गुजरात, हिमाचल, दिल्ली एमसीडी व उप चुनाव सबके लिए खुशी व चिंता साथ साथ लेकर आये हैं। इन परिणामों से वोटर ने सभी राजनीतिक दलों को एक संकेत दिया है कि वे अपने वोट लेने के तरीके को बदले, नहीं तो उलटफेर करने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। जीत की खुशियों के सभी दल प्रधानों को वोटर ने इस बार सकते में भी डाला है, जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है और अगले आम चुनाव से पहले वोटर की तरफ से एक चेतावनी भी है।
सबसे पहले बात गुजरात की। भाजपा ने यहां रिकॉर्ड जीत दर्ज की है और उसकी वो खुशी भी खूब मना रही है। इस बार भाजपा को यहां 182 में से 156 सीट मिली है, इससे पहले एक बार कांग्रेस को 149 सीट मिली थी। जिस कांग्रेस ने इतनी बड़ी जीत हासिल की हुई है उसे इस बार वोटर ने केवल 17 सीट पर समेट दिया है। भारी प्रचार, बेतहाशा खर्च और वादों का पिटारा खोलने वाली आप को वोटर ने नकारते हुए केवल 5 सीट पर जीत दी है। हालांकि गुजरात में मिले वोट के कारण आप को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा जरूर मिल गया है, इससे वो खुश हो सकती है।
गुजरात के चुनाव की जीत भाजपा को ये चेतावनी देती है कि केवल पीएम नरेंद्र मोदी का ही वोटर पर असर है, अन्य किसी का नहीं। ये किसी भी पार्टी के लिए चिंतन का विषय होना चाहिए। दूसरे जीत में अधिक भागीदारी इस बात की है कि विपक्ष के मतों का विभाजन आप व एमआईएम ने कराया, जिससे वोटर की मानसिकता बदली। कांग्रेस के नेताओं का साथ आना भी लाभ दे गया। भाजपा के मुद्दे में पीएम की छवि और विपक्ष की कमजोरी शामिल थे, विकास मुद्दा नहीं था। महंगाई, बेरोजगारी भी गौण थे। कांग्रेस को वोटर ने चेताया है कि बड़ें नेताओं का चुनाव से दूर रहना उचित नहीं। वहीं ये भी संकेत दिया है कि वोट बैंक का थॉट अब उसके पास नहीं। सांगठनिक स्तर पर कमजोरी नहीं चलेगी। विपक्ष में रहते हुए जन संघर्ष करने पड़ेंगे, तभी जनता भरोसा करेगी। आप को तो वोटर ने साफ साफ समझा दिया है कि फ्री का फार्मूला उसे प्रभावित नहीं करता। ठोस योजना ही प्रभावित करेगी। पीएम के गृह राज्य का फायदा भाजपा को मिला।
हिमाचल ने डबल इंजन की सरकार के भाजपा के फार्मूले को पराजित कर बड़ा संकेत दिया है। हर राज्य की अपनी समस्याएं है, उन पर फोकस करने पर ही वोटर प्रभावित होगा। नहीं तो वो अच्छे की उम्मीद में हर पांच साल बाद सरकार बदलता रहेगा। कांग्रेस ने यहां प्रियंका गांधी को उतारा, उसका लाभ मिला। यदि राहुल भी आते तो असर बढ़ता। चुनाव और नेता दूर रहे, ये सम्भव नहीं। कांग्रेस को जीत मिली उसमें भाजपा के असंतुष्टों का चुनाव लड़ना और अच्छे वोट लेना भी बड़ा कारण है, ये कांग्रेस को भूलना नहीं चाहिए। भाजपा और कांग्रेस दोनों के आलाकमान को चेतावनी भी है कि मनमर्जी नहीं, धरातल की राजनीति जरूरी है। अपने स्थानीय नेताओं की उपेक्षा वोटर को सहन नहीं। आप का फ्री का फार्मूला यहां बिल्कुल नहीं चला, उसे हिमाचल के वोटर ने पूरी तरह खारिज कर दिया।
दिल्ली एमसीडी चुनाव में भाजपा की हार वोटर की ये अभिव्यक्ति है कि केवल बातों से वो प्रभावित नहीं होता, काम होना जरूरी है। गंदगी के ढेर भाजपा को हराने का आधार रहे। मगर आप को भी उसने चेता दिया कि मूलभूत काम नहीं किये तो उसे बदलते देर नहीं लगेगी। कांग्रेस यहां भी कमजोर संगठन के कारण बुरी गत में पहुंच गई। धरातल पर जनता से जुड़े बिना उसका खड़ा होना मुश्किल है।
लोकसभा व विधानसभा के उप चुनाव ने भाजपा को ज्यादा चेताने का काम किया है। मैनपुरी भले ही मुलायम सिंह की सीट थी मगर भाजपा बड़े नेताओं के किले ध्वस्त कर चुकी है, इस बार उसे बड़ी पराजय झेलनी पड़ी। भाजपा को यूपी में खतौली की विधानसभा सीट भी हारनी पड़ी। जो पहले उसकी थी। भाजपा को वोटर ने सोचने का अवसर दिया है। रामपुर सीट उसने सपा से छीनी है, जो सपा के लिए सोचने की बात है। कोई सीट किसी की स्थायी नहीं, वोटर काम चाहता है। ये संकेत तो उसने दे दिया। राजस्थान में सरदारशहर की सीट कांग्रेस ने जीती, जो पहले भी उसकी थी। मगर ये 7 वा उपचुनाव है जो इस राज्य में भाजपा हारी है, वो भी बुरी तरह से। अगले साल यहां विधानसभा चुनाव है, यदि भाजपा ने असंतोष व गुटबाजी पर लगाम नहीं लगाई तो उसे मुश्किल होगी, ये चेतावनी वोटर की है। राजद और जेडीयू को बिहार की कुढ़नी सीट हरा वोटर ने राजनीतिक गणित से काम करने को शिकस्त दी है। भाजपा की इस सीट पर जीत महागठबन्धन को एक अलर्ट है। वोटर बड़ा है, ये इन चुनावों ने साबित कर दिया। वोटर अपने को सजग रखेगा तो राजनीतिक दलों को भी अपने में सुधार करना पड़ेगा। लोकतंत्र तभी मुस्कुरा सकेगा।

  • मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
    वरिष्ठ पत्रकार

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