” रामजस की आतमकथा” उत्तर आधुनिक युग का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास–डा नीरज दइया

कोटा.।कोटा शहर स्व प्रेम जी प्रेम के नाम से पहचाना जाता है। उनके बाद डॉ शांति भारद्वाज राकेश इस अंचल में " उड़ जा रे सुआ " जैसे अप्रतिम उपन्यास को लेकर सामने आते हैं। इसी श्रंखला में अतुल कनक का उपन्यास" जूण जातरा" आता है। वर्तमान समय में उपन्यास परंपरा में जितेन्द्र निर्मोही कोटा द्वारा सृजित उपन्यास " रामजस की आतमकथा" उत्तर आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में से एक है।यह उपन्यास भाषा,शिल्प और कथ्य को लेकर अनूठा है ।यह विचार केन्द्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली से पुरस्कृत जाने माने समीक्षक और कवि बीकानेर से आये विद्वान डॉ नीरज दइया ने सामने रखे।वो मंगल कलश सभागार मदर टेरेसा स्कूल रंगबाड़ी रोड़ कोटा में लोकार्पण समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि स्व प्रेम जी प्रेम की याद चिर स्थाई बनाने के लिए उनके नाम से सभागार कोटा में होना चाहिए। उपन्यास " रामजस की आतमकथा" इस संवेदनहीन युग में वाचक परंपरा में संवाद शैली में लिखा गया है जो हृदय स्पर्शी रचना है। निर्मोही जी के पहले उपन्यास" नुगरी" ने कोटा के साहित्य जगत को पहचान दिलाई थी ।यह उपन्यास उपन्यास परंपरा में आने वाले श्री लाल नथमल जोशी की विपरीत विचारधारा का उपन्यास है। जितेन्द्र निर्मोही न केवल राजस्थानी भाषा में महीयसी कमला कमलेश को प्रतिस्थापित करते हैं बल्कि किशन प्रणय जैसे नवलेखकों को पहचान दिलाते ।वो ऐसी सृजन परंपरा प्रेम जी प्रेम के बाद आते हैं जिन्हें सम्पूर्ण राजस्थानी भाषा साहित्य जगत जानता है। इस समारोह की अध्यक्षता केन्द्रीय अकादमी नई दिल्ली से पुरस्कृत साहित्यकार अतुल कनक द्वारा की गई और संचालन नहुष व्यास ने किया। समारोह का प्रारंभ दीप प्रज्वलित कर किया गया। सरस्वती वंदना कवि किशन वर्मा द्वारा की गई। अपने स्वागत भाषण में रविन्द्र बिकावत ने कहा कि आज का राजस्थानी भाषा का समृद्ध मंच है जो साहित्य की विभिन्न धाराओं के पारंगत विद्वान बंधुओं से सजाया गया है ।कृतिकार जितेन्द्र निर्मोही देश के जाने-माने साहित्यकार है। जे पी मधुकर ने कहा कि कोटा महानगर का सौभाग्य है कि डॉ दयाकृष्ण विजयवर्गीय के बाद हम जितेन्द्र निर्मोही कोटा को पाते हैं जिन्होंने विभिन्न विधाओं में लगभग पच्चीस कृतियां लिख दी है आज के लोकार्पित कृति राजस्थानी भाषा साहित्य की ग्यारहवीं कृति है । उनके साहित्य पर सर्वाधिक शोध हो रहे हैं । इनकी राजस्थानी रचनाएं विश्व विद्यालयों में पढ़ाई जा रही है। पत्रवाचक ममता महक ने कहा निर्मोही जी के साहित्य के केन्द्र में सर्वहारा और दलित साहित्यकार समाज है।इस उपन्यास का नायक रामजस भी सर्वहारा वर्ग से हैं। उपन्यास में विभिन्न शैलियों का तालमेल देखा जा सकता है। उपन्यास का पात्र लेखक है या रामजस इसी उहापोह में पाठक सहजता से सम्पूर्ण उपन्यास पढ़ जाता है। उपन्यास में हाड़ौती अंचल आजादी के बाद से आज़ तक की घटनाओं को बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित बताया गया है। इसमें करोना काल भी शामिल है । विशिष्ट अतिथि विश्वामित्र दाधीच ने कहा इस उपन्यास में रामजस ऐसा लगता है जैसे निर्मोही जी की बात की रिपोर्ट कर रहा हो , कहीं कहीं उपन्यासकार अपनी बात कहता नज़र आता है। लोक की संवाद शैली इस उपन्यास की विशेषता है । इसमें धन्ना लाल सुमन की घास भेरु जी की यादें हैं स्व प्रेम जी प्रेम का हाड़ौती महोत्सव भी आना चाहिए था। चूंकि अभी किसी और रामजस पर बात कहनी है अतः आगे जरुर आयेगा। उपन्यास के माध्यम से रघुराज सिंह हाड़ा, गौरी शंकर कमलेश, कमला कमलेश आदि को याद करते जाना पाठक के मन में पेठ बनाता है। विशिष्ट अतिथि योगेन्द्र शर्मा ने कहा कि इस सभागार में सालभर में पचास से अधिक साहित्यिक समारोह होते हैं।यह समारोह राजस्थानी भाषा साहित्य के लिए विशेष है और यूं भी विशेष है कि यह राजस्थानी भाषा के जाने-माने साहित्यकार जितेन्द्र निर्मोही पर केन्द्रित है जो नव लेखकों को आगे लाते हैं। हाड़ौती अंचल का राजस्थानी साहित्य समाज इनका ऋणि है। मैं अपने हाल में डा नीरज दइया जी के परामर्श अनुसार इस अंचल के राजस्थानी साहित्यकार बंधुओं के चित्र लगाने की पूरी कोशिश करुंगा। कृति पर बोलते हुए रचनाकार जितेन्द्र निर्मोही कोटा ने कहा कि इस उपन्यास को लिखने के कितने ही कारण है । रामजस पर केन्द्रित बातें तो थी ही, मेरे सामने कमलेश्वर की कितने पाकिस्तान" और अन्नाराम सुदामा की " मेवे री रुंख" जैसी कृति थी।जब मैं रामजस पर लिखने लगा तो न जाने कितने अभागे रामजस उस बड़े पात्र में समाते चले गए । जैसा विद्वान बंधुओं ने बताया यह काल्पनिक और वास्तविक पात्रों का अनूठा तालमेल है।इस अवसर पर कृतिकार ने" रामजस की आतमकथा" उपन्यास के प्रारंभिक पृष्ठ और अंतिम पृष्ठ का वाचन किया। विशिष्ट अतिथि प्रो के बी भारतीय ने कहा मैं निर्मोही जी के साथ पिछले चालीस वर्षों से साथ रहा हूं। कितने ही कवि सम्मेलन और समारोह के हम साथी रहे हैं।यह कहा करते थे कथाकार शिवानी अपने पात्रों को जीते हुए रचना करती थी। रामजस भी वैसा ही पात्र है ऐसा लगता है रामजस छाया है निर्मोही जी की , यहां सारे चरित्र और घटनाएं मुंह बोलती है। रामजस एक खुद्दार सर्वहारा वर्ग का साहित्यकार है।यह उपन्यास सामाजिक संवेदना का ताना-बाना है।इस उपन्यास में जीवन के तीन रुप साफ़ साफ़ दिखाई देते हैं बचपन, जवानी और उत्तरार्द्ध , यह उपन्यास तो सचमुच आम साहित्यकार की जीवन गाथा है।सभा के अंत में इस समारोह को राजस्थानी उपन्यास की एक सार्थक चर्चा बताते हुए लेखिका श्यामा शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

सभा में बाहर से पधारी डॉ सरला शर्मा,नीना गुप्ता , जानी-मानी चित्रकार प्रवेश सोनी, डॉ कृष्णा कुमारी, मंजू रश्मि, सहित कवि एवं साहित्यकार राजेंद्र पंवार, रामेश्वर शर्मा रामू भैया, विष्णु शर्मा हरिहर, प्रेम शास्त्री, सुरेश पंडित, आनंद हजारी,बी एल गोठवाल, नंद सिंह पंवार,आर सी आदित्य सहित लगभग साठ साहित्यकार मौजूद थे।

You missed