जयपुर : बढ़ती ठंड के साथ राजस्थान विधनसभा चुनाव के रूझान से यहां के राजनितिक हल्के में भारी गहमा गहमी मची हैं। पार्टियों की सर्वे एजेंसी ने भाजपा कांग्रेस दोनों को पूर्ण जनादेश से कुछ दूरी के स्पष्ट संकेत से निर्दलियों के मान सम्मान का दौर शुरु हो गया हैं जीतने वाले निर्दलियों में से कुछ के भाव बढ़ गए हैं। राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए खंडित जनादेश मिले, ऐसा कोई पार्टी नहीं चाहती लेकिन सर्वे एजेंसियों ने ऐसा माहौल बना दिया है, जिससे लग रहा है कि इस बार हग-असेंबली बन सकती हैं। जिसकी वजह न सिर्फ सर्वे एजेंसियां हैं बल्कि समाचार-पत्रों के कार्यालयों द्वारा पूछा गया यह सवाल भी है कि आप तो अपने क्षेत्र में जीतने वाले प्रत्याशी का नाम बताएं। इस सवाल के जवाब में समाचार-पत्रों के स्टेट-ऑफिस में जो डाटा बना है, वह बहुत चौंकाने वाला है और इस डाटा में यह सामने आया है कि भाजपा को 98 और कांग्रेस को 96 सीटें मिल रही हैं। इस विश्वसनिय डाटा ने भी पार्टियों के कान खड़े कर दिए हैं। खासतौर से भाजपा के, क्योंकि कांग्रेस में तो मुख्यमंत्री के लिए एक ही चेहरा अशोक गहलोत हैं, जिनके लिए पांच विधायकों का इंतजाम करना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन भाजपा तीन विधायक और कहां से लाएगी, इस पर कवायद तेज है। इस बीच भाजपा के अंदरखाने से यह भी निकल कर आ रहा है कि अगर भाजपा को पूर्ण जनादेश नहीं मिला तो वह सरकार बनाने के लिए किसी तरह की जोड़-तोड़ नहीं करने वाली। यहां वह कोई बड़ा ‘खेला’ भी कर सकती है।

ऐसे में भाजपा भले ही इस आत्मविश्वास में हो कि उसे पूर्ण जनादेश मिल रहा है, फिर भी सर्वे एजेंसियों और अखबारों के फीडबैक पर प्लान-बी के लिए काम शुरू है।
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराराजे की सक्रियता को इसी नजरिये से देखा जा रहा है, क्योंकि मतगणना में दिन एक ही बचा है, जो कुछ करना है, आज ही करना होगा। कांग्रेस ने चालीस सीटों की भविष्य वाणी से अपना सफर शुरू किया था, जो आज 96 पर पहुंच चुकी है। तीन तारीख को यह पता चल जाएगा कि वास्तविक आंकड़ा क्या रहता है, लेकिन कांग्रेस अगर बहुमत हासिल नहीं कर पाती है तो इससे किसी भी कांग्रेसी को हैरत नहीं होगी। कांग्रेस सरकार बनाने में कामयाब हुई तो तय है कि यह आश्चर्य पूरे देश के लिए होगा कि सामान्यतौर पर जिस भाजपा को जोड़-तोड़ करने में माहिर माना जाता है, वह कांग्रेस के आगे पस्त हो गई। बस, यही वजह है कि भाजपा भी अपनी रणनीति को चाक-चौबंद रखना चाहती है।

इस पूरे परिदृश्य मे बहुत कुछ ऐसा भी है जो दिखाई नहीं दे रहा, लेकिन उसका अस्तित्व है। उदाहरण के लिए कांग्रेस में सचिन पायलट फैक्टर महत्वपूर्ण है। अगर पूर्वी राजस्थान से कांग्रेस को अच्छी बढ़त मिली तो सचिन उत्साह में भरे नजर आएंगे। इसी तरह अगर भाजपा को बहुमत मिला तो वसुंधराराजे को किनारे लगाने वाली ब्रिगेड फिर से सक्रिय हो जाएगी। यह ब्रिगेड अभी वेट एंड वॉच की भूमिका में है। क्योंकि, अगर जोड़-तोड़ की जरूरत हुई तो राजस्थान भाजपा में सिवाय वसुंधराराजे के कोई भी इस फन में माहिर नहीं है।

राजे की अपनी टीम है और इस बात का भाजपा को भी इल्म है। कांग्रेस में अशोक गहलोत की सब करने वाले हैं। ऐसे में कांग्रेस के नेता बल्कि प्रदेशाध्यक्ष गोविंद डोटासर या प्रभारी सुखजिंदरसिंह रंधावा जैसे भी हसरत भरी निगाहों से गहलोत की तरफ देखते हुए देखे जा सकते हैं, लेकिन पहले स्थितियां तो सामने आए।

बहरहाल, भाजपा के सरकार बनाने के सबसे बड़े दावे के बावजूद हंग-असेंबली के कयास और राजस्थान की जनता को रिवाज बदलने के लिए मजबूर कर देने वाले अशोक गहलोत के सपने साकार होने नहीं होने के बीच ज्यादा देर नहीं रही है। निश्चित रूप से राजनीति शह-मात का खेल है, जिसमें अंतिम समय तक कुछ पता नहीं चलता।