

बताया जाता है कि कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सिंधिया की शिकायत की थी। ऐसे में सिंधिया भी हाईकमान के सामने अपनी बात रखने के लिए दो दिनों से सोनिया गांधी से मिलने का वक्त मांग रहे थे, पर उन्हें मुलाकात का मौका नहीं मिला। ऐसे में रविवार को ही सिंधिया को इस बात का आभास हो गया कि राज्यसभा का टिकट मिलना मुश्किल हो सकता है। इसके बाद सिंधिया कैंप में खलबली मची और सारी रात चली सियासत के बाद अंतत: सिंधिया ने कांग्रेस से दूरी बनाने के लिए अपने समर्थकों को दिल्ली तलब कर लिया।


सिंधिया के गुस्से का उबाल एक दिन का घटनाक्रम नहीं
सोमवार सुबह होते-होते सारे समर्थक दिल्ली में एकत्र हो गए और शाम को सभी ने चार्टर्ड फ्लाइट से बेंगलुरु के लिए उड़ान भर दी। बताया जाता है कि सिंधिया के गुस्से का उबाल एक दिन का घटनाक्रम नहीं है। इसे परवान चढ़ने में पूरे 20 दिन लगे है। तीन सप्ताह से वह संगठन को इस बारे में लगातार संकेत दे रहे थे, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। आखिर उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया। देर रात शाह के निवास पर बैठकसोमवार देर रात अमित शाह के निवास पर भाजपा नेताओं की महत्वपूर्ण बैठक हुई। इसमें सिंधिया की भाजपा में संभावना और भूमिका पर विचार किया गया।
आज शाम सात बजे होने वाली भाजपा विधायक दल की बैठक अहम
सिंधिया मंगलवार को दिल्ली में ही अथवा भोपाल में शाम सात बजे होने वाली भाजपा विधायक दल की बैठक में पार्टी में शामिल हो सकते हैं। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को विधायक दल का नेता चुना जा सकता है। सिंधिया को भाजपा ने राज्यसभा सदस्य के साथ केंद्रीय मंत्री बनाने का भरोसा दिया है। हालांकि, इसकी कोई भी सूत्र पुष्टि नहीं कर रहा है।


राज्य की दलीय स्थिति
मप्र विस की कुल सीटें-230-दो सीटें रिक्त, प्रभावी संख्या 228-अभी बहुमत का आंकड़ा 115। सत्तापक्ष- कांग्रेस 114,निर्दलीय- 04,बसपा- 02, सपा-01(इन्हें मिलाकर कांग्रेस के पास फिलहाल 121 विधायक हैं।) विपक्षी भाजपा 107-17 विधायकों के पाला बदलकर इस्तीफा देने पर कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ जाएगी।17 विधायकों के इस्तीफे के बाद ऐसा होगा गणित-विस की प्रभावी संख्या होगी 211-बहुमत के लिए जरूरी होंगे 106-चार निर्दलीय विधायकों ने भाजपा का साथ दिया तो भाजपा का आंकड़ा 111 -यानी बहुमत से पांच ज्यादा।


भाजपा विधायकों को एकजुट रखने की चुनौती
इस भारी उठापटक के बीच भाजपा पर अब अपने विधायकों को एकजुट बनाए रखने की चुनौती भी कम हो गई है। पार्टी के आपदा प्रबंधन से जुड़े सूत्रों का कहना है कि खासतौर पर कुछ कमजोर कडि़यों पर नजर रखी जा रही है। दरअसल, भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी और शरद कोल ने जिस तरह अपनी निष्ठा बदली उसे देखकर पार्टी अब ज्यादा सतर्कता बरत रही है।
