जयपुर। राजधानी के टोंक रोड़ स्थित प्रताप नगर सेक्टर 8 दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे चातुर्मास के दौरान मंगलवार को सभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए अपने आशीर्वचनों *आचार्य सौरभ सागर महाराज ने कहा की* – घर में सांप होने की शंका उत्पन्न होने पर, वहां सुख की नींद सोना दुभर हो जाता है। उसी प्रकार जिसके मन में शंका का कीड़ा प्रवेश कर जाता है, उसकी सम्यकत्व की भूमिका दूर हो जाती है, शंका का पर्दा आंखों में पड़ जाता है, तो कुछ दिखायी नहीं पड़ता है। शंका की नागिन जिसे डस लेती है, उसे तड़फ-तड़फ कर ही मरना पड़ता है। शंका के कोवे मन के आकाश में विचरण करते है, तो निंदा की कांव-कांव होती है। शंका अपने आराध्य के प्रति कभी नही करनी चाहिए। शंका अपने परिवार, धन, वैभव, यौवन आदि पर करनी चाहिए।
*आचार्य सौरभ सागर ने कहा की* – परमात्मा के पास पहुंचने के लिए आठ गुणों का जन्म होना आवश्यक है। जिस प्रकार आठ काठ से खाट का निर्माण होता है, उसी प्रकार आठ गुणों से आकर्षित हो परमात्मा पास आता है। जिस प्रकार शरीर के विष को दूर करने के लिए पूर्ण मंत्र की आवश्यकता होती है, एक अक्षर भी कम हो तो शरीर का विष दूर नहीं होता। परमात्मा प्रगट नहीं होता। मन अष्ट कमल के आकार का है, जो अभी सुप्त है। एक – एक पंख को खिलाकर एक – एक गुण को जन्म देना चाहिए ताकि आत्मा की कल्मषता नष्ट हो सके। जिससे सबसे पहला गुण है – शंका से रहित होना।

*धर्म हृदय का रूपांतरण है, बाहा आचरण का परिवर्तन नही – आचार्य नवीननंदी*

वही टोंक रोड़ के बरकत नगर स्थित नामोकर भवन में आचार्य नवीननंदी महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा की – धर्म हृदय का रूपांतरण है, मात्र बाहा आचरण का परिवर्तन नही। धर्म आत्मा का जागरण है, शरीर की क्रिया नही। लोहे और चुम्बक में एक रंग रुपता होने के उपरांत भी लोहे में चुम्बकत्त्व के गुण नहीं होते। उसी प्रकार धर्म और व्यवहारिक आचरण में एक रूप होने के उपरांत भी बाहा क्रिया काण्ड़ से परिवर्तन नहीं होता। भीतर से चुम्बकत्त्व अर्थात् धर्म का जागरण होना अनिवार्य है। हृदय का धर्म सद् आचरण का जन्म देता है और आचरण धर्मभाव को परिपुष्ट करता है।