23 जून को पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक को बाहरी तौर पर भले ही सामान्य आंका गया, मगर अंदरखाने नीतीश, तेजस्वी, शरद पंवार ने राहुल से मिलकर बड़ी रणनीति बनाई। जो अब जाकर उजागर हो रही हैं। 17 – 18 जुलाई को बेंगलुरु में विपक्षी दल फिर मिल रहे हैं और इस बार उनके कुनबे में सात से आठ नये क्षेत्रीय दल भी दिखाई देंगे। जिनको कांग्रेस ने अपनी डिनर डिप्लोमेसी में भी बुलाया है। अभी उन दलों को सामने लाया नहीं गया है, ये दल कांग्रेस की तरफ से आयोजित डिनर में ही सामने आयेंगे। विपक्षी कुनबे के इस विस्तार ने भाजपा में हलचल पैदा कर दी है। भाजपा ने अपने डेमेज कंट्रोल के लिए हाथ पांव भी मारने आरम्भ कर दिए है।
विपक्षी दलों की बैठक को देखते हुए अब 18 जुलाई को भाजपा ने दिल्ली में एनडीए की बैठक भी बुलाई है। इसके लिए भी पुराने अपने सहयोगियों को वो साथ लाने के प्रयास में जुट गई है। चाचा पासवान को मंत्री बनाने से चिराग नाराज हो गये। पार्टी टूट गई और चिराग एनडीए से अलग हो गये। अब भाजपा फिर से उनको साथ ला रही है और चिराग ने साथ आने के संकेत भी दे दिए हैं। मगर उनके चाचा का क्या होगा, ये बड़ा सवाल है। वे फिर कैसे साथ रहेंगे, इस सवाल का जवाब तो भविष्य के गर्भ में है।
ठीक इसी तर्ज पर पंजाब में एनडीए छोड़कर गये अकाली दल को भी एनडीए में लाने के लिए भाजपा पूरा दमखम लगा रही है। इस तरह का माहौल भी बनाया गया मगर सुखविंदर बादल ने एनडीए में जाने के कयासों को एकबारगी खारिज कर दिया। मगर भाजपा अब भी उनको एनडीए में फिर से लाने के लिए लगी हुई है। क्योंकि पंजाब में भाजपा तो आप व कांग्रेस से पूरी तरह पिछड़ी हुई है। कुछ करने के लिए अकाली दल को साथ लेना उसकी मजबूरी है। अब ये तो 18 को स्पष्ट होगा कि अकाली दल कहां रहेगा।
आंध्रा में जगन रेड्डी को भाजपा ने एनडीए में लाने के लिए खूब रिझाया मगर पार नहीं पड़ी। हारकर अब भाजपा चंद्रबाबू नायडू को फिर से एनडीए में लाने के प्रयास कर रही है। बिहार में भाजपा पहले ही जीतनराम मांझी को नीतीश से अलग करा चुकी है और अब उनको एनडीए में शामिल कराने की कोशिश में है। इसका पता भी 18 जुलाई की बैठक से लगेगा।
कुल मिलाकर अगले आम चुनाव के लिए भाजपा व कांग्रेस पूरी तैयारी में लग गये हैं। कांग्रेस ने त्याग की थ्योरी अपना ली है, जिसका आभाष अन्य और छोटे दलों को साथ लाने से होता है। इस कारण 17 – 18 व 18 की दोनों पक्षों की बैठकें धुंधली तस्वीर को कुछ कुछ साफ करेगी।

  • मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘