

– सी. एम. मारोठिया
आप माने या ना माने मीडिया की कोई सरकारी नोकरी नही होती । लेकिन दुष्काल में भी सरकार की आवाज बुलंद रखते है लेकिन ये कड़वा सच है सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने जहाँ मार्च से लगे लॉक डाउन से आज दिनांक छोटे मझोले अखबारों की ओर लॉक डाउन में सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाके चलने वाले श्रमजीवी पत्रकारों की कोई सुध नही ली। ना ही सरकार ने उन्हें कोई भी तरह की सुविधा उपलब्ध कराई।यहाँ तक कि कई श्रमजीवी पत्रकारों को नोकरी से भी हाथ धोने पड़े। ऐसे विकट परिस्थितियों में बात करे तो सिर्फ एक ही विभाग की जिसको कुबेर का खज़ाना कहा जाता है जी हाँ उसका नाम है सूचना एवं जनसंपर्क विभाग जहां सिर्फ उन बड़े संस्थानों को बड़े अखबारों पर ही विभाग के छोटे बाबू से लेकर सभी मेहरबान रहते है बात करते है इस विभाग के पक्षपात की अभी हाल ही में जारी हुए सरकारी मोटे विज्ञापनों की । क्या नियम 11/5 केवल बड़े अखबारों पर या उनके चहेतो पर ही लागू होता है ? जो नियम 11/5 की श्रेणी में केवल ये ही आते है ? वैसे तो संविधान में सभी को बराबर समानता का अधिकार प्रदत है फिर विभागीय अधिकारी ऐसा क्यों करते है।?


अक्सर छोटे अखबार भी मंत्री जी के नाम उनके कायार्लय में विज्ञापन समन्धित पत्र देते है उनका कहना है ये काम हमारे विभाग के pro जनसम्पर्क अधिकारी देखते है आप उनसे ही पता करो हमने तो आपका लेटर भेज दिया है या सूचना जनसम्पर्क विभाग में पता करो।लेकिन छोटे बाबू का कहना है लेटर हम तक नही आता तो पत्र गायब कहा हो जाते है कहि ना कहि यह तर्क सटीक है कि भोलाराम का जीव विभागीय फाइलों में दफन कर दिए जाते है जहाँ उन्हें वजन नजर नही आता!जहा वजन नजर आता है वो आप सब के सामने है जिन्हें हालही में वजनदार विज्ञापन जारी किए गए आखिर विभाग के अधिकारी स्पष्ठ करे । जो अखबार विज्ञापन के लिए मान्यता प्राप्त है चाहे उनकी विभागीय दर कम है उनपे क्या नियम 11/5 लागू होता है या नही होता? या केवल ऊची एप्रोच वालो पर ही होता है या नियम 11/5 विभाग से बिना मान्यता प्राप्त वाले अखबारों पे होता है ? ………क्रमशः
