

प्रेस दिवस पर मीडिया घराने और मीडिया से ताल्लुक रखने वाले सभी लोगों को आत्मावलोकन करने की जरूरत है। बेशक मीडिया की साख गिरी है। आजादी के बाद निष्पक्षता, निर्भीकता औऱ बेबाक जनता के हितों में आवाज उठाने वाली प्रेस औऱ मीडिया घराने सवालों के घेरे में हैं। जनता और राजनीति मीडिया पर खुलेआम आरोप लगाते हैं। यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए अशुभ संकेत है। कई मीडिया घराने साफ साफ राजनीतिक दलों और नेताओं के पक्षपाती दिखाई देते हैं। मीडिया के लोग ही आपस में कोई किसी को राष्ट्रीयवादियों का भोंपू तो कोई माकपाई या कांग्रेस का भोंपू कहने से नहीं चूक रहे हैं।


विज्ञापन पाने, टीआरपी औऱ अपने आप को बनाए रखने की होड़ में मीडिया अपना धर्म खोता जा रहा है। 21 वीं सदी के मीडिया में व्यापक बदलाव आया है जो खुद अपने द्वंद्व से उभरने का संघर्ष करता नजर आता है।। मानवता, लोकतंत्र और विश्व को दिशा देने में मीडिया की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। प्रेस दिवस के अवसर पर बदली विश्व व्यवस्था में मीडिया को अपने भूमिका को पुर्नस्थापित करने के लिए फिर से ने संकल्पो के साथ आगे आना समय की मांग है। क्या 2020 के इस प्रेस दिवस पर मीडिया को अपने उत्तरदायित्व में खरा उतरने का फिर से संकल्प लेने की जरूरत दिखाई पड़ती है ?
