चेतन स्वामी ने रामस्वरूप किसान, रामेष्वर गोदारा, सत्यनारायण सोनी तथा डा. भरत ओला के कथा साहित्य पर एवं युवा कवि-समालोचक डा. नीरज दइया ने मीठेस निर्मोही, भंवरलाल भ्रमर, अरविन्द्र सिंह आषिया एवं डा. मदनगोपाल लढ़ा के कथा साहित्य पर विषलेषणात्मक आलेखों का वाचन किया । सत्र की अध्यक्षता करते हुए मोहन आलोक ने कहानीकारों से अपेक्षा की कि वे समर्पित भाव से सृजन करें और स्वयं का आत्म विष्लेषण करते रहे, इससे उनके सृजन में निखार आयेगा ।

वरिष्ठ कथाकार एवं “कथेसर” के संपादक रामस्वरूप किसान की अध्यक्षता में आयोजित दूसरे सत्र में वरिष्ठ कवि-कथाकार मीठेस निर्मोही और चर्चित कथाकार-व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने पत्रवाचन किया । मीठेस निर्मोही ने मालचंद तिवाडी, मनोहर सिंह राठौड, डा. मदन सैनी एवं माघव नागदा के कथा साहित्य पर एवं बुलाकी शर्मा ने नन्द भारद्वाज, रामपाल सिंह राजपुरोहित, मधु आचार्य आषावादी तथा डा. चेतन स्वामी के कथा साहित्य के कथ्य एवं शिल्प पर अपनी समालोचकीय दृष्टि रखी । रामस्वरूप किसान ने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि एक कलाकार को प्रत्येक दिन नौसीखिया होना चाहिये और स्वयं के विचारक और आलोचक को सचेत रखते हुए कहानी लेखन करना चाहिये ।

वरिष्ठ रंगकर्मी-कवि-कथाकार एवं पत्रकार मधु आचार्य आषावादी की अध्यक्षता में आयोजित तीसरे सत्र में कवि-कथाकार मालचंद तिवाडी ने बुलाकी शर्मा, डा. चन्द्र प्रकाश देवल, श्याम जांगिड एवं प्रमोद कुमार शर्मा के कथा-सृजन पर बेबाक आलोचकीय मंतव्य रखा, वहीं कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने राजस्थानी युवा कहानी लेखन एवं महिला कहानी लेखन पर पत्रवाचन किया । मधु आचार्य आषावादी ने अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहा कि एक कहानीकार के लिए यह ध्यान रखना जरूरी है कि जो वह लिख रहा है उसमें कोई भी अनावष्यक एवं अनुचित शब्दों या घटनाओं का समावेष नही है । लिखते हुए लिखने से ज्यादा छोडना जरूरी है । उन्होने आज की राजस्थानी कहानी की प्रशंसा की ।

तीनों सत्रों के पश्चात समापन सत्र में सबका आभार प्रदर्शन वरिष्ठ रंगकर्मी सुरेश हिन्दुस्तानी ने किया । कार्यक्रम में हीरालाल हर्ष, सरदार अली पडिहार, ब्रह्याराम चौधरी, हजारी देवडा, गुलाम मोहियुदीन माहिर, आनन्द वि. आचार्य, आत्माराम भाटी, शमीम बीकानेरी, डा. नमामी शंकर आचार्य, डा. सत्यनारायण स्वामी, पी.आर. लील, ओ.पी. शर्मा ने माल्यापर्ण कर स्वागत किया । विभिन्न सत्रों का संचालन क्रमशः शंकर सिंह राजपुरोहित, नवनीत पांडे एवं रामेश्वर गोदारा ने किया ।