अंग्रेजों से आजादी की जंग जारी थी।इस जंग में राजस्थान के योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता हालांकि इस जंग में बहुत कम लोगों की स्वतंत्रता सेनानी के रूप में पहचान हुई है।असंख्य राजस्थानियों ने हँसते हँसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे जिनके नाम अता पता कुछ नहीं है।
देश की आजादी के साथ ही राजस्थान के निर्माण की प्रक्रिया सुरु हुई।
सर्व प्रथम मत्स्य संघ 25 मार्च 1948 को बना।मत्स्य संघ में अलवर,भरतपुर,धौलपुर ओर करौली के चार देशी राजा ओर एक ठिकाना नीमराना सम्मिलित हुए और सर्वप्रथम प्रधानमंत्री पद पर श्री शोभा राम को मनोनीत किया गया था।
दूसरे चरण में 25 मार्च 1948 को राजस्थान संघ बना जिसमे किशनगढ़,डूंगरपुर,बांसवाड़ा,बूंदी,कोटा,शाहपुरा,टोंक आदि का विलय किया गया।
तीसरे चरण में उदयपुर व शेष रियासतों ने मिल कर वृहद राजस्थान का निर्माण किया गया जिसके प्रधान मंत्री माणिक्यलाल वर्मा,महाराज प्रमुख सर भूपालसिंह जी महाराणा मेवाड़ व राजप्रमुख महाराव भीमसिंह कोटा को मनोनीत कीट गया था।
चौथे चरण में 30 मार्च 1949 को जयपुर,जोधपु,बीकानेर,जैसलमेर का विलीनीकरण हो कर राजस्थान बना।
पांचवे चरण में 15 मई 1949 को राजस्थान में मत्स्य संघ का विलय हुआ।
राजस्थान निर्माण की प्रक्रिया चल रही थी।अनेक देशी रियासतों का भारत गणराज्य में विलीनीकरण हो रहा था।
छठे चरण में सिरोही राज्य का विलय 26 जनवरी 1950 को हुआ जिसमें आबू ओर देलवाड़ा सम्मिलित नहीं था।
1 नवम्बर 1956 को सी श्रेणी के राज्य अजमेर मेरवाड़ा व आबू देलवाड़ा सहित राजस्थान में विलीनीकरण के साथ ही सात चरणों मे आजका राजस्थान बना।
राजस्थान में पहली मनोनीत सरकारें बनी जिसमे 30 मार्च को पण्डित हीरालाल शास्त्री की सरकार बनी और उनको प्रधान मंत्री बनाया गया।मेवाड़ के महाराणा सर भूपाल सिंह जी को आजीवन महाराजप्रमुख ओर सवाई मानसिंह जी जयपुर को राजप्रमुख नियुक्त किया गया।
श्री जयनारायण व्यास व हीरालाल शास्त्री के बीच अनबन होने से दसरी मनोनीत सरकार सी एस वैंकटाचार ics की बनी जिसमे दो मंत्री थे।डर नेहरू जी के हस्तक्षेप से जयनारायण व्यास को तीसरा मुख्यमंत्री मनोनीत किया गया।
श्री जयनारायण व्यास के नेतृत्व में 1952 का पहला चुनाव राजस्थान में हुआ।इस चुनाव में व्यास जी ने दो स्थानों से चुनाव लड़ा था और दोनों ही जगह से हार गए थे।
विधायक दल की बैठक में श्री टीकाराम पालीवाल को नेता चुना गया और वे पहले मुख्यमंत्री बने।
जयनारायण जी व्यास ने किशनगढ़ से उपचुनाव जीता और उनके तथा पालीवाल के बीच शीतयुद्ध शुरू हुआ जो पालीवाल को हटाने के साथ ओर जैनारायनजी व्यास के मुख्यमंत्री बनने से समाप्त हो गया।व्यासजी ने प्रथम बार तिकारामजी पालीवाल को उपमुख्यमंत्री नियुक्त किया।इस पद पर कई महीने रहने के बाद उन्होंने रुस्त होकर त्याग पत्र दे दिया।उन्हे पुनः मनाया गया और केबिनेट मंत्री बनाया गया। किन्तु माणिक्यलाल वर्मा ने व्यासजी के विरोध का बिगुल बजा दिया।फिर विधायक दल में नए नेता के लिये मतदान हुआ जिसमें वर्मा साहब के शिष्य मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री बने जो हर चुनाव में बनते रहे और 1971 तक रहे।
इसी अंधी में इंदिरा गांधी के राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी के प्रत्यासी को छोड़ निर्दलीय का समर्थन करने पर सुखाड़िया जी ने उनका आदेश नहीं माना।तब इंदिराजी के समर्थन में बरक्ततुलाः खा, रामनिवास मिर्धा रानी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत ओर शिवचरण माथुर रहे थे।
इंदिराजी ओर सुखाड़िया जी के बीच इतना अधिक मन मुटाव हो गया कि सुखाड़िया जी को हटाकर बरक्ततुलाःखा को मुख्यमंत्री बन दिया।बरक्ततुलाः के स्वर्गवास के बाद एक बार फिर विधायक दल को नेता चुनना था।इंदिराजी ने ऊपर से रामनिवास मिर्धा को भेज दिया और सर्वसम्मति से चुनने का आदेश दे दिया।
हरिदेव जोशी ने इंदिराजी के आदेश के विरोधः में बिगुल बजा दिया।परिणाम यह रहा के हरिदेव जोशी बहुमत से नेता चुने गए और काफी अंतर से रामनिवास मिर्धा हार गए।हरिदेव जोशी ने मुख्यमंत्री बनने पर मिर्धा की उवमुख्यमंत्री की नियुक्ति की मगर रामनिवास मिर्धा ने कार्यग्रहण नहीं किया।आपातकाल लग चुका था।हरिदेवजी ने अंततः इंदिराजी को राजी कर लिया।
आपातकाल के हटते ही सभी विपक्षी दलों ने एक नई पार्टी का गठन किया और चुनाव हुए।केंद्र में सरकार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी।
राजस्थान में भी चुनाव हए जिसमें भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ।केंद्र की सरकार लड़खड़ा कर कई हाथों से निकल कर वापस चुनाव हुए।कांग्रेस पुनः केंद्र पर काबिज हो गई और राजस्थान सरकार को भंग कर दिया गया।
राजस्थान में पुनः कांग्रेस आ गई और जगन्नाथ पहाड़िया मुख्यमंत्री बने लेकिन उनकी सरकार स्थिर न रह सकी तथा शिवचरण माथुर ने गद्दी संभाली।
आम चुनाव चल रहे थे।डीग के विधायक की चलते चुनाव में शिवचरण माथुर की उवस्थिति में डीग विधायक राजमानसिंघ की हत्या एक पुलिस अधिकारी द्वारा करदी गई।माहौल बिगड़ता देख शिवचरण माथुर को हटा दिया गया।तब हीरालाल देवपुरा मुख्यमंत्री बने।चुनाव के बाद कांग्रेस सत्ता में आ गई और हरिदेव जिसहि ने पुनः मुख्यमंत्री पद संभाला।
हरिदेव जोशी के ओर शिवचरण माथुर के बीच फिर मतभेद हो गए।पुनः हरिदेव जिसहि को सत्ता की बागडोर सौंपी गई।
आम चुनाव हरिदेव जोशी के नेतृत्व में हुए और पार्टी स्पस्ट बहुमत नहीं ला सकी और सत्ता से बाहर हो गई।
एकबार पुनः भैरोंसिंह शेखावत ने मुख्यमंत्री पद संभाला।
सरकार अपनी गति से चल रही थी तभी राष्ट्पति शासन लग गया।पुनः चुनाव में फिर भैरों सिंह शेखावत तीसरी बार मुख्यमंत्री बने और कार्यकाल पूर्ण किया।उनके समय में कई धड़े बन गए ।अलग अलग चुनाव लड़ा ओर कांग्रेस सत्ता में आ गई।
अशोक गहलोत

फिर अशोक गहलोत मुख्य मंत्री बने।अशोक गहलोत पढ़ाई के समय से ही राजनीति करते थे।वी युवक कांग्रेस में आगरणी कार्यकर्ताओं में से है।उनके पिता बाबू लक्ष्मण सिंह जी एक प्रसिद्ध जादूगर थे।जादूगरी के अनेक गुर भी श्री गहलोत ने सीखे थे मगर उन्होंने राजनीति को ही चुना।श्री गहलोत सादा जीवन उच्च विचारों की जीती जागती तस्वीर है।एक जोड़ी स्लीपर,सफेद कुर्ता पायजामा आपकी पौशाक है।चाहे सांसद रहे,केंद्रीय मंत्रिमंडल में रहे हों या तीसरी बार मुख्यमंत्री।उनकी पौशाक में कोई परिवर्तन किसी ने नहीं देखा।श्री गहलोत की ईमानदारी पर अब तक कोई डेग नहीं है इतना ही नहीं श्री गहलोत एक चरित्रवान नेता हैं।उनका खानपान भी शुद्ध और सात्विक है।किसी प्रकार का नशा पता तो आपको कभी भी छू नहीं सका। आपको राजस्थान का गांधी भी कहा जाता है जो यथा नाम तथा गुण है।आप राजनीति के चाणक्य तो हैं ही।दूर दृष्टि ओर पक्का इरादा आपका लक्ष्य है।अहंकार जैसा अवगुण आपने नजदीक तक नहीं आने दिया।आपके इस कार्यकाल में बहुत उपलब्धियां आपके नाम है।
उसके बाद मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बनी।फिर अशोक गहलोत ओर फिर वसुंन्धरा राजे ओर अब फिर तीसरी बार अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री पद संभाला है।
सभी मुख्यमंत्रियों ने अपने अपने कार्यकाल में संसाधनों और अपने घोषणा पत्र के अनुसार कार्य किया था।जिनमें से अनेक कार्य तो उदाहरण भी बन गए।
भैरोंसिंह शेखावत की योजना अंत्योदय बहुत सराही गई और उसे पूरे देश ने भी स्वीकार किया जबकि अशोक गहलोत की योजना नरेगा ने प्रत्येक मजदूर को काम दिया।यह अलग बात है कि नीचे के लोगों ने उसमें खूब घोटाले किये और मजदूरों ने ईमानदारी से कार्य नहीं किया।
राजस्थान और मेट्रो ट्रेन केवल एक स्वप्न था।अशोक गहलोत ने जयपुर को मेट्रो की बहुत बड़ी सौगात दी थी और अब पूरे शहर में मेट्रो का जाल बीच रहा है।केंद्रीय विद्यालय रास्थान के ठीक बीच मे स्थापित करना तथा एम्स, आयुर्वेद विश्वविद्यालय, पुलिस विश्वविद्यालय, आईआईटी समेत अनेक संस्थाओं की सौगात जोधपुर को गहलोत की ही सौगात है।बाड़मेर जिले की रिफाइनरी का बिस साल से बन्द काम भी उनकी ही देन है।
पानी बचाओ,बिजली,बचाओ,सबको पढ़ाओ का सर्वप्रथम नारा आपने ही दिया था।सस्ती जेनेरिक दवाईयों का भी सर्वप्रथम कदम आपने ही उठाया था।निशुल्क दवा योजना के राजस्थान के जनक आप ही है।श्री गहलोत जातिवाद ओर रूढ़ियों में विस्वास नहीं रखते हैं।
राजस्थान के करोड़ों लोगों की मांग राजस्थानी की किसी ने सुनवाई नहीं की थी।श्री अशोक गहलोत पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने ने विधानसभा से सर्वसम्मति से राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूचि में जोड़ने का संकल्प पारित कर केंद्र को भेजा था।विगत महीनों में श्री गहलोत ने ही भारत सरकार को राजस्थानी की मान्यता के लिये स्मरणपत्र भेजा था।
गत वर्ष 2019 में श्री अशोक गहलोत ने जयपुर में गौ संरक्षण के लिये बहुत बड़ा सम्मेलन किया और कई घोषणाएं की जिसमें गौशालाओं का अनुदान बढा कर तुरन्त रकम भी आवंटित की जबकि बीजेपी का यह एजेंडा केवल घोषणा पत्र में ही दब कर राह गया था।
अल्प आय वर्ग पिछड़ा वर्ग को केंद्र सरकार ने आरक्षण दे दिया।उस कानून के ज्योंका त्यों लागू होने पर राजस्थान के किसी को भी आरक्षण मिलना एक सपना ही था क्योंकि उस कानून की एक भी शर्त राजस्थान वाले पूरी नहीं कर सकते थे।जब श्री अशोक गहलोत ने उस आदेश का अध्ययन किया तो आश्चर्य चकित रह गए।जिन्होंने कानून बनाया उन्हें राजस्थान की वास्तविक स्थिति का ज्ञान नहीं था।
श्री अशोक गहलोत ने उस कानून को बदल कर सारी शर्तों को दर किनार करते हुए केवल आय की शर्त मां कर नए आदेश जारी किए जिसके कारण प्रदेश के लाखों लोगों को लाभ हुआ है।यह एक ऐतिहासिक निर्णय है।
प्रत्येक राजनैतिक दल के सिद्धांत होते हैं।कुछ नीतियां होती है।पार्टी की संरचना होती है तथा पार्टी का अनुशासन भी होता है।श्री गहलोत ही एक मात्र ऐसे नेता है जिन्होंने कभी बगावत नहीं की इतना ही नहीं पार्टी अनुशासन का दिल और दिमाग से स्वागत करते रहे हैं तभी तो उनको तीसरी बार प्रदेश की बागडोर सौंपी गई है जो उनकी योग्यता और निष्ठा का प्रमाण है।
राजस्थान में अगर यह पूछा जावे कि कितने नेता राजस्थान के सभी 33 जिलों व 250 तहसीलों की जमीनी हकीकत से परिचित हैं कि कहा क्या होना है।क्या हुआ है।क्या समस्या है तो चाहे बीजेपी हो ,कम्युनिस्ट हो या कांग्रेस ही हो केवल एक ही नेता का नाम आएगा अशोक गहलोत। जिन्हें हर जगह हर मौसम और हर स्थिति का ज्ञान है।
टिड्डियों का भयंकर हमला हुआ।पूर्वी दक्षिण राजस्थान के लोगों को तो पता ही नहीं था।पूरे देश की तो बात ही अलग है।टिड्डी आती थी।बाड़मेर से नागौर अंतिम पड़ाव होता था।टिड्डी की पूरी जानकारी केवल अशोक गहलोत को थी।यह अलग बात है कि इस बार करोड़ों टिड्डियों आई और पूरे देश को चपेट में ले लिया।
राजस्थान के भंवरी देवी नर्स के गुथे हुए मामले में जांच सीबीआई से कराने का निर्णय अपने आप मे जोखिम भरा था तब अशोक गहलोत ने ऐसा निर्णय लिया गया जिससे दूध का दूध पानी का पानी हो गया।हाल ही मे राजगढ़ थानाधिकारी विष्णुदत्त विश्नोई आत्महत्या प्रकरण की जांच भी सीबीआई से कराने का आपने निर्णय ले कर अपनी न्यायप्रियता का परिचय दिया है।ऐसे निर्णय लेना हिम्मत का कार्य था और वह कार्य। गहलोत ने लिया जिसमे अनेक लोग इनकी जान के दुश्मन तक बन बैठे थे।
आप सभी विपक्षी नेताओं की भी सुनते हैं।आपके राजनैतिक प्रतिद्वद्वि भी पीठ पीछे आपकी कार्यशैली की प्रशंसा करते हैं।
कांग्रेस पार्टी और गहलोतश्री अशोक गहलोत कांग्रेस पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता रहते हुए विभिन्न पदों पर आसीन रह कर की करते रहे हैं
एनएसयूआई के 1973 से 1979 तक अध्यक्ष रहे।
जोधपुर के कांग्रेसाध्यक्ष 79 से 82 तक रहे।
प्रदेश कांग्रेस महामंत्री ओर फिर तीन बार प्रदेशाध्यक्ष 1985 से 1989,1994 से 1997 तथा बाद में 1997 से 1999 तक रहे।

-: चुनावी चक्रव्यूह ओर गहलोत।

राजनीति में पैर रखे और चुनाव न लड़े ऐसा कैसे संभव हो सकता है।अशोक गहलोत ने प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर अनेक पदों पर काम किया।केंद्र उनकी विनम्रता ओर कार्यशैली से प्रसन्न था।छोटी उम्र में ही आपको जोधपुर जैसे विषम संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस ने 1980 में टिकट दे दिया।यह वह कार्यकाल था जब जनता पार्टी सत्ता से फेल हो कर निकली थी।एक लहर जैसे 1977 में कांग्रेस के खिलाफ चली थी वैसी ही लहर इस बार कांग्रेस के पक्ष में भी थी।शहरी क्षेत्र में तो लोग जानते थे मगर ग्रामीण क्षेत्र में अशोक गहलोत का परिचय का दायरा इतना नहीं था।यह चुनावी चक्रव्यूह था लेकिन उस चक्रव्यूह को तोड़कर गहलोत सफलता पूर्वक संसद में पहुंचे।
दूसरी बार फिर वही क्षेत्र गहलोत साहब की मिला अब तक गांवों में भी लोग परिचित हो गए।कई कार्य भी हुए और 1984 का चुनाव भी आप जीत गए।
इसके बाद 1991,1996,1998 में भी आप विजयी रहे।
श्री गहलोत 1989 का एक चुनाव हार ओर 5 चुनावों में विजय प्राप्त की थी।
आप पांचबर संसद में पहुंचे तो केंद्र को प्रदेश में एक योग्य नेता की आवश्यकता अनुभव हुई उसकी पूर्ति केवल अशोक गहलोत ही कर सकते थे ऐसा कांग्रेस हाई कमान का मानना था।अतः अशोक गहलोत को राजस्थान में भेज दिया गया।
राजस्थान के जोधपुर की गली गली का बच्चा बच्चा गहलोत को जानता था।गहलोत ने सूरसागर से विधानसभा चुनाव लड़ा ओर विजयी हो गए यह विधान सभा का उनका पहला चुनाव था और वर्ष था 1999,
इसके बाद गहलोत 2003,2008,2013,ओर 2008 में विजयी हो कर विधान सभा मे पहुचे।इन निरन्तर5 चुनावों में गहलोत को हराने के लिये विपक्ष के सभी पासे उल्टे पड़े।एक बहुत बड़े करोड़पति को तो चुनाव ने रोडपति बना दिया और पावटा का बंगला एक करोड़ में बेचने पर मजबूर होना पड़ा।
इस प्रकार चुनाव के हर चक्रव्यूह को सफलता पूर्वक अशोक गहलोत ने तोड़ा ओर सीधी विजयश्री प्राप्त की थी।

-:एक प्रयोग राजस्थान में कैबिनेट मंत्री गहलोत।

कांग्रेस हाई कमान अशोक गहलोत को प्रदेश स्तर पर परखना चाहते थे और उन्होंने अशोक गहलोत को राजस्थान में भेज दिया।राजस्थान में वे जून 89 से नवम्बर 89 तक गृह मंत्री के पद पर आसीन हुए।जब भी वे मुख्यमंत्री के पास जाते तो उनकी नजरें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिक जाती और हृदय उस कुर्सी को पाने के लिए हिलोरें लेता था।गहलोत मुख्यमंत्री के सामने बैठने के लिए जन्मे ही नहीं तो मुख्यमंत्री को मंत्री पद का त्यागपत्र दे कर पुनः केंद्र में चले गए।उन्होंने मानसिकता बनॉली के बनेंगे तो मुख्यमंत्री ही बनेंगे।मुख्यमंत्री के अधीन नहीं।
-: केंद्रीय मंत्रिमंडल में गहलोत

केंद्रीय मंत्रिमंडल में अशोक गहलोत को सर्व प्रथम श्रीमती इंदिरा गांदी ने आपको पर्यटन व नागरिक उड्डयन मंत्रालय का कार्य 1982 मे सुपुर्द किया था।श्रीमती गांधी आपकी कार्यशैली ओर व्यवहार से बहुत प्रभावित थी।उनके बाद जब राजीव गांधी से सत्ता संभाली तो वे ही पद इनके पास रखे गए और एक विभाग खेल मंत्रालय और 1984 में दे दिया।
बाद में आप पी वी नरसिंघा राव केविएट में कपड़ा मंत्री के रूप में 1991 से ले कर 1993 तक रहे।
कांग्रेस पार्टी में भी केन्द्रिय महामंत्री तक रहे।
एक जन नेता का नाम है जादूगर अशोक गहलोत वे खुद कहते हैं कि यह सब जादू का ही कमाल है।जादू का कमाल उनका जादू मतदाताओं पर सर चढ़कर बोलता है।
अशोक गहलोत उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है जो कहते हैं कि हमारे समाज मे एकता नहीं है।आपको पता होगा कि अशोक गहलोत का समाज कोई बहुत बड़ा समाज नहीं है और न बहुसंख्यक समाज है जो तीन बार मुख्यमंत्री बन गए।पांच बार सांसद और पांच बार विधायक बन गए।अगर किसी को राजनीति करनी है तो सेवा समपर्ण भाव से करते हुए अपना लक्ष्य नर्धारित करें।वोट 36 कौम देती है एक चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।राजस्थान के दो बार मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर रहे थे।उनका सामाजिक जनसमुदाय तो नगण्य है।

निरन्तर