– अच्छे दिनों के नाम पर दिया मोदी सरकार ने दिया ‘‘आत्महत्या का दंश’’

नई दिल्ली।हाल में ही मोदी सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा आत्महत्या को लेकर जारी की गई रिपोर्ट रोंगटे खड़े कर देने वाली है (NCRB-Accidental Deaths & Suicides in India)। रिपोर्ट का भयावह सच सन्न कर देने वाला है। जब जीने का अंतिम अवसर भी दम तोड़ दे, तब आदमी मौत को गले लगा लेता है। मोदी सरकार की सत्ता की सरपरस्ती में बीते सात सालों में बस यही हुआ है। अन्नदाता किसानों, मेहनतकश मजदूरों, दैनिक वेतनभोगियों, भारत के भविष्य- छात्रों, बेरोजगारों, गृह लक्ष्मी- गृहणियों अर्थात् समाज के हर वर्ग के तरक्की के अवसरों को मोदी सरकार ने अवसाद में तब्दील कर दिया।
बीते सात सालों में, अर्थात् 2014 से 2020 तक, मोदी सरकार की नाकाम नीतियों के माध्यम से 9,52,875 भारत के नागरिक आत्महत्या करने को मजबूर किए गए। तथा आज इन सब नाकामियों को छिपाने के लिए नफरत, निराशा, नकारात्मकता का तांडव मोदी सरकार द्वारा किया जा रहा है।
1. मोदी सरकार द्वारा ‘लोक सुधार’ की अपेक्षा ‘यमलोक सिधार’ की तस्वीर देखें
2014 से 2020 तक समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा की गई आत्महत्याएं

2014
2015
2016
2017
2018
2019
2020
कुल
छात्र
8,068
8,934
9,478
9,905
10,159
10,335
12,528
69,407
बेरोजगार
9,918
10,912
11,173
12,241
12,936
14,019
15,652
86,851
किसान
12,360
12,602
11,379
10,655
10,349
10,281
10,677
78,303
खेत मजदूर
6,710
4,595
5,109
4,700
4,586
4,324
5,098
35,122
डेली वेजर्स
15,735
23,799
25,164
28,741
30,127
32,563
37,666
1,93,795
गृहणी
20,148
22,293
21,563
21,453
22,937
21,359
22,374
1,52,127
कुल
1,31,666
1,33,623
1,31,008
1,29,887
1,34,516
1,39,123
1,53,052
9,52,875
उपरोक्त चार्ट में सभी सामाजिक क्षेत्रों का उल्लेख नहीं किया गया है। चुनिंदा सामाजिक क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए देश की आत्महत्या के भयावह परिदृश्य को दर्शाया गया है।
उपरोक्त चार्ट से स्पष्ट है कि 2014 से 2020 तक (i. छात्रों द्वारा 55 प्रतिशत), (ii. बेरोजगारों द्वारा 58 प्रतिशत), (iii. किसानों-मजदूर-डेली वेजर्स द्वारा 139.37प्रतिशत) ज्यादा आत्महत्याएं की गईं और कुल आत्महत्याओं का प्रतिशत भी 16.24 प्रतिशत बढ़ गया।
2. अन्नदाता आत्महत्या को मजबूर
बीते 7 सालों में मोदी सरकार की ‘पूंजीपतियों को नमन और किसानों का दमन’ की नीति के चलते 78,303 किसानों ने आत्महत्या की है, जिसमें से 35,122खेतिहर मजदूर हैं। 2019 की तुलना में 2020 में खेतिहर मजदूरों ने 18 प्रतिशत तक अधिक आत्महत्या की है। मोदी सरकार ने किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर किया। बीते सात सालों में खेती की लागत 25,000 रु. हेक्टेयर बढ़ा दी। हाल ही में सांख्यिकीय मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया कि देश के किसानों की औसत आय मात्र 26.67 रु. प्रतिदिन है और औसत कर्ज 74,000 रु. प्रति किसान हो गया है। खुद सरकार ने अपनी रिपोर्ट में माना है कि समर्थन मूल्य पर किसान की फसलें पर्याप्त मात्रा में नहीं खरीदी जा रहीं और उन्हें बाजार में 40 प्रतिशत तक कम दाम मिल रहे हैं। इतना ही नहीं 2016 से लागू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में भी निजी कंपनियों को 26,000 करोड़ रु. का मुनाफा हुआ है। ऊपर से पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के तीन काले क्रूर कानूनों ने किसानों को तबाह कर दिया।
3. भारत के भविष्य में परोसा अंधकार, छात्र और बेरोजगार आत्महत्या को लाचार
मोदी सरकार के कार्यकाल में 2014 से 2020 तक 69,407 छात्र आत्महत्या को मजबूर हुए हैं। चौंकानेवाला तथ्य यह है कि इस अवधि में छात्रों की आत्महत्या में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इतना ही नहीं, बेरोजगारी में आकंठ डूबे 86,851 लोगों ने सन 2014 से 2020 के दौरान आत्महत्या की है, और दुखद पहलू यह है कि 2014 की तुलना में 2020 में 58 प्रतिशत अधिक बेरोजगारों ने आत्महत्या की है। मोदी सरकार की सत्ता की सरपरस्ती में बीते 7 सालों से ये परिस्थितियां निर्मित हैं। श्रम मंत्रालय की रिपोर्ट 2017-18 में इस बात का खुलासा हुआ था कि मोदी सरकार ने 45 वर्षों की भीषणतम बेरोजगारी देश में परोस दी है। भारत का भविष्य छात्र और बेरोजगारों में भयानक निराशा व्याप्त है।
4. न ही मिली रोज कमाई, दैनिक वेतनभोगी गरीबों ने जान गंवाई
दैनिक वेतनभोगी (डेली वेजर्स) मोदी सरकार की नीतियों की नाकामी की वेदना भोग रहे हैं। हाल यह है कि 2014 से 2020 के बीच 1,93,795 दैनिक वेतनभोगियों ने आत्महत्या की। अचंभित करने वाला सच यह है कि 2014 की तुलना में 2020 में 139.37 प्रतिशत अधिक लोगों ने आत्महत्या की। ऑक्सफैम की रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि बीते दिनों भारत के सौ अमीरों की संपत्ति 13 लाख करोड़ रु. बढ़ी और भारत के 12 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरियां गवाईं। इतना ही नहीं, आरबीआई ने अपने रिपोर्ट में बताया है कि नोटबंदी और गलत जीएसटी से देश के छोटे और मंझोले कारोबार तबाह हो गए हैं, खासकर असंगठित क्षेत्र के, जिसकी वजह से करोड़ों लोगों ने अपनी नौकरी से हाथ धोया है।
5. गृहणियों के जीवन में लगा दिया ग्रहण
लगातार बढ़ती महंगाई, नौकरियों के अवसर समाप्त होना, ये प्रमुख कारण हैं कि गृहणियों को गृह कलह का दंश झेलना पड़ता है और वो इसके समाधान के रूप में मौत को गले लगा लेती हैं। सन 2014 से 2020 के बीच 1,52,127 गृहणियों ने आत्महत्या की है। आज के हालात तो भयावह हैं, खाना बनाने की गैस 1,000 रु. पार, खाना बनाने का तेल 200 रु. पार, पेट्रोल-डीज़ल क्रमशः 100 और 90 रु. पार, फल-सब्जियां-खाद्यान्न इत्यादि भी महंगाई की भेंट चढ़ गए हैं।
इससे ज्यादा शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि मोदी सरकार निरंतर सत्ता की भूख में मरी जा रही है और देश की जनता बेरोजगारी-महंगाई-फसलों के बढ़ते दाम इत्यादि की बलिवेदी पर मौत को गले लगा रही है। सन 2014 की तुलना में 2020 में कुल 16 प्रतिशत अधिक लोग आत्महत्या करने लगे हैं।

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