“ एडीजे कैडर भर्ती परीक्षा “ मामले में प्रदेश भर की अदालतों में आंदोलन ने पकड़ा जोर


जयपुर,( दिनेश शर्मा “अधिकारी”)। राजस्थान हाई कोर्ट जयपुर परिसर में परिसर में एडीजे कैडर भर्ती परीक्षा में 85 पदों की भर्ती में केवल 4 अभ्यर्थियों को वकील कोटे से पास करने के मामले में उपजे भारी असंतोष से वकीलों वकीलों ने आंदोलन का रुख अपना लिया है और आंदोलन का रुख केवल जयपुर तक सीमित न होकर प्रदेश से बाहर देश के विभिन्न राज्यों की अदालतों और तहसील स्तर तक पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं आंदोलनरत धरने पर बैठे अधिवक्ता अशोक यादव, सावर मल ओला, शांतनू पारीक, सतीश बालवदा वने बताया की सुप्रीम कोर्ट में वर्ष 2018 में जुडिशल ऑफिसर एसोसिएशन की ओर से एक एसएलपी नंबर 1471 वकील कोटे के खिलाफ लगाई गई थी जिसे तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी की खंड की सिरे से खारिज करते हुए वकील कोटे से 25 परसेंट न्यायिक अधिकारियों के पद भरे जाने के निर्देश दिए थे इसके बावजूद भी 85 पदों में से केवल 4 अधिवक्ताओं को एडीजे पद पद पर परीक्षा में उत्तीर्ण करने के मामले में शेष 81 पदों को तदर्थ नियुक्ति हेतु खाली रखते हुए समय और न्याय की आवश्यकताओं को देखते हुए बैक डोर एंट्री से अथवा पदोन्नति के माध्यम से गुपचुप में भरकर पूरी तरह से होने वाले भ्रष्टाचार को नकारा नहीं जा सकता
अधिवक्ता महीपत मीना, मनु भार्गव, ने बताया कि प्रदेश की विभिन्न अदालतों में अधिकृत पंजीकृत 9000 अधिवक्ताओं ने नियमित प्रैक्टिस करते हुए आवेदन किया था जिनमें से केवल 3000 अधिवक्ताओं को प्री एग्जाम परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई जिनमें से 1070 को उत्तीर्ण बताते हुए 780 को मेंस परीक्षा में बैठने की अनुमति दी और अंत में 85 पदों पर केवल 4 अधिवक्ताओं को ही उत्तम और एडीजे बनने की योग्य मानते हुए शेष 81 पदों को पदोन्नति अथवा ऐड हो कि नियुक्ति का हवाला देकर खाली रख लिए गए अधिवक्ताओं का कहना है कि इस परीक्षा की कॉपियां भी न्यायिक अधिकारियों द्वारा जांच की गई थी जो पहले से ही वकील कोटे से न्यायिक अधिकारियों की भर्ती का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में गए थे जिसे खंडपीठ ने खारिज कर दिया ऐसे में इन्हीं न्यायिक अधिकारियों से यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वकील कोटे से न्यायिक अधिकारियों की पारदर्शी रूप से भर्ती करेंगे और सीधे तौर पर गोपनीयता का हवाला देकर पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर सुप्रीम कोर्ट के खंडपीठ के आदेश की अवमानना करते हुए पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ अनुच्छेद 14 का सीधा अतिक्रमण किया जा रहा है।
बैठे एक अन्य अधिवक्ता घनश्याम ब्रजवासी ने बताया कि वर्ष 2016 से और अब तक 8 वर्षों में मात्र न्यायालय प्रशासन ने 5 अधिवक्ताओं को ही नए वकील कोटे से न्यायिक अधिकारी बनने के काबिल माना है जबकि गत वर्षो में वकील कोटे से रिक्त पदों को 470 से अधिक पदों पर पदोन्नति के माध्यम से न्यायिक अधिकारियों को पंप पदोन्नति देते हुए अधिवक्ताओं के 25 परसेंट वकील कोठे पर अतिक्रमण करते हुए मनमानी एवं तानाशाही पूर्व भर लिए जो कि अधिवक्ताओं के 25% कोटे का सीधे तौर पर अतिक्रमण कर संविधान के अनुच्छेद 14 का सीधा उल्लंघन कर रहे हैं वही महिला अधिवक्ता मोबिना खान,मीनू वर्मा, ने बताया कि पर रूल न्यायिक पदों पर भर्ती के लिए 25 परसेंट वकीलों का कोटा 65% प्रमोशन अथवा पदोन्नति के माध्यम से और 10 परसेंट आंतरिक मूल्यांकन के द्वारा निर्धारित है जबकि इस परीक्षा में 85 में से 4 अधिवक्ताओं को उत्तीर्ण दिखाते हुए 25 परसेंट में से मात्र 4 परसेंट ही कोटा भरा गया है शेष 21% कोटा न्यायिक अधिकारियों को पदोन्नति देते हुए भरा जाएगा जो कि न्याय विभाग का तानाशाही एवं मनमाना रवैया दर्शाता है संविधान के आर्टिकल 14 का आमजन के अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन कर रहा है