तीन दिवसीय ओळू समारोह का समापन मान्यता प्रभात फेरी से हुआ

बीकानेर ,। प्रज्ञालय संस्थान और राजस्थानी युवा लेखक संघ बीकानेर के साझा आयोजन के तहत महान इटालियन विद्वान राजस्थानी पुरोधा डॉक्टर एल.पी. टैस्सीटोरी की 136वीं जयंती के अवसर पर आयोजित होने वाले तीन दिवसीय ओळूू समारोह के आज तीसरे दिन करोड़ों लोगों की जन भावना, अस्मिता एवं सांस्कृतिक पहचान उनकी मातृभाषा राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता और दूसरी राजभाषा घोषित हो इसी महत्वपूर्ण और वाजब मांग के समर्थन में सैकड़ों नई पीढ़ी के नौजवानों ने राजस्थानी मान्यता बाबत आज प्रात: 9:00 बजे नालंदा परिसर स्थित सृजन सदन से प्रभात फेरी कार्यक्रम प्रभारी युवा संस्कृतिकर्मी हरिनारायण आचार्य के नेतृत्व में प्रारंभ करी।
प्रभात फेरी का आगाज करते हुए अपने उद्ïबोधन में वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं संस्था प्रतिनिधि राजेश रंग ने कहा कि राजस्थानी मातृभाषा का अहिंसात्मक आंदोलन लंबे समय से चल रहा है साथ ही राजस्थानी भाषा मान्यता संबंधित सारी विधिक कार्रवाई पूर्ण है, ऐसी स्थिति में मातृभाषा राजस्थानी को जो देश की भारतीय भाषाओं में सबसे समृद्ध और प्राचीन भाषाओं में एक है। जिसका अपना वैभव है और वह भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से भी संपन्न भाषा है। अत: केंद्र व राज्य सरकारों को इस बाबत संवेदनशील रहकर शीघ्र मान्यता बाबत निर्णय करना चाहिए। ताकि नई पीढ़ी और आने वाली पीढियों के साथ न्याय हो सके और वह अपनी मातृभाषा के माध्यम से अपने व्यक्तित्व और कृतितत्व का विकास कर पाए।
इसी संदर्भ में अपनी बात रखते हुए प्रभात फेरी प्रभारी हरिनारायण आचार्य ने कहा कि अब समय आ गया है कि राजस्थानी को उसका हक मिलना चाहिए और नई शिक्षा नीति के तहत मातृभाषा राजस्थानी में प्राथमिक स्तर से शिक्षण व्यवस्था प्रारंभ होनी चाहिए।
प्रभात फेरी के अवसर पर युवा कवि विप्लव व्यास ने कहा कि ऐसे आयोजनों के माध्यम से राजस्थानी मान्यता की बात जन-जन तक पहुंचेगी और यह संस्थाओं का प्रयास सार्थक और सफल है। इसी क्रम में युवा साहित्यकार योगेश व्यास राजस्थानी ने कहा कि राजस्थानी मान्यता आंदोलन को समर्पित यह तीन दिवसीय समारोह एक नवाचार एवं सार्थक पहल है जिसके माध्यम से राजस्थानी मान्यता की बात को बल मिलेगा और नई पीढ़ी अपनी मातृभाषा के प्रति और अधिक जुडऩे का सकारात्मक प्रयास करेगी।
युवा कवि-कथाकार पुनीत कुमार रंगा ने इस अवसर पर कहा कि राजस्थानी मान्यता के विरोध में जो तर्क दिए जाते हैं वह बेबुनियाद है, क्योंकि भाषा वैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार खासतौर से भारतीय संदर्भ में किसी भी प्रादेशिक भाषा को मान्यता मिलने से जहां एक और हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी तो समृद्ध होती है, साथ ही अन्य प्रादेशिक भाषाओं को भी बल मिलता है। जिससे निश्चित तौर पर भाषाई समन्वय और भाषाई एकता का वातावरण बनता है। ऐसी स्थिति में राजस्थानी को शीघ्र मान्यता मिलनी चाहिए।
प्रभात फेरी मूंधड़ा बगेची रोड से नत्थूसर गेट, गोकुल सर्किल, पुष्करणा स्टेडियम के आगे से एवं शहर के कुछ अंदरूनी हिस्से के कई चौकऔर गलियों में होकर गुजरी जिसमें नई पीढ़ी के सैकड़ों नौजवान राजस्थानी मान्यता के समर्थन में बैनर लिए हुए और साथ ही राजस्थानी मान्यता के समर्थन में नारों से वातावरण को गुंजमान कर पुन: सृजन सदन आए।
प्रभात फेरी के समापन के साथ ही तीन दिवसीय ओळू समारोह का विधिवत् समापन राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने करते हुए कहा कि प्रज्ञालय संस्थान और राजस्थानी युवा लेखक संघ गत 5 दशकों की अपनी निरंतरता में राजस्थानी मान्यता की बात को हर स्तर पर पूर्व की भांति उठाते हुए अपना अहिंसात्मक आंदोलन जारी रखेगी। रंगा ने आगे कहा कि करोड़ कंठों की जन भावना राजस्थानी को अब शीघ्र मान्यता मिलनी चाहिए। साथ ही उन्होंने अपने उद्बोधन के अंत में यह कहा कि –
मती करौ अबै थे राजस्थानी सागै खिलवाड़।
खोल दो अबै राजस्थानी मान्यता रा किवाड़।।
इस प्रभात फेरी और तीन दिवसीय समारोह के समापन अवसर पर भवानी सिंह, अशोक शर्मा, आशीष रंगा, महावीर स्वामी, सुनील व्यास, घनश्याम, तोलाराम एवं नवनीत व्यास सहित कई राजस्थानी समर्थकों ने राजस्थानी मान्यता की बात का पुरजोर शब्दों में समर्थन करते हुए अपने सहयोग का विश्वास दिलाया।