

उदयपुर । शहीद सी एस राठौड़ फाउंडेशन, राजस्थान साहित्य अकादमी, दिल्ली एवं अनुविंद पब्लिकेशंस उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में साहित्य,कला, सांस्कृतिक संगम मेद पाट-2023 का दो दिवसीय महोत्सव विज्ञान समिति, उदयपुर में प्रारंभ हुआ।
पहले दिन राजस्थानी मांडणा प्रतियोगिता, राजस्थानी मेहंदी प्रतियोगिता और राजस्थानी कैणी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि शिखा सक्सेना एवं विशिष्ट अतिथि डा. ममता धूपिया थीं।
महोत्सव के दूसरे दिन राजस्थानी जनजातीय साहित्य परिसंवाद का आयोजन हुआ। जिसमें कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र का आरंभ भार्गवी मेहता, शिखा बावरा द्वारा सरस्वती वंदना से हुई तत्पश्चात कार्यक्रम की निदेशक डॉ अनुश्री राठौड़ द्वारा स्वागत उदबोधन दिया गया। कार्यक्रम का बीज वक्तव्य मधु आचार्य आशावादी ने दिया। मुख्य अतिथि डा.देव कोठारी ने राजस्थानी आदिवासी साहित्य संरक्षण पर अपनी बात रखी तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो.के एल कोठारी ने की। संचालन डॉ कुंजन आचार्य ने किया।
जलपान के पश्चात कार्यक्रम के प्रथम सत्र का आगाज हुआ । जिसमें प्रथम सत्र के अतिथियों के स्वागत पश्चात गजेसिंह राजपुरोहित द्वारा राजस्थानी आदिवासी मौखिक साहित्य तथा डॉ दीप्ति पण्ड्या द्वारा राजस्थानी आदिवासी लिखित साहित्य और प्रमुख पोथियों पर आलेख पाठ किया गया। इसी कड़ी में कपिल पालीवाल ने भी अपने आलेख पाठ में राजस्थान की आदिवासी बोली और भाषा पर प्रकाश डाला। साहित्य व संस्कृति के इस अद्भुत संगम को और अधिक यादगार बनाते हुए डॉ दीप्ति पण्ड्या व डॉ सीमा राठौड़ की पुस्तक वागड़ के लोक सुर का विमोचन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वागड़ साहित्य के जानकार व युगधारा साहित्यिक संस्था के संस्थापक डॉ ज्योतिपुंज पण्ड्या ने की तथा संचालन डॉ करुणा दशोरा द्वारा की गई।
इसके बाद राजस्थानी भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार राजेंद्र बारहठ की अध्यक्षता में द्वितीय सत्र प्रारंभ हुआ।
इस सत्र में भील साहित्य में लोकगीतों का महत्व बताते हुए संजय शर्मा ने आलेख पाठ किया। तथा दिनेश पांचाल ने अपनी कहानी के माध्यम से आदिवासी मेलों के दृश्य दिखाए तो रेखा खराड़ी ने अपनी वागड़ी भाषा में लिखी कविताओं के माध्यम से मातृभूमि, संस्कृति व लोक भाषाओं के प्रति अपने स्नेह को व्यक्त कर खूब तारीफ बटोरीं।
सत्र के अंतिम दौर में अध्यक्षी उदबोधन हुआ जिसमें साहित्यकार राजेंद्र बारहठ ने आदिवासी साहित्य संरक्षण और संरक्षण के लिए हुए विभिन्न योगदानों पर प्रकाश डालते हुए राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने की मांग की । सत्र का संचालन आशा पांडे ओझा ने किया।
द्वितीय सत्र के पश्चात परिसंवाद और समापन सत्र की शुरुआत हुई जिसकी शुरुआत करते हुए मधु आचार्य आशावादी ने करते हुए कहा कि केंद्रीय साहित्य अकादमी के 24 भाषाओं के इतिहास में पहली बार आदिवासी साहित्य के लिए यह अनूठा कार्यक्रम उदयपुर के शहीद सीएस फाउंडेशन की सहायता से हुआ है। अध्यक्ष देव कोठारी ने भी मेदपाट महोत्सव को खूब सराहा। इसके पश्चात सुर संगम संस्थान की रेणु देहलवी ने अपने संस्थान के बच्चों के साथ अतिसुन्दर नृत्य से दर्शकों का मनमोहा। इन्हें मलेशिया में हमारे उदयपुर के होनहार बच्चों के साथ कई पुरस्कार प्राप्त कर देश का गौरव बढ़ाने के लिए सम्मानित किया गया। सत्र का संचालन संजय राजपुरोहित ने किया।
समापन सत्र में शहीद चंदन सिंह राठौड़ की स्मृति में साहित्य पुरोधा सम्मान डा. ज्योतिपुंज, संत साहित्य सम्मान पुष्कर गुप्तेश्वर, संस्कृति सम्मान शारदा देहलवी और कला सम्मान चेतन औदिच को प्रदान किया गया।
समापन अवसर पर राजस्थानी काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें नगर के गणमान्य साहित्यकार राजेंद्र बारहठ, हिम्मतसिंह उज्ज्वल, ज्योतिपुंज, पुरुषोत्तम पल्लव, घनश्याम नाथ कच्छावा, संजय पुरोहित, माधव नागदा, कृष्ण कुमार आशू, श्रेणीदान चारण, नरोत्तम व्यास, रामदयाल मेहरा, आशा पांडे ओझा, डॉ करुणा दशोरा, शैल कुंवर, सोमशेखर व्यास, डॉ प्रियंका भट्ट, ज्योतिकृष्ण वर्मा श्रोताओं को अपनी राजस्थानी भाषा की कविताओं से खूब सराहना व तारीफ बटोरी। गोष्ठी का संचालन उपवन पण्ड्या ने किया।