राजस्थान कांग्रेस की आपसी लड़ाई हर दिन सुलझने के स्थान पर ज्यादा ही उलझती जा रही है। अशोक गहलोत व सचिन पायलट के समर्थकों के बयान पर आलाकमान के निर्देश के बाद भी कोई लगाम नहीं लग रही। लगाम लगे भी तो कैसे, जब इस बार इस विवाद को अपने बयानों खुद गहलोत और पायलट ने हवा दी है। इस सूरत में कांग्रेस के संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल कैसे कोई बीच का रास्ता निकालेंगे। ये राजस्थान की राजनीति की अबूझ पहेली बनी हुई है, जिसका हल दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा।
गहलोत ने पायलट को इस बार गद्दार कहते हुए सवाल खड़ा कर दिया कि जिसके पास 10 विधायक नहीं वो कैसे सीएम बनेगा। आरोप की सीमा यहीं तक नहीं रही, वे मानेसर गये विधायकों पर भाजपा से 10- 10 करोड़ रुपये लेने की बात कह गये। अपने पास सबूत होने का बयान भी वे और उनके समर्थक दे रहे हैं। ये पायलट पर गहलोत का अब तक का सबसे बड़ा हमला था।
इस हमले पर पायलट ने भी तुरंत रिएक्ट किया, जो अब तक चुप्पी को अपना हथियार बनाये हुए थे। उन्होंने तो सीधे ही आरोप लगा दिया कि गहलोत के नेतृत्त्व में कांग्रेस राजस्थान में कभी जीती ही नहीं। पिछली बार जब वो सीएम थे और चुनाव लड़ा तो मात्र 21 सीट आई। पायलट ने कहा कि उसके बाद हमने संघर्ष से सत्ता तक का सफर तय किया। उन्होंने पहली बार गहलोत पर अशोभनीय व गलत आरोप लगाने की बात कही।
उसके बाद से ही दोनों के सदस्य एक दूसरे पर हमलावर है और हमले की भाषा भी अब नरम नहीं, उग्र है। एक दूसरे को छोटा दिखाने की हरसंभव कोशिश दोनों के समर्थक कर रहे हैं। सीएम के मंत्री भी राजनीतिक सीमा को लांघ बयान धड़ल्ले से दे रहे हैं। इसी कारण कांग्रेस कार्यकर्ता असमंजस में है, उसे समझ ही नहीं आ रहा है कि वो किसके साथ रहे। तटस्थ रहने की स्थिति में भी नहीं है। इसी वजह से कार्यकर्ता भी चुप रह केवल आलाकमान की तरफ ताक रहा है, जो कोई हल सितंबर के बाद से अब तक नहीं दे पाया है।
इस बार की टकराहट को देखकर आलाकमान विचलित है, क्योंकि अगले महीने राहुल की भारत जोड़ो यात्रा राजस्थान आने वाली है। मध्यप्रदेश जहां कांग्रेस सत्ता में नहीं है, वहां यात्रा को मिल रहा रिस्पॉन्स बड़ा है। उस हालत में कांग्रेस शाषित राजस्थान की दशा आलाकमान को चिंतित किये हुए है। जानकारी के अनुसार कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने इस पर सहयोगियों से चर्चा की। उसके बाद राहुल व खड़गे के बीच कड़ी बने वेणुगोपाल को सामने लाया गया है। उन्होंने राजस्थान के मसले पर सोनिया गांधी से भी बात की। अब तय किया गया है कि 29 नवम्बर को वेणुगोपाल राजस्थान आयेंगे। मगर उससे हल निकलेगा, ये दूर की कौड़ी है। क्यूंकि आलाकमान के निकटस्थ खड़गे और माकन पर्यवेक्षक के रूप में राजस्थान आकर खाली हाथ लौट चुके हैं। खड़गे तो उसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बन गये। उस समय इन्हीं वेणुगोपाल ने 2 दिन में समस्या के हल की बात कही थी, मगर दो माह से अधिक होने के बाद भी कलह को थामा नहीं जा सका। अब तो स्थिति ज्यादा विकट है, वेणुगोपाल कैसे उससे राह निकालेंगे। ये आसान तो नहीं लगता। राजनीति के जानकारों का मानना है कि दोनों पक्ष इस बार आरपार की लड़ाई लड़ रहे हैं, इसलिए बीच बचाव से तो रास्ता निकलना सम्भव नहीं। कोई बड़ा निर्णय ही हल है और बड़ा निर्णय कोई भी हो, वो कांग्रेस के लिए बेहतर तो नहीं हो सकता। दूसरी तरफ भाजपा इस विवाद पर पूरी तरह नजरें गड़ाये हुए है। वो सरकार को अस्थिर मान अपने तीर तरकश से निकाल रही है ताकि अस्थिरता का लाभ उठा सके। कुल मिलाकर राजस्थान पूरी कांग्रेस के लिए अब एक चुनोती बन गया है। देश के कांग्रेस नेता उससे विचलित है और परेशानी में भी है। आलाकमान के ढीले रवैये ने समस्या को खत्म नहीं किया, अपितु बढ़ाया है। वर्तमान राजनीति परिस्थितियों से लगता है कि अब पानी सिर से गुजर गया, राजस्थान में जो निर्णय होगा वो अप्रत्याशित होगा।

  • मधु आचार्य ‘ आशावादी ‘
    वरिष्ठ पत्रकार

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