

– डीजीपी को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश
– दरोगा और जमादार के खिलाफ झंझारपुर थाने में मामला दर्ज ।
– अनमोल कुमार
पटना।न्यायिक व्यवस्था पर करारा चोट करते हुए न्यायालय की गरिमा को तार तार करने वाले बिहार पुलिस के खिलाफ पटना उच्च न्यायालय ने सख्त रुख्त अख्तियार कर लिया है । पटना उच्च न्यायालय ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है और राज्य के गृह सचिव, मुख्य सचिव, प्रधान सचिव को नोटिस जारी करते हुए 26 नवंबर को राज्य के पुलिस महानिदेशक को कोर्ट में हाजिर होने का हुक्मनामा जारी किया है।
इस मामले को लेकर बीती रात मधुबनी के जिला जज और दरभंगा के आई जी झंझारपुर में कैंप करते रहे और मामले की गंभीरता को देखते हुए अंततः दरोगा और पुलिस जमादार के खिलाफ झंझारपुर थाना में कांड संख्या 255 /21 के तहत नामजद प्राथमिकी दर्ज की गई ।प्राथमिकी में एडीजे अविनाश कुमार ने यह कहा है कि घोघरडीहा के थाना अध्यक्ष गोपाल कृष्ण यादव और पुलिस जमादार अभिमन्यु ने यह कहते हुए कि तुम मेरे बॉस एसपी को नोटिस जारी करते हो आज तुम्हें औकात बता देंगे और मारपीट शुरू कर दी ।रात लगभग 1:00 बजे प्राथमिकी दर्ज की गई उसके बाद दोनों पुलिसकर्मी लापता हो गए। इधर पटना उच्च न्यायालय के राजन गुप्ता की बेंच ने इस मामले पर कड़ा संज्ञान लिया और देर रात राज्य के मुख्य सचिव, प्रधान सचिव को नोटिस जारी करते हुए उन्हें इस मामले पर स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया ।इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने राज्य के पुलिस महानिदेशक एस के सिंघल को 26 नवंबर को कोर्ट में शशरीर उपस्थित होकर स्थिति स्पष्ट करने को कहा है ।इधर इस मामले को लेकर झंझारपुर में वकीलों ने हड़ताल शुरू कर दी और कहा कि जब तक दोनों पुलिसकर्मियों को जेल नहीं भेजा जाएगा वह काम पर नहीं जाएंगे ।दरअसल एफ आई आर में जो धारा लगाया गया है उसमें दो धाराएं ऐसी हैं जिसमें जमानत का अधिकार सिर्फ कोर्ट को है ।ऐसे में आरोपित दारोगा श्री यादव और उसके एक सहयोगी को न्यायालय द्वारा राहत की कोई उम्मीद नहीं है। इस मामले में दरोगा कृष्ण गोपाल यादव और उनके सहयोगी पुलिस जमादार को निलंबित किया गया या नहीं इसकी जानकारी देने के लिए मधुबनी के एसपी से लेकर दरभंगा के आई जी तक कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है ।हालात यह है कि सारे पदाधिकारी पत्रकारों का टेलीफोन रिसीव नहीं करते।
बहरहाल,यह तो तय है अब इन दोनों पुलिसकर्मियों को जेल जाने से कोई नहीं रोक सकता ।हम आपको बता दें कि न्यायालय से जमानत का अधिकार कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है बल्कि यह न्यायालय की दया पर निर्भर करता है कि वह आप को जमानत दे या नहीं।
