बीकानेर.(हेम शर्मा )। असंभव काम को कोई संभव बना दें तो लोग वाहवाही ही तो देंगे ! देंगे ना? ऐसा काम राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृडीति अकादमी के अध्यक्ष शिव राज छंगाणी, उपाध्यक्ष डा. भरत ओला और अकादमी की कार्य समिति के सदस्यों ने करके दिखाया है। अकादमी ने 29 सितंबर तक तीन वर्षों के पुरस्कारों के आवेदन मांगे और 5 अक्टूबर को पुरस्कारों की घोषणा भी कर दी। असल प्रश्न यह है कि इस काम में नैतिकता कितनी रखी गई है? नियम कायदों की कितनी पालना हुई है? क्या नियम विरुद्ध जाकर अकादमी के पदाधिकारी या सदस्यों ने तो लाभ नहीं लिया है? अगर ऐसा हुआ तो अकादमी की साख पर तो बट्टा लगेगा ही यह अकादमी व्यवस्था पर कालिख भी पुत जाएगी। ऐसी स्थिति में अकादमी से पुरस्कार लेने से किसी का आत्म सम्मान बढ़ेगा भी? जोड़ तोड़ से दूर सच्ची साहित्य साधना करने वाले लेखकों की क्या हिम्मत भी होगी कि वे पुरस्कारों के लिए आवेदन भी कर सकें। अकादमी पुरस्कार घोषणा में हर पुरस्कार के लिए तीन निर्णायकों की कमेटी को तय प्रक्रिया से उनको आवेदक की पुस्तक भेजी जाती है। निर्णायक मंडल पुस्तक का अध्ययन कर उस पर 100 शब्दों में टिप्पणी लिखता है फिर पुस्तक को अंक दिए जाते हैं। इसके बाद अंतिम निर्णय को अकादमी अध्यक्ष कार्य समिति की बैठक में प्रस्तुत करता है। यह सारी प्रक्रिया अकादमी ने 5 दिन में ही पूरी कर पुरस्कार घोषित कर दिए। इस त्वरित कार्रवाई के लिए केवल अध्यक्ष शिव राज छंगाणी ही नहीं उपाध्यक्ष और कार्य समिति के सभी सदस्य प्रशंसा के पात्र है। बशर्त कि कोई नियमों का उल्लंघन और मनमानी नहीं हुई हो। वैसे इतनी जल्दी प्रक्रिया पूरी होना आश्चर्यजनक है। फिर जल्दबाजी क्या थी? यह भी सवाल बनता है। क्या आचार संहिता लगने का डर था, क्योंकि इसके बाद पुरुस्कार घोषित नहीं किए जा सकते थे और चहेते उपकृत नहीं हो पाते। वर्ष 2023- 24 और 2019,20, 21 के पुरस्कारों की घोषणा हुई है। कुल पुरस्कारों में अधिकतर पुरस्कार बीकानेर और हनुमानगढ़ के साहित्यकारों को ही गए हैं। उपाध्यक्ष ने तो फेसबुक पर बड़े गर्व से अपने क्षेत्र के पुरुस्कृत साहित्यकारों की सूची चस्पा की है, जिस पर एक साहित्यकार ने टिप्पणी की है कि क्या साहित्य में भी हल्का पटवारी होते हैं। पुरस्कार सहायता पाने वाले कुछ लोग विशेष बधाई के हकदार है। खासतौर से अकादमी उपाध्यक्ष डा भरत ओला की राजस्थानी की पत्रिका हथाई को रावत सारस्वत पत्रकारिता पुरस्कार भी मिला है और प्रकाशन सहायता राशि दी गई। वहीं कार्य समिति सदस्य सुखदेव राव की पत्रिका रूडी राजस्थान को प्रकाशन पर सर्वाधिक सहायता दी गई। बीकानेर के एक ही परिवार के तीन लोगों को प्रकाशन सहायता और एक को पुरस्कार दिया गया है। जिन साहित्यकारों को सम्मानित किया जाता है अन्य लोग उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रेरणा लेते हैं। राजस्थानी संस्कृति सम्मान गत वर्ष डा बृज रतन जोशी को व इस वर्ष डा माधव हाड़ा को दिया गया। इन दोनों ने राजस्थानी संस्कृति के उन्नयन के लिए राजस्थानी में कोन सा उल्लेखनीय कार्य किया ? यह तो अकादमी अध्यक्ष को ही पता होगा। अकादमी ने पुरस्कारों की घोषणा में पुरस्कारों का निर्णय करने वाले, देने वाले और पाने वाले की सीमा रेखा नहीं रही है। ऐसे लोग भी निर्णायक रहे हैं जिनका राजस्थानी से दूर दूर का नाता नहीं है। पर्दे के पीछे का खेल अकादमी के उद्देश्यों और उपादेयता पर कलंक से कम नहीं है। जिसमें थोड़ी भी नैतिकता है उनके लिए शर्म की बात है। बेशर्म का तो आप कर भी क्या लोगे? मान लो अकादमी की साख (?) शिखर पर है। शिक्षा, संस्कृति मंत्री डा बी डी कल्ला ने बिना बजट प्रावधानों के किसी अन्य मद से बकाया पुरस्कारों के लिए 13 लाख 50 हजार रुपए प्रज्ञालय संस्थान, राजस्थानी युवा लेखक संघ के प्रयासों से क्या इसलिए दिलवाए थे ? धन्यवाद डा कल्ला साहब!