कांग्रेस ने कल अपना 138 वां स्थापना दिवस मनाया। लगभग 60 वर्षों तक देश व प्रदेशों में एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस अभी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। लोकसभा में बड़ा दल है मगर विपक्ष की मान्यता पाने जितने सांसद नहीं। राजस्थान, छत्तीसगढ़ व हिमाचल में ही उसका शासन है। छतीसगढ़ व हिमाचल छोटे राज्य है, केवल एक बड़ा राज्य राजस्थान ही उसके पास है, जिसमें भी पार्टी अंतर्कलह से झुझ रही है। बुरी हार झेल रही कांग्रेस अपने 138 वें स्थापना दिवस पर कुछ गम्भीर लगी और इस बात के संकेत दिए हैं कि वो अपने में बड़े बदलाव कर रही है। लोकतंत्र तभी मुस्कुराता है जब सत्ता के साथ मजबूत विपक्ष भी हो।
कांग्रेस पिछले काफी वर्षों से परिवारवाद का आरोप झेल रही है, क्योंकि गांधी परिवार का ही पार्टी नेतृत्त्व पर वर्चस्व रहा है। मगर इस बार के स्थापना दिवस से पहले कांग्रेस ने लोकतांत्रिक तरीके से संगठन के चुनाव कराए और राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बने। उन्होंने संगठन चुनाव में शशि थरूर को हराया। इस तरह से पार्टी का चुनाव कई लोगों ने तो पहली बार देखा, जो अच्छी शुरुआत माना जा सकता है। नहीं तो अब तक अध्यक्ष का मनोनयन ही होता रहा है।
खड़गे के अध्यक्ष बनने से काफी हद तक भाजपा और अन्य विपक्षी दलों के परिवारवाद के आरोप पर कुछ अंकुश जरूर लगा है, हालांकि अब भी गांधी परिवार का वर्चस्व कम नहीं हुआ है। नये अध्यक्ष खड़गे के तेवर भी तीखे हैं और वो अनुशासन के मामले में कड़ा रुख अपनाएंगे, ये उन्होंने जता दिया है।
इसी स्थापना दिवस से राहुल गांधी ने भी भारत जोड़ों यात्रा आरम्भ कर जनता से जुड़ने और पार्टी को मजबूत करने की दिशा में महती कदम उठाया है। अब सभी राजनीति के जानकर व कुछ विपक्षी नेता भी मानने लगे हैं कि इस यात्रा का असर हो रहा है। सबसे बड़ा असर तो राहुल की छवि पर पड़ा है। यात्रा के कारण अब राहुल को गम्भीर नेता मानने लगे हैं। कड़ी मेहनत से उन्होंने अपनी छवि को बदला है। जिसका लाभ अगले साल के राज्यों के चुनाव व उसके बाद के साल के आम चुनाव में होगा, ये अनुमान भी लगाया जा रहा है। भाजपा भी अब यात्रा व राहुल को गम्भीरता से लेने लगी है।
अगले साल राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक सहित दस राज्यों के चुनाव है। गौर से देखें तो वहां चुनावी तैयारी कांग्रेस ने पहले शुरू कर दी है। इन पांच राज्यों में से छत्तीसगढ़ को छोड़कर भारत जोड़ों यात्रा में राहुल निकले हैं और संगठन को मजबूत भी किया है। नेताओं के बीच की दूरियां कम करने का गम्भीर प्रयास किया है। जनता का भी इन पांच राज्यों में अच्छा समर्थन मिला है। अब देखना ये है कि ये समर्थन वोट में कितना तब्दील होता है।
खड़गे ने भी स्थापना दिवस के जलसे के बाद तुरंत पूर्वोत्तर राज्य, जहां चुनाव होने हैं, उनके लिए पर्यवेक्षक तय कर त्वरित निर्णय लिया है। मगर ये भी सत्य है कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ व कर्नाटक कांग्रेस के लिए अब भी चुनोती है। राजस्थान में गहलोत व पायलट की दूरियां कम भले ही दिख रही हो, मगर समाप्त तो नहीं हुई है। इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी बघेल व देव के बीच दूरी समाप्त होनी शेष है। कर्नाटक में भी सिद्धारमैया व शिवकुमार के मामले में परिणाम आना शेष है।
मगर अपने 138 वें स्थापना पर कांग्रेस नये तेवर में जरूर नजर आयी है। यदि तेवर के अनुरूप निर्णय हुए तो ही कुछ सकारात्मक उम्मीद बंधेगी। इसका निर्णय तो अगले साल के 10 राज्यों के चुनाव परिणाम करेंगे।

  • मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
    वरिष्ठ पत्रकार