

बीकानेर, (हेम शर्मा )।संभागीय आयुक्त श्रीमती उर्मिला राजौरिया और जिला कलक्टर भगवती प्रसाद कलाल ने बारी बारी से पीबीएम अस्पताल का निरीक्षण किया। यह इन दोनों अधिकारियों की प्रशासनिक संवेदनशीलता और बीमारी का दर्द झेल रहे रोगियों के प्रति मानवीयता ही कहा जाएगा ! या फिर प्रशासनिक जिम्मेदारी , सरकार के आदेशों की अनुपालन ?क्या निरीक्षण में रोगियों के इलाज में देरी, अनदेखी, लापरवाही या सही इलाज नहीं होने जैसी कमियां सामने आई? कई रोगियों की शिकायत रहती है कि उनको डाक्टर के घर जाकर दिखाना पड़ता है क्या निरीक्षण में ऐसी जानकारी सामने आई? वरिष्ठ डाक्टर मिलते ही नहीं है यह शिकायत झूठी तो नहीं है। अस्पताल में मरीजों से येनकेन जांच, चिकित्सा या दवाओं के नाम पर लपके पैसे ऐंठ लेते यह शिकायते कितनी सही है। पीबीएम की चिकित्सा व्यवस्था में कहीं कॉकस तो हावी नहीं हो गया है। चिकित्सकीय उपकरण बेकार तो नहीं पड़े हैं। संसाधनों का दुरुपयोग तो नहीं हो रहा है? इन सब चीजों पर निरीक्षण के दौरान कितना ध्यान गया कह नहीं सकते। निरीक्षण मात्र प्रशासनिक औपचारिकता ही था ? या राजोरिया व कलाल साहब के मन में जनहित की जिम्मेदारी की भावनाएं थी? क्या झलकता है ? निरीक्षण का क्या प्रभाव रहा। जनता देखती भी है और महसूस भी करती है। संभागीय आयुक्त ने तो निरीक्षण के दौरान मरीजों को उपलब्ध करवाई जाने वाली चिकित्सा सेवाओं पर संतोष जाहिर किया। धन्य हो मैडम। आपकी प्रशासनिक दक्षता की जितनी प्रशंसा की जाए कम होगी। केवल सफाई व्यवस्था पर असंतोष व्यक्त किया। इसका मतलब यही है कि संभागीय आयुक्त पीबीएम में सुधार के बिंदुओं और वास्तविक हालातो से अनभिज्ञ है। जब दिक्कतों की जानकारी ही नहीं है तो फिर निरीक्षण में तो सफाई के अलावा और क्या दिखाई देगा ?श्रीमती राजौरिया ने जो निरीक्षण किया है वो प्रशासनिक खानापूर्ति के अलावा कुछ नहीं है। इस निरीक्षण का अस्पताल की व्यवस्था पर रत्तीभर भी असर हुआ हो तो बता दें। कागजी निर्देशों से अगर व्यवस्था सुधरती होती तो सरकार के स्तर पर अभियान चलाने की जरूरत ही क्यों होती। नई सरकार अस्पताल में सेवाओं और व्यवस्थाओं में सुधार देखना चाहती है। संभागीय आयुक्त और कलक्टर का निरीक्षण इसी का हिस्सा है। कलेक्टर भगवती प्रसाद कलाल ने पीबीएम अस्पताल में साफ सफाई में लापरवाही पर कार्यरत कंपनी पर 90 हजार रुपए जुर्माना क्यों लगाया। इसका मतलब सफाई व्यवस्था निर्देशों के बावजूद नहीं सुधरी। संभागीय आयुक्त और जिला कलक्टर का पीबीएम अस्पताल में निरीक्षण और उसके बाद की स्थितियों में कोई फर्क नहीं है। इस निरीक्षण को अफसरों की दक्षता में कमी, ओपचारिक कार्य प्रणाली और गैर जिम्मेदारी ही झलकती है। जनता के बीच क्या संदेश गया है यह तो जनता की प्रतिक्रिया से ही जान सकते हैं। जनता बोलती नहीं तो पता लगाना मुश्किल है, परंतु अस्पताल प्रशासन में तो इन दोनों अफसरों की हेठी ही हुई है कि वे अस्पताल व्यवस्था को समझ नहीं पा रहे हैं।