– दलालों के माध्यम से करोड़ों डकारे मिलीभगत का खेल
आगरा बसपा सरकार मैं बनाई गई काशीराम कॉलोनी में नगर निगम डूडा विभाग की मिलीभगत से ताज नगरी फेस टू में बने 608 कांशीराम आवासों को नगर निगम ढूंढा व उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद निर्माण खंड 28 की मिली भगत से कांशीराम आवासों को दलालों के माध्यम से ₹300000 में फर्जी तरीके से बेचकर दोनों विभागों ने लगभग करोड़ों रुपए का घोटाला करना सामने आया है स्थानी निवासियों का कहना है के लॉकडाउन के समय लगभग 41 आवास फर्जी कब जा पत्रों पर के आधार पर उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद निर्माण खंड 28 के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी पंडित नरेंद्र की मौजूदा में आवासों की देखभाल की जिम्मेदारी दी दी गई लगभग 140 आवास निरस्त हुए जिसकी चाबी नरेंद्र नामक चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी पर रहती थी सबसे अहम बात यह है कि लोग फर्जी कब्जा पत्र देते गए और नरेंद्र पंडित आवासों की चाबी आंख बंद कर देते रहे और सरकारी आवासों पर भू माफिया का कब्जा कर आते रहे पड़ताल में पाया गया कि एक ही आवाज को दो व्यक्तियों को कब्जा पत्र दिया गया कॉलोनी वासियों और स्थानीय निवासी महिलाओं का कहना है कि लोग डाउन में सभी सरकारी दफ्तर बंद थे तो कब्जा पत्र आए कहां से जबकि एक सरकारी विभाग के कर्मचारी ने बगैर जांच के लगभग 40 आवास की चाबियां देकर कैसे सरकारी आवास पर कब्जा करा दिया वायरल वीडियो में बताया जा रहा है कि नरेंद्र नामक कर्मचारी 1 किलो मिठाई का डिब्बा वह ₹1000 बतौर रिश्वत लेकर आवास पर कब्जा कर आता था कॉलोनियों वासियों का कहना है के नरेंद्र नामक कर्मचारी को ताजगंज पुलिस इस घोटाले में संलिप्तता देखकर उठाया था और लगभग 30 घंटे थाने में बिठा कर छोड़ दिया जब के वायरल वीडियो इस बात की गवाही दे रहा है कि उक्त कर्मचारी भ्रष्ट है कुछ आवासों को कुछ दिन पहले किराए पर भी उठा रखे थे जिनसे हर महीना किराया आता था अब सबसे बड़ा सवाल उठता है कि लॉकडाउन में लगभग छोटे तबके वह बड़े तबके का व्यक्ति दाने दाने के लिए मोहताज था सरकारी व स्वयंसेवी संस्थाएं खाने पीने के सामान को जनता तक पहुंचाने की मदद करनी थी तब इन आवासों को फर्जी तरीके से खरीददारों के पास नगद ₹300000 कहां से आया यह बड़ा जांच करने का विषय है आखिर यह लोग कितना सरकार को टैक्स देते हैं और अगर इनको कब्जा पत्र फर्जी है तो विभाग इन लोगों की मदद क्यों कर रहा है इससे तो इन विभागों की भ्रष्टाचार में संलिप्तता जाहिर होती है कि इन विभागों का फर्जी कब्जा पत्र देने में सहयोग है और लगभग सवा करोड़ का घोटाला है वहीं स्थानीय निवासियों ने यह भी बताया है कि दलालों के माध्यम से नीचे से लेकर ऊपर तक पहुंचती है रकम अभी भी कुछ आवासों पर भू माफियाओं का कब्जा है ।
डूडा के मकान आवंटन के नाम पर हुए घोटाले के मास्टर माइंड शोएब अंसारी सहित दो लोगों को गिरफ्तार करके पुलिस ने जेल भेजा दिया था। मुख्य आरोपित से पूछताछ में यह खुलासा हुआ था कि उसके संबंध डूडा के अफसरों से थे। पूर्व में उसने कई लोगों के लिए मकान आवंटित कराए थे। इस बार वहां से काम नहीं हुआ तो उसने फर्जी आवंटन पत्र बनाकर दे दिया था। मकानों पर कब्जा भी करा दिया। पीड़ित सभी लोगों से मकान खाली करा लिए गए थे। वे अपनी रकम वापसी के लिए गुहार लगाई थी।ताजनगरी फेस द्वितीय में डूडा ने गरीबों के लिए मकान बनाए हैं। पिछले दिनों वहां डूडा के कर्मचारियों ने निरीक्षण किया था। निरीक्षण के दौरान पाया गया था कि कई मकानों पर कब्जा हो गया है। वहां रहने वालों से बातचीत की गई तो उन्होंने आवंटन पत्र दिखाए। सभी फर्जी थे। डूडा ने ऐसे मकानों पर अपने ताले डाल दिए थे पीड़ितों ने एसपी सिटी कार्यालय में शिकायत की थी। डूडा से इस संबंध में रिपोर्ट मांगी गई थी। जांच के बाद डूडा अधिकारी ने ताजगंज थाने में अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। पीड़ितों ने पुलिस को बताया था कि उन्हें आवंटन पत्र नाई की मंडी निवासी शोएब अंसारी ने दिया था। ताजगंज और नाई की मंडी पुलिस की संयुक्त टीम ने शोएब अंसारी को गिरफ्तार किया था। उससे पूछताछ के बाद डूडा आवास में रहने वाले पप्पू को पकड़ा गया था। मकान आवंटन के लिए गरीबों को पप्पू ही शोएब के पास लेकर गया था। पूर्व में एसएसपी बबलू कुमार ने मीडिया को बताया था कि घोटाला सवा करोड़ के आस-पास का है।
दो आरोपित पूर्व में फरार थे। मुख्य आरोपित शोएब के डूडा में किससे संबंध हैं। पूर्व में उसने किसके माध्मय से गरीबों को मकान दिलाए थे अब सोचने वाली बात यह है कि डूडा विभाग में बैठे कर्मचारी व अधिकारी किस की शह पर घोटाले की रस्सी उसकी गर्दन तक नहीं पहुंच रही यह सोचने की बात है जबकि पूर्व में भी अनेकों बार ढूंढा विभाग के कर्मचारियों का कभी सर्वे के नाम पर जो कभी प्रधानमंत्री आवासीय योजना के नाम पर अवैध कमाई ब रिश्वतखोरी के वीडियो वायरल हो चुके हैं वीडियो में प्रधानमंत्री आवासीय योजनाओं मकान बनवाने के नाम पर 30 हजार तो कहीं 40000 रुपए की डिमांड करते व पैसे लेने के वीडियो वायरल हो चुके हैं लेकिन इन वीडियो को दरकिनार करते हुए भी जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी मारे बैठे हैं ऐसा क्यों यह सोचने की बात है