भारत के लोकतंत्र में धनबल,बाहुबल,सुरक्षा बलों, गोदी-मीडिया बल और एक तरफा चुनाव आयोग सहित तमाम संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग करके चुनाव जीतना असंभव है: संयुक्त किसान मोर्चा

गुरुग्राम, हरियाणा (दिनेश शर्मा “अधिकारी”)। संयुक्त किसान मोर्चा,शांहजहापुर-खेङा बोर्ड र जयपुर-दिल्ली हाइवे पर शुक्रवार 7 मई को 145 वे दिन भी किसानों का धरना प्रदर्शन समूह चर्चा रोजा इफ्तार कोरोनावायरस से बचाव के उपाय करते हुए आम दिन की तरह जारी रहा । समूह चर्चाओं में भागीदारी करते हुए किसानों ने अभी-2 सम्पन्न हुये “5 राज्यों के विधानसभा चुनावों और उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनावों के परिणामों और उनके सबक” पर चर्चा करते हुए कहा कि पश्चिम बंगाल, केरल और अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों एवं यू पी के पंचायत चुनावों का फैसला देश के राजनीतिक भविष्य के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है। यह जनादेश सिर्फ तात्कालिक राहत ही नहीं देता बल्कि वर्तमान दशा से देश के बाहर निकलने की धुंधली-सी राह की ओर भी संकेत करते हैं। इस राह को पहचान करने के लिए हमें ‘कौन जीता’ और ‘कौन हारा’ की जगह यह पडताल करनी होगी आखिर क्या दांव पर था और ‘क्या जीता’ और ‘क्या हारा’?

इन चुनावों में लोकतंत्र का माथा ऊंचा भले ही ना हुआ हो लेकिन भाजपा-आरएसएस और केन्द्र की मोदी-सरकार के घमंड का सिर नीचा जरूर हुआ। उनको घमंड यह हो गया है कि हमने जिस किले पर उंगली रख दी उसे जब चाहे फतह करके दिखाएंगे, वे अपराजेय हैं। घमंड यह भी कि बिना बंगाली, मलयाली और तमिल सहित देश की विविध संस्कृतियों में रचे बसे,उनको आत्मसात कर उनका हिस्सा बने ,सिर्फ अपनी चालाकियों ,मक्कारियों और साम्प्रदायिक,जातीय ध्रुवीकरण की राजनीति के आधार पर वहां के मतदाताओं का मत जीता जा सकता है। घमंड यह भी कि धनबल,बाहुबल,सुरक्षा बलों, गोदी-मीडिया बल और एकतरफा चुनाव आयोग सहित तमाम संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग करने के बल पर चुनाव जीता जा सकता है।

भाजपा-आरएसएस और स्वयं मोदी-शाह को घमंड यह भी है कि बिना स्थानीय नेतृत्व, जनसमर्थन और चेहरे के सिर्फ मोदी के सहारे जनादेश का हरण किया जा सकता है। परंतु इस घमंड को बंगाल, केरल और तमिलनाडु की जनता ने चकनाचूर करके रख दिया है। हालांकि सिर्फ इन चुनाव परिणामों से ही इससे लोकतांत्रिक मर्यादा स्थापित नहीं हो जाएगी।इसके लिए अभी और भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इन चुनावों की जीत के बाद और उससे पहले भी पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार की जा रही हिंसा हमें याद दिलाती है कि लोकतांत्रिक मर्यादाओं को स्थापित करने के लिए बहुत सारा काम किया जाना अभी बाकी है। इन चुनावों ने बस इन प्रयासों की ओर एक इशारा किया है या कह सकते हैं कि रास्ता खोल दिया है।

इन चुनावों में हालांकि धर्मनिरपेक्षता की जीत हो गई हो ऐसा नहीं है,लेकिन देश में नग्न होकर नाच रही सांप्रदायिक ताकतों की सफलता की एक सीमा जरूर बंधी है, लगाम लगने की उम्मीद बंधी है। केरल,पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के इन चुनावों में यह साबित हो गया है कि सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ डर और नफरत फैलाकर देश के सभी हिस्सों में सभी हिंदुओं को गोलबंद करने के भाजपा-आरएसएस के मंसूबे कामयाब नहीं हो सकते हैं । उधर असम और बंगाल में कांग्रेस द्वारा भी अल्पसंख्यक सांप्रदायिक पार्टियों के साथ गठबंधन करके साम्प्रदायिक राजनीति का जबाब साम्प्रदायिक राजनीति से देने की राजनीति की असफलता ने धर्मनिरपेक्ष पार्टियों की गलत राजनीति को भी सबक सिखाया है। लेकिन अत्यंत दर्दनाक और खेद की बात यह है कि इन चुनावों में आमतौर पर सभी जगहों पर और खासतौर पर असम और पश्चिम बंगाल में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण और द्वेष का जो राजनीतिक-खेल भाजपा-आरएसएस द्वारा खेला गया है उसका खामियाजा आने वाले समय में ना सिर्फ ये राज्य अपितु पूरा देश बहुत लम्बे समय तक भुगतेगा। हालांकि केरल और तमिलनाडु में वहाँ के समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और जनांदोलनों और अन्य मौजूद भौतिक परिस्थितियों के कारण तमाम प्रयासों के बावजूद इन ताकतों को सफलता नहीं मिल पायी।

इन चुनाव मे सरकारों का कामकाज तो जैसे मुद्दा ही नहीं था,लेकिन इन चुनावों में हवाई मुद्दों की हवा निकली है। अगर भाजपा-आरएसएस बंगाल,केरल और तमिलनाडु में से एक भी बडे राज्य में चुनाव जीत जाते तो सत्ता के प्रचार तंत्र द्वारा पूरे जोर शोर से देश भर में यह प्रचार किया जाता कि देश की जनता सरकार की आर्थिक नीतियों से, अपनी आर्थिक स्थिति से बहुत खुश है इस महामारी के दौर में मोदी सरकार के कामकाज से भी देश संतुष्ट है।यह दावा भी किया जाता कि नागरिकता कानून को जनसमर्थन हासिल है और देश के किसानों ने तीन किसान-विरोधी कानूनों का समर्थन करते हुए मान्यता दे दी है।परंतु इन चुनाव परिणामों ने इस मिथ्या प्रचार का मुंह बंद कर दिया है। हालांकि ये चुनाव इन ज्वलंत मुद्दों पर जनता का मोदी सरकार के खिलाफ कोई जनादेश नहीं है। परंतु यह तो कहा ही जा सकता है कि यह चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े गए और भाजपा-आरएसएस द्वारा राष्ट्रवाद के नाम पर पूरे देश को एक रंग में रंगकर अपने एजेण्डे को लागू करने की कोशिशों को जनता ने सफल नहीं होने दिया । उधर बिना जमीन पर काम किए बिल्ली के भागो छींका फूटने का इंतजार कर रही कांग्रेस भी पूरी तरह खारिज हो गई।आज इस भयानक महामारी से लड़ रहे देश के नागरिक अपने दम पर बेड, वैक्सीन और ऑक्सीजन के ढूंढते-भटकते अपने परिजनों को खोते हुये नेताओं और सरकारों को भी ढूंढ रहे हैं। आज ऑक्सीजन, दवा से लेकर अंतिम संस्कार तक के लिए न्यायालयों को हस्तक्षेप करना पड रहा है। संवेदनहीन सरकार इस भयानक समय में भी अपनी सुख सुविधाओं के विस्तार करने नये महलों, राजप्रासादों के निर्माण में लगी है।

एक बार फिर लॉकडाउन का शिकार हुए मजदूर इस मजबूरी में अपने जीवन निर्वाह हेतु कोई रास्ता ढूंढ रहे हैं। पिछले जून माह से आंदोलन कर रहे और लगभग छह महीने से देश की राजधानी के चारों ओर सड़कों पर पड़े किसान अपनी सरकार से आने वाले उस एक फोन का इंतजार कर रहे हैं, जो उनकी मांगों को पूरी करके उनकी आशंकाओं को दूर कर दे। सही मायने में देश आज एक राजनीतिक विकल्प की तलाश कर रहा है।

इन चुनावों में संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने भाजपा-आरएसएस के विरोध में जो रैलियां की हैं,उनसे केन्द्र-सरकार को एक ट्रेलर तो देखने को मिल ही गया है और यदि सरकार अभी भी किसानों की मांगों को नहीं मानती है तो यह तय है कि आने वाले समय में देश के किसान सत्ता के नशे में मदमस्त देशी-विदेशी पूंजीपतियों व कार्पोरेट घरानों की दलाल भाजपा-आरएसएस की अधिनायकवादी सरकार को पूरी फिल्म दिखाते हुए पूरे देश से इनका सफाया करने को भी तैयार हैं।

शाहजहाँपुर-खेड़ा बॉर्डर पर रोजा इफ्तार का दौर शुक्रवार को रोजा-इफ्तार के चौबीसवाँ दिन श्रद्धांजलि सभा, समूह चर्चाओं और रोजा-इफ्तार में अमराराम, रामकिशन महलावत, राजाराम मील, बलवीर छिल्लर, तारा सिंह सिद्धु, पेमाराम, गणपत सिंह, मा.रघुवीर सिंह, ज्ञानी राजवीर सिंह, महावीर सिंह सरपंच, अनिल भेरा, जय सिंह जनवास, ओम प्रकाश, कुलदीप मोहनपुर, ज्ञानीराम, बाबा जैमल सिंह, बाबा सुखदेव सिंह, पृथ्वी सिंह, जापान सिंह, मौलाना दिलशाद, अमजद भाई, फजरु भाई, साजिद भाई, अब्दुल भाई,, पवन दुग्गल, अंकुश सोलंकी,नवीन नागौर, हरीशंकर मांडिया,चिरंजी लाल,सुरेन्द्र खोखर, राकेश फगेडिया,काला मंडार,लखवीर सिंह,बेअंत सिंह,जितेन्द्र मोमी, बहादुर सिंह,हृषिकेश कुलकर्णी, सतपाल यादव, निशा सिद्धू, विक्रम राठौड़ समेत कई साथी शामिल हुए।

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