विपक्षी एकता के लिए बहुप्रतीक्षित विपक्षी दलों की बैठक कल पटना में हो गई। मुख्य विपक्षी दल इस बैठक में शामिल हुए। कांग्रेस ने भी बैठक में भाग लिया और कहा कि हम भाजपा को हराने के मुद्दे पर एक हैं, उनका ये बड़ा राजनीतिक बयान है। जो दल राज्यों में एक दूसरे से सत्ता की लड़ाई लड़ते हैं, वे भी इस बैठक में साथ थे। इसे पटना बैठक की सफलता माना जाना चाहिए और भाजपा को सतर्क हो जाना चाहिए। मगर जब इस विपक्षी दलों की पीसी हुई तो उसमें आप के केजरीवाल व भगवंत मान नहीं रुके। जाने की जल्दी का कहकर निकल गये। जिस पर नीतीश जी ने सफाई भी दी।
ममता ने बैठक के बाद कहा कि हम एक साथ लड़ेंगे। उनका ये कहना भी गहरे राजनीतिक अर्थ को बताता है। क्योंकि बंगाल में उनका संघर्ष कांग्रेस व वाम दलों से है, जो इस बैठक में थे। इसका जजनीतिक अर्थ ये निकलता है कि कांग्रेस इस बात पर सहमत है कि जिस राज्य में जो क्षेत्रीय दल मजबूत है या सरकार में है, उसे वहां लोकसभा की ज्यादा सीट मिले। इसको भी पटना बैठक की सफलता मानना चाहिए।
पहले भाजपा के नेताओं की तरफ से ये कहा जा रहा था कि विपक्ष एक हो ही नहीं सकता। पटना बैठक केवल फोटो शेसन है। उनके बयानों के विपरीत नतीजा रहा है इस बैठक का। आप को छोड़कर बैठक में शामिल सभी विपक्षी दलों ने प्रेस के सामने एक होकर लड़ने के प्रति प्रतिबद्धता जताई। इसके बड़े राजनीतिक निष्कर्ष निकलेंगे। विपक्ष की एकता के लिए हुई इस बैठक से एक बात तो स्पष्ट हो गई कि नीतीश समूचे विपक्ष को एक साथ लाने की क्षमता रखते हैं। जब कांग्रेस के खिलाफ जनता पार्टी बनी तब भी बिहार के जे पी ने ही विपक्ष को एक किया था। नीतीश विपक्ष के बीच एक धुरी बनकर उभरे हैं और वो अपनी भूमिका को लेकर गम्भीर भी है।
दूसरी बड़ी बात ये उभरी की विपक्ष की एकता कांग्रेस के बिना सम्भव ही नहीं है। ये बात आप को छोड़कर सभी विपक्षी दल मानते है। आप चूंकि अपना पक्ष रखे बिना पटना से निकल गई, इसलिए उसकी सहमति मानी नहीं जा सकती।
मगर एक नकारात्मक पहलू भी इस बैठक का रहा। वो था बसपा की अनुपस्थिति। मायावती यदि विपक्ष के साथ रहती तो विपक्ष को मजबूती मिलती। मगर मायावती को बुलाया ही नहीं गया। आप का कदम उसके लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। उसकी कांग्रेस से नाराजगी है और वो पहले दिल्ली सरकार के अधिकारों को कम करने वाले अध्यादेश पर उनका समर्थन चाहती है, जिस पर कांग्रेस चुप है। मगर इस आपसी टकराहट में वो दूसरे विपक्षी दलों का समर्थन खो देगी। दूरियां तो कांग्रेस से ममता, अखिलेश की भी है मगर भाजपा को हराने के मुद्दे पर वे साथ भी है।
पटना की बैठक ने विपक्षी एकता का बीज आरोपित किया है, वो भी सफलतापूर्वक। अब इस पर पौधा खिलेगा या नहीं, ये शिमला में होने वाली अगली बैठक में स्पष्ट होगा। जिसको लेकर खड़गे, राहुल, ममता, पंवार, उद्धव आदि ने उम्मीद जताई है। मगर इस बैठक के बाद भाजपा को भी सोचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। अब वो विपक्ष को यदि हल्के में लेगी तो उसे नुकसान भी हो सकता है।
– मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
वरिष्ठ पत्रकार

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