राजस्थानी भाषा-साहित्य में व्यंग्य एक समृद्ध विधा : मधु आचार्य

राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता को लेकर युवा बहुत सजग : डाॅ. राजपुरोहित

मेड़तासिटी । भारतीय साहित्य परंपरा सम्पूर्ण विश्व में अपनी अलग पहचान रखती है । हमारी ज्ञान परंपरा के अनुसार एक रचनाकार की पांचो इन्द्रिया जागृत होती है इसलिए वो अपने समय की सवारी करता है । इसी ज्ञान परंपरा के अनुसार जो रचनाकार समय की सवारी करते हुए लोक, वेद ( ज्ञान) और अध्यात्म अर्थात मनुष्य के स्वभाव को समझ कर सृजन करता है वो रचनाकार कालजयी हो जाता है । यह विचार साहित्य अकादेमी में राजस्थानी संयोजक एवं ख्यातनाम कवि-आलोचक प्रोफेसर (डाॅ.) अर्जुनदेव चारण ने संवळी साहित्य संस्थान द्वारा रविवार को राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के सभागार में आयोजित डाॅ.रामरतन लटियाल के राजस्थानी पुस्तकों के लोकार्पण समारोह में अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कही। इस अवसर पर प्रोफेसर चारण ने कहा कि प्रदेश के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा अपनी मातृभाषा राजस्थानी में नहीं मिलना हमारा दुर्भाग्य है जबकी नई शिक्षा प्रणाली के तहत बच्चों को प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा मे ही देने का प्रावधान है ।

संस्थान सदस्य विनोद लटियाल ने बताया कि लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित कवि- कथाकार एवं नाटय निदेशक मधु आचार्य आशावादी ने कहा कि आधुनिक राजस्थानी भाषा-साहित्य की सभी गद्य विधाओं में व्यंग्य लिखना सबसे कठीन कार्य है मगर डाॅ.रामरतन ने मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण बहुत सटीक व्यंग्य लिखे है जो राजस्थानी साहित्य जगत में अपनी विशिष्ट शैली के लिए पहचाने जायेंगे । जेएनवीयू के राजस्थानी विभागाध्यक्ष एवं प्रतिष्ठित कवि-आलोचक डाॅ.गजेसिंह राजपुरोहित ने अपने मुख्य वक्ता उदबोधन में कहा कि प्रदेश के राजनेताओ की उदासीनता के कारण देश की आजादी के पिचहतर वर्षो बाद भी राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता नहीं मिली जो प्रदेश के दस करोड़ लोगो के साथ अन्याय है। उन्होंने कहा कि प्रदेश का युवा अपनी मातृभाषा की संवैधानिक मान्यता को लेकर बहुत सचेत और सजग है अतः आने वाले लोक सभा चुनाव से पूर्व केन्द्र सरकार द्वारा राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देनी ही चाहिए । इस अवसर पर सीबीओ गोविन्द राम बेड़ा एवं प्रधानाचार्य पांचाराम डीया बतौर विशिष्ट अतिथि मौजूद रहे। युवा रचनाकार महेन्द्रसिंह छायण ने लोकार्पित राजस्थानी व्यंग्य पुस्तक कुण छोटौ कुण मोटौ एवं आलोचनात्मक निबंध पुस्तक राजस्थानी साहित्य : साख अर संकल्पना पर आलोचनात्मक पत्र-वाचन किया।

लोकार्पण समारोह के प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया । राजस्थानी रचनाकार डाॅ.रामरतन लटियाल ने अपनी साहित्यिक यात्रा की संक्षिप्त जानकारी देते हुए स्वागत उदबोधन दिया । युवाकवि प्रहलाद सिंह झोरड़ा ने राजस्थानी कविता पाठ किया । समारोह में वरिष्ठ कथाकार भंवरलाल सुथार, डाॅ.रामरतन लटियाल, लक्ष्मणदान कविया, इन्द्रदान चारण, कप्तान बोरावड़ एवं महेन्द्रसिंह छायण सहित राजस्थानी शोध छात्रों का सम्मान किया गया। संचालन डाॅ.इन्द्रदान चारण ने किया।

लोकार्पण समारोह में प्रतिष्ठित रचनाकार लक्ष्मणदान कविया, प्रहलाद सिंह झोरड़ा, हनुमानराम दुगस्तावा, बलदेवराम, बरकत अली, श्याम जुरिया,भगवतीप्रसाद शर्मा, राजूराम फगोड़िया, रामपाल कसवा,सुजानसिंह धर्मावत, रामलाल मातवा, बी. महेंद्र चौधरी,डाॅ. रिचा शर्मा, महेंद्र भाकर, बक्सू खां खोखर, बुधाराम छाबा, सुमित बाना, कैलाश कासनियां, भूपेंद्र चौधरी, डॉ ललित चौधरी, इलियास खां, मीरां चौधरी, फिरदौस बानौ, भावना गुजराती, मधु चौधरी, राजेश, पुखराज, शोभाराम ताडा, जितेंद्र, चेतन कमेड़िया, सवाईसिंह महिया, विनोद कुमार लटियाल, नंदूश्री मंत्री, कालू खां देशवाली, जितेन्द्र मेघ सहित अनेक प्रतिष्ठित विद्वान, शिक्षक एवं मातृभाषा प्रेमी मौजूद रहे ।