वन्य जीव-जन्तुओं, पक्षियों, मवेशियों एवं पशुपालकों की शरणस्थली ओरण-गोचर में हो रहे है अतिक्रमण, शासन-प्रशासन चेतनाशून्य,

बाड़मेर । राजस्थान के परिदृश्य में राज्य भर में लाखों बीघा में पसरी ओरण-गोचर हमारी सांस्कृतिक व धार्मिक विरासत होने के साथ-साथ पशुपालकों, मवेशियों, वन्य जीव-जन्तुओं, पशु-पक्षियों आदि के जीवन का आधार रही है । गावों में वर्षभर विशेषकर वर्षाकाल में मवेशियों के ठहरने व पशुपालकों के लिए पशुधन को सुरक्षित रखने के लिए ओरण-गोचर ही एकमात्र स्थान के रूप में आश्रय स्थली रही है । जहां पशुपालक वर्ग विशेषकर रेबारी जाति के लोग अपनी ‘रेवड़’ ( पशुओं का समूह) को इन स्थानों में ठहरा सुरक्षित आश्रय की पूर्ति करते है । ओरण-गोचर क्षेत्रों का उपयोग पशु चराई, ईमारती लकड़ियों तथा ईंधन, विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियां, चारा उत्पादन, वन्य जीवों की शरण स्थली, फल उत्पादन सहित कई प्रकार से सदियों से समुदाय में होता रहा है । ओरण गोचर के धार्मिक, सांस्कृतिक व आर्थिक महत्व ने जन-जन में अपार आस्था पैदा की है । ऐसे में ओरण-गोचर क्षेत्रों की अहमियत स्वतः ही बढ़ जाती है जबकि वर्तमान की आपाधापी व प्रतिस्पर्धा के जीवन में ओरण-गोचर क्षेत्रों पर दिनों-दिन अतिक्रमण की घटनाएं बढ़ती जा रही है । जिसको लेकर आम नागरिक व शासन-प्रशासन दोनों ही चेतनाशून्य होते नजर आ रहे है ।
ओरण का अर्थः-
‘ओरण’ शब्द की उत्पति ‘अरण्य’ से मानी जाती है । वहीं आम बोलचाल में इसे ऑण या आन से भी पुकारा जाता है । जिसका अर्थ शपथ या सौगन्ध होता है । पष्चिमी राजस्थान में देवी-देवताओं, वीरों, जुझारों, महापुरूषों आदि के नाम पर मवेशियों व वन्य जीव-जन्तुओं के निर्भय व स्वच्छन्द चरने व विचरण के उद्देश्य से सुरक्षित रखी गई भूमि को ओरण के नाम से सम्बोधित करते है ।
ओरण-गोचर में अतिक्रमण
जिले भर में सांस्कृतिक व धार्मिक आस्था के नाम पर लाखों बीघा में फैली ओरण गोचर साईटें इन दिनों अतिक्रमियों की नजर में है । वहीं कई हजार बीघा भूमि आज भी अतिक्रमियों के अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुकी है । जिसको लेकर कई मामले प्रकाश में आ रहे है । जिलें में चौहटन में ढ़ोक , मुंगेरिया सहित कई विस्तृत भू-भाग में फैली ओरण साईट है वहीं जिले में गडरारोड़ तहसिल में सबसे ज्यादा गोचर भू-भाग विद्यमान है । मगर इन दिनों वहां भी गोचर में अतिक्रमण होने के मामले पटल पर आ रहे है । ऐसे में समय आपाधापी में हमारी विरासत, हमारी धरोहर के रूप में जानी जाने वाली ओरण-गोचर कहीं लुप्त ही नही हो जाये । जिसके लिए जहां आमजन को पुनः आगीवाण बनकर ओरण-गोचर संरक्षण के प्रति के माहौल बनाना चाहिये वहीं जिला प्रशासन व राज्य सरकार को भी मनरेगा जैसी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से इन ओरण-गोचर क्षेत्रों को ग्रीन पार्क के रूप में विकसित कर मवेशियांें के लिए हरे चारे की समस्या खत्म करते हुए ओरण-गोचर को संरक्षण प्रदान करना चाहिये ।
ओरण-गोचर दिवस 26 अप्रैल को
बाड़मेर जिले की बाड़मेर पंचायत समिति की रानीगांव ग्राम पंचायत में वर्ष 2002 में ओरण गोचर को बचाने को लेकर विशाल स्तर पर ओरण बचाओ आन्दोलन की मुहिम छेड़ी गई जिसके परिणामस्वरूप 26 अप्रैल को खसरा संख्या 515.5 की तकरीबन 130 बीघा भूमि को अतिक्रमियों से मुक्त कराया गया । जहां अतिक्रमियों की ओर से दो क्रेशर व एक पेवर प्लांट लगाये जाने थे जिसके विरूद्ध में रानीगांव ही नही बल्कि आप पडौस के रड़वा, उण्डखा, सेगड़ी, रानीगांव कलां, बलाउ, तारातरा, निम्बड़ी, बालेरा सहित कई गावों के सैंकडों बजुर्गों, युवाओ और महिलाओ ंने आगे आकर दो क्रेशर व एक पेवर प्लांट के आंवटन को निरस्त करा ओरण गोचर को बचाने का महता उपक्रम किया । आंवटन निरस्त होने के बाद ओरण को सुरक्षित रखने को लेकर तारातरा मठ के महन्त श्री मोहनपुरी महाराज ने ओरण भूमि के दूध की कार देकर हजारों ग्रामीणों को ओरण-गोचर बचाने की शपथ दिलाई जिसकी पालना में वहां के ग्रामीण आज भी बड़ी शिद्दत से ओरण-गोचर को बचाने का कार्य कर रहे है । जिसकी स्मृति में प्रतिवर्ष 26 अप्रेल को धर्मपुरी की ओरण राणीगांव में ओरण दिवस का आयोजन किया जाता है । इस अवसर पर ओरण के पेड़-पौैधो को रक्षा सूत्र बांधे जाते है व ओरण की पूजा-अर्चना की जाती है । ओरण दिवस पर सैंकड़ों ग्रामीण व युवा ओरण संरक्षण की शपथ लेते है ।
ओरण पर साहित्य
ओरण गोचर को बचान व संरक्षण को लेकर बाड़मेर जिले में सर्वप्रथम बाड़मेर नेहरू नवयुवक मण्डल के तत्कालीन युवा समन्वयक श्री भुवनेश जैन ने ओरण पर एक शोधपरक पुस्तक ‘ओरण हमारा जीवन’ लिखी । वहीं बाड़मेर जिले में ओरण बचाओ आन्दोलन को पिछले 20 वर्षों से लगातार आगे बढ़ा रहे आन्दोलन के संयोजक मुकेश बोहरा ‘अमन’ ने पुस्तक ‘ओरण हमारी धरोहर’ के माध्यम से आम जीवन में ओरण के प्रति चेतना व जागरूकता लाने का प्रयास किया । वहीं पुस्तक में सम्पूर्ण बाड़मेर जिले में विद्यमान ओरण गोचर की वस्तुस्थिति को इतिहास में प्रथम बार सबके सामने रखा जिसने जन-जन में पुनः ओरण-गोचर जैसी सांस्कृतिक धरोहर को बचाने को जागृत किया ।

‘‘ओरण-गोचर में हो रहे अतिक्रमण प्राकृतिक सन्तुलन के लिहाज से बेहद ही चिन्तनीय है मगर आमजन व शासन-प्रशासन में चेतनाशून्य स्थिति इससे भी भंयकर खतरनाक है । पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें ओरण-गोचर क्षेत्रों के सरंक्षण पर ध्यान देना नितान्त आवश्यक हो गया है ।

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