

जयपुर,।मुक्त मंच की 68वीं मासिक गोष्ठी ‘‘अभिव्यक्ति की आजादी और संवैधानिक संस्थाओं की स्वाता ‘‘ विषय पर आयोजित की गई। गोष्ठी के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कथाकार साहित्यकार डॉ. हेतु भारद्वाज ने कहा कि जनता को अज्ञानी और उदासीन समझना लोकतंत्र के लिए सर्वाधिक घातक है। जनता को कमतर आंकना लोकतंत्र को कमजोर करना है। उन्होंने कहा कि संवैधानिक संस्थाएं ही लोकतंत्र को मजबूत कर सकती है। डॉ भारद्वाज ने कहा कि गांधीजी जैसी संवेदनशीलता की आज महती आवश्यकता है और उसी के आधार पर लोकतंत्र को जीवंत और जागृत बनाया जा सकता है। प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. नरेन्द्र शर्मा ‘कुसुम‘ ने कहा कि विचारों की अभिव्यक्ति, समाज के लिए एक जरूरी आयाम है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी एक संवैधानिक अधिकार है जिसकी यथासंभव रक्षा की जानी चाहिए। लोकतंत्र में जब निरंकुशता आ जाती है तो अभिव्यक्ति दुष्प्रभावित होती है और वह संवैधानिक निकायों की स्वायत्तता पर प्रभाव डालती है। ऐसे में अभिव्यक्ति का दमन नहीं होना चाहिए चाहे वह सत्ता के प्रतिरोध में ही क्यों न हो। मुक्त मंच के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार श्री श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में ही अभिव्यक्ति की आजादी को मुखरता से व्यक्त किया गया है कि हम न्याय, समता, समानता और बंधुत्व, स्वतंत्रता के लिए कार्य करेंगे और इसके नियमन के लिए संवैधानिक संस्थाओं की स्थापना की गई। इसके विपरीत प्रतिपक्ष को डराने-धमकाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है जो असंवैधानिक है। प्रखर पत्रकार सुधांशु मिश्र का कहना था कि आज हर व्यक्ति और संवैधानिक संस्थाओं के वर्चस्व की लड़ाई तीव्र होती जा रही है जबकि ये संस्थाएं ‘चेक और बैलेंस‘ के लिए बनाई गई थी। उन्होंने कहा कि राजनीति और धर्म के घालमेल के कारण हिंसा को महिमामंडित करने की होड़ मची हुई है। यह अमानवीय प्रवृत्ति है जिस पर रोक लगनी चाहिए। प्रगतिशील विचारक राजेश अग्रवाल ने कहा कि छल-छद्म और कपट के कारण संस्कृति का प्रदर्शन अधिक हो रहा है। सरकार-जनता के प्रति असहिष्णु और असंवेदनशील हो गई है। यह लोकतंत्र के प्रतिकूल है। राजस्थान डांग विकास बोर्ड के पूर्व चेयरमैन डॉ सत्यनारायण सिंह ने कहा कि आज भी हम सामंती सोच से बाहर नहीं निकले हैं। लोकतंत्र को सुदृढ़ बनाने के लिए लोक शिक्षण जरूरी है। आज अभिव्यक्ति के खतरे बढ़ गए हैं। आईएएस (रि.) अरुण कुमार ओझा ने कहा कि प्रजातंत्र में प्रजा ही मालिक होती है और राजकीय अधिकारी लोकसेवक होते हैं। इसलिए प्रजा को सरकार से प्रश्न पूछने और अपनी बात कहने का प्रछन्न अधिकार है। लोकतंत्र तभी मजबूत होता है जब जनता निर्भय होकर अपनी बात कहती है। वरिष्ठ व्यंग्यकार साहित्यकार फारूक आफरीदी ने कहा कि संवैधानिक संस्थाओं पर संकट मंडरा रहा है और उनका दुरुपयोग लोकतंत्र विरोधी कृत्य है। जीवन में सभ्यता, शालीनता तिरोहित होती जा रही है। शीर्ष नेतृत्व का दायित्व है कि देश भक्ति और समाज की गरिमा को नष्ट न होने दे। पूर्व बैंकर इन्द्र श्रीमाली ‘अमर‘ ने कहा कि बच्चों को निर्भीक बनाना हमारा दायित्व है पर उन्हें हम अपना गुलाम बनाएं रखना चाहते हैं। उन्होंने कहाकि सरकार हमेशा यह चाहती है कि उससे कोई सवाल नहीं किया जाए। इंजीनियर डी.पी. चिरानिया ने कहा कि प्रजातंत्र या लोकतंत्र सब कागजों में ही अच्छे लगते हैं। विडम्बना यह है कि किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि जनता को जागरूक बनाया जाए। सरकार भी अपनी जिम्मेदारी समझे। वरिष्ठ स्तम्भकार ललित अकिंचन ने कहाकि आज सारा विश्व तानाशाही की ओर अग्रसर है और सभी शीर्षस्थ अपनी कुर्सी से चिपके रहना चाहते हैं। यदि हम अपनी शिक्षा प्रणाली में वांछनीय सुधार लाएं तो लोकतंत्र पर आए खतरे को टाल सकते हैं। विदूषी योग गुरू डाॅ. पुष्पा गर्ग ने कहाकि हिंसा और नफरत मानवता के लिए कलंक है। लोकतंत्र के हित में हमें अपने आचरण में वैचारिक शुद्धता लाने की जरूरत है।