

राजनीति मध्यप्रदेश की, होली पर हो गई | एक दल रंगीन तो एक दल रंगहीन हो गया | खरीद-फरोख्त, लानत-मलामत,इस्तीफों और मंत्रिमंडल से बाहर करने की चिठ्ठी के बीच सवाल यह खड़ा हुआ है कि जनता को क्या मिला ? जिस जनमत को सर पर धारण करके कांग्रेस सत्ता में आई थी उसे कांग्रेस की गुटबाजी ने फुटबाल बना दिया| कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सिर्फ ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी से निष्काषित कर सका वो भी इस्तीफे के बाद | विधायक जो जनता के प्रतिनिधि [विधान सभा में] थे वे जनता को बताये बगैर इस्तीफा सौंप, न जाने किस परितोषिक के लालच में चल पड़े | अगर इस्तीफे स्वीकार हो गये तो वे उस मतदान से वंचित होंगे जो राज्यसभा के लिए होना है और उनका मत का मूल्य जनमत पर आधारित है | कमलनाथ सरकार हर दिन आर्थिक बदहाली का रोना रोती थी, जरा सोचिये विधानसभा की रिक्त हो रही सीटों पर होने वाले उप चुनाव का खर्च कहाँ से आएगा ? चूना तो राज्य के नागरिकों को ही लगेगा और वो भी बिना किसी कारण के |




प्रदेश में सियासी घमासान के बीच कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह का बड़ा बयान आया है| लक्ष्मण सिंह ने कहा कि अब विपक्ष में बैठने की तैयारी करनी चाहिए। मजबूती के साथ लड़ेंगे और जनता की आवाज उठाएंगे।जनता से कहेंगे ५ साल का अवसर मिलना था लेकिन नहीं मिला, लेकिन एक बार फिर मौका दीजिये| लक्ष्मण सिंह भी दोनों दलों में ली का आस्वादन कर चुके हैं | दिग्विजय सिंह के ये लघु भ्राता इन दिनों अपनी ही सरकार के खिलाफ आन्दोलन कर रहे हैं | सर्वविदित है ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया| भला है वो चुनाव हारे हुए हैं, नहीं तो फिर एक और लोकसभा उप चुनाव प्रदेश की जनता को झेलना होता |


वैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सोमवार को ही कांग्रेस छोड़ दी थी जिसके साथ ही मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर संकट गहरा गया| कमलनाथ सरकार के अल्पमत में आ गई है| राज्य में कांग्रेस के पास ११४ विधायक हैं और उसे चार निर्दलीय, बसपा के दो और समाजवादी पार्टी के एक विधायक का समर्थन हासिल था| भाजपा के 107 विधायक हैं और अन्य दलों से समर्थन की जुगत बिठाई जा रही है |


