– विभिन्न झँजावतो के दौर से गुजरे
– हरप्रकाश मुंजाल, अलवर ।
साइकिल से अखबार बांटने वाला कभी अखबार का भी संपादक बन सकता हैं । यह कहने को तो असम्भव है लेकिन लग्न हो तो इंसान क्या कुछ नही कर सकता है ।यह करिश्मा कर दिखाया अलवर के वरिष्ठ पत्रकार श्री प्रमोद मलिक ने । यो तो मालिक जी समाजवादी और कम्युनिस्ट विचार धारा से प्रभावित रहे हैं लेकिन इसके बावजूद इनके बीजेपी के नेताओं से भी मधुर सम्बंध के चलते इनकी स्वच्छ पत्रकारिता के सफर में विचारधारा कताई आड़े नही आई । पत्रकारिता के क्षेत्र में आने से पहले इन्हें घर खर्च के लिये कई झँजावतो से गुजरना पड़ा । जेब खर्ची के लिए सुबह सुबह अखबार भी बेचने पड़े ।
बाद में इन्होंने वर्ष 83 में पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा तब श्री हेम भार्गव ने दैनिक अलवर बाजार पत्रिका के नाम से अखबार का प्रकाशन शुरू किया जिसमें संपादकीय प्रभार प्रमोद मलिक जी को सोंपा गया 2 वर्ष बाद ये जयपुर चले गए और वहां न्याय अखबार ज्वाइन कर लिया ।बाद में न्याय का अलवर से प्रकाशन शुरू हुआ तो ये अलवर आ गए और सम्पादकीय विभाग सम्भाल लिया । 90 के दशक में मलिक साहब उन गिने चुने पत्रकारों में से थे जो सीधे टाइप मशीन पर खबर टाइप करते थे। साल 1992 में प्रदेश में भैरोसिंह शेखावत सरकार थी। उस समय 3 युवा मंत्रियों की तिकड़ी काफी मशहूर थी इस तिकड़ी में अलवर के भी एक निर्दलीय विधायक मंत्री थे । इनका किसी घोटाले में नाम आ रहा था । कुर्सी कैसे बचें इस पर मलिक जी मन्त्रणा हुई तय हुआ कि इस्तीफे की खबर जारी करा देते हैं । इस्तीफा टाइप कर दिया वार्ता एजेंसी ने खबर जारी कर दी । इस पर मुख्यमंत्री जी भी सकते में आ गए । बाद में शेखावत जी इन्हें समझाया कि इस तरह बचपना नही करते हैं।
मलिक जी ने जब से होश संभाला तभी से उनका संघर्षमय जीवन शुरू हो गया घर की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई । यही कारण रहा कि वे शोषित , असहाय और गरीब मजदूरों की आवाज बन कर उनके साथ खड़े रहने लगे । वर्ष 96 या 97 में थानागाजी के पास एक गाँव मे बंजारों के मकान जला दिए । इससे नाराज होकर बंजारों के परिवार जनों ने जिलाकलेक्टर निवास पर डेरा डाल दिया । बंजारों के संघर्ष में प्रमोद मलिक ने भी अपना पूरा योगदान दिया । मलिक जी के मुताबिक तत्कालीन जिला कलेक्टर को करीब पांच दिनों तक मुख्य गेट से नही निकलने दिया । बाद में बचपन बचाओ आन्दोलन के कैलाश सत्यार्थी के आने पर समझौता हुआ ।
पत्रकारिता से आने से पूर्व इन्होंने अलवर सेंट्रल कॉपरेटिव बैंक के नीचे रेडीमेड कपड़ों की थड़ी लगाई, फैक्टरी में मजदूरी की । रात को स्वेटर बुनाई का कार्य करअपने परिवार का पालन पोषण किया । इन पर राजनीति का भी नशा सवार था । उसमें भी इन्होंने हाथ आजमाए जनता पार्टी के बिखराब से पहले अलवर शहर मंत्री भी रहे । फिर जनतादल में आ गए । युवा जनता दल के महासचिव बने ।
प्रमोद मलिक जी पत्रकारिता के साथ सामाजिक सरोकारों से जुड़े रहे । इन्होंने वरिष्ठ पत्रकार ईशमधु तलवार जी की प्रेरणा से अलवर में शहीद भगतसिंह जी जयंती मनाने का निर्णय लिया जो काफी लोकप्रिय हुआ । अब भी हर वर्ष 23 मार्च को ये कार्यक्रम होता है । इसमें सभी दलों का इन्हें भरपूर सहयोग मिलता रहा । इनके सहयोगी के रूप में श्री रमेश बेक्टर, स्वर्गीय शिक्षा विद डॉ अनिल भार्गव,शिक्षक प्रदीप पंचोली रहे ।
अलवर में पहला न्याय अखबार ऐसा था जहां देश की प्रमुख हिंदी समाचार सेवा एजेंसी यूनीवार्ता की सेवा ली गई । बकायदा टेलीप्रिंटर लगाया गया । चार पेज वाले इस अखबार में देश विदेश के साथ स्थानीय खबरों का समायोजन किया गया । जिससे यह अखबार पाठको की पहली पसंद बन गया । तब मलिक जी के सहयोगी के रूप में जिनेश जैन, सन्दीप दुबे , शरद शर्मा कार्टूनिस्ट, महेश चौहान, हरिभूषण भाटिया, सुनील जैन, बृजमोहन शर्मा, मनहोर लाल सैनी आदि पत्रकार थे ।प्रसार विभाग श्री रामवतार वशिष्ठ जी के कंधों पर था । कम्पोजिंग का जिम्मा ओमप्रकाश साहू और मशीन मेन के रूप में कालू राम तैनात थे । प्रधान सम्पदक ब्रहस्पति शर्मा जी थे । करीब 7 साल तक यहां काम किया । बाद में अखबार की माली हालत खराब होने लगी तो अजमेर, जयपुर संस्करण बन्द हो गए फिर अलवर का भी नम्बर आ गया । अखबार बन्द होते ही मलिक जी ने इधर उधर हाथ पैर मारे लेकिन दाल नही गली ।इस दौरान विचार टाइम्स और संध्या ज्योति दर्पण में भी कुछ समय के लिए काम किया । फिर जयपुर जाने का मन मनाया । डॉ अनिल भार्गव के साथ जयपुर में वरिष्ठ पत्रकार ईशमधु तलवार जी से मिलकर किसी अखबार में नोकरी दिलाने का आग्रह किया । तलवार साब ने इनसे कहा नोकरी तो मिल जायेगी लेकिन समय तेजी से बदल अंग्रेजी का ज्ञान भी जरूरी है । और आने वाला समय टेक्नोलॉजी का होगा यानी कम्प्यूटर का ज्ञान भी जरूरी है । इन सब पर विचार कर लो । तलवार जी की बात मलिक जी को भा गई और उन्होंने जयपुर में काम करने का इरादा छोड़ अलवर आ गए । फिर अब क्या करे ये समस्या इनके मुँह बाएं खड़ी हो गई । फिर इन्हें किसी ने सलाह दी कि आपकी दुकान तिलक मार्किट में मोके पर है वहां अपना कारोबार शुरू कर लो । ये बात मलिक जी के भी जम गई और उन्होंने प्लास्टिक आयटमों को बेचने का काम शुरू कर दिया । करीब एक दशक तक कारोबारी में व्यस्त रहे लेकिन स्वाथ्य के साथ ना देने के कारण अब दुकान को बंद करने का निर्णय लिया ।
मलिक जी को समाजवादी विचारक मास्टर रामशरण अंत्यानुप्रासी अपना दत्तक पुत्र मानते थे । भरतपुर के पूर्व सांसद पण्डित रामकिशन शर्मा, डॉ चन्द्रभान, पूर्व विधायक महिपाल सिंह यादव , डॉ रोहिताश्व शर्मा,का इनसे विशेष स्नेह रहा है। तत्कालीन जिला कलेक्टर मनोहरकान्त के समय रेलवे स्टेशन के पास मुख्य फाटक को स्थायी रूप बन्द किये जाने को लेकर हुए आंदोलन में मालिक जी ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया । ये आन्दोलन कई दिनों तक चला । हालांकि आन्दोलन करियो को सफलता नही मिली । लेकिन इन्होंने अपनी ओर से कोई कोर कसर बाकी नहो छोड़ी ।
मलिक जी का इन दिनों स्वाथ्य ठीक नही रहता है ।इसलिए ज्यादा समय घर पर ही गुजारते हैं । वे शीघ्र ही चुस्त दुरुस्त हो ईश्वर से यही कामना करते हैं । वे दीर्घायु रहे इसी कामना के साथ ।