जयपुर। शहर के प्रताप नगर सेक्टर 8 दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे आचार्य सौरभ सागर महाराज के चातुर्मास के दौरान सोमवार को अपनी प्रवचन श्रृंखला के आठवें दिन *आचार्य सौरभ सागर ने कहा कि* श्रद्धा के अभाव में मनुष्य श्रावक नहीं बन पाता। जिस प्रकार हेंडिल के अभाव में साईकिल कार्यकारी नहीं होती, उसी प्रकार श्रद्धा के अभाव में श्रावकपना कार्यकारी नहीं होता श्रद्धा और विश्वास में काफी अंतर होता है। श्रद्धा स्थाई होती है और विश्वास क्षन्कि होता है। विश्वास इच्छापूर्ति की कामना करता है। अपने मन के अनुसार आराध्य का चलने की इच्छा जाहिर करता है, पर श्रद्धा कामना से रहित होती है और आराध्य के अनुसार चलने की कोशिश करती है। विश्वास लहर के समान होता है, जो किनारे पर आकर समाप्त हो जाता है, श्रद्धा सर्वांगीण होती है और विश्वास एकाकी होता है। श्रद्धा के सागर में ही समयक् दर्शन का कमल खिलता है, विश्वास की लहरों में नही।
*आचार्य श्री ने कहा कि* – सम्यक दर्शन प्राप्त करने के लिए जिन प्रतिभा के दर्शन करने चाहिये। देवाधिदेवों की प्रतिमा के दर्शन से आत्मा की प्रतिभा जागृत करने का भाव उत्पन्न हो जाता है। देवाधिदेवों की प्रतिमा आत्म निकेतन है, परम सुख की सरिता है, आत्म दर्शन का दिव्य दर्पण है, चेतना शक्ति का प्रदायक है, स्व स्वरूप प्राप्ति का प्रेरणा केंद्र है। परमात्मा दर्शन की आकांशा उपवास का फल देती है और साक्षात् भावपूर्ण दर्शन करोड़ उपवास का फल प्रदान करती है। आत्मिक शक्ति व सम्यक दर्शन प्राप्ति हेतु परमात्मा की प्रतिमा का अवलोकन करें और आत्म प्रतिभा को जागृत करें।