– ऋषि नित्य प्रज्ञ दिव्य व सरल संत थे

– बीकानेर सहित देश भर में दी जा रही है श्रद्धांजलि

बीकानेर ।आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर द्वारा संस्थापित आर्ट ऑफ लिविंग के प्रमुख संत ऋषि नित्य प्रज्ञ ब्रह्मलीन हो गए हैं। ऋषि नित्य प्रज्ञ का 26 दिसंबर की रात्रि में देहावसान हो गया था। वे पोस्ट कोरोना से अस्वस्थ थे। आर्ट ऑफ लिविंग ब्यूरो कम्यूनिकेशन के बीकानेर जोन के मीडिया कॉआर्डिनेटर गिरिराज खैरीवाल ने बताया कि आज उनकी स्मृति में आर्ट ऑफ लिविंग के बीकानेर केंद्र द्वारा
ट्रांसपोर्ट गली स्थित कथूरिया भवन में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। संस्था के वरिष्ठ प्रशिक्षक व सुमेरु भजन गायक जितेंद्र सारस्वत ने उन्हें याद करते हुए कहा कि ऋषि नित्य प्रज्ञ दिव्य विभूति थे। वे इतने सरल व सहज थे कि कोई भी इस बात का अनुमान नहीं लगा सकता था कि वे पूरी दुनिया में मशहूर संत थे। वे आर्ट ऑफ लिविंग के मजबूत पिलर थे। उन्होंने कहा कि उनकी क्षति कभी पूरी नहीं हो सकेगी। इस अवसर पर जितेंद्र सारस्वत ने उनके संगीतबद्ध भजनों की प्रस्तुतियां देकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। वे ऋषि नित्य प्रज्ञ के साथ अपने अनुभवों व संस्मरणों को सुनाते हुए भावुक भी हो गए। वरिष्ठ प्रशिक्षिका साधना सारस्वत ने ऋषि नित्य प्रज्ञ के बीकानेर से संबंधित जानकारी देते हुए कहा कि वे 2004 में पहली बार बीकानेर आए थे। उसके बाद वे 2005 में दूसरी बार बीकानेर आए। उस समय उन्होंने रेलवे ग्रांउड में विशाल भजन संध्या में भजनों की सुमधुर प्रस्तुतियां दी थी। ऋषि नित्य प्रज्ञ ने बीकानेर में 2008 में हंशा गेस्ट हाउस में अडवांस कोर्स का प्रशिक्षण दिया था साथ ही तेरापंथ भवन, गंगाशहर में एक विराट भजन संध्या भी उनके सानिध्य में आयोजित की गई थी। आर्ट ऑफ लिविंग के राजस्थान अपेक्स मेंबर राजेश मुंजाल ने कहा कि अठावन वर्षीय नित्य प्रज्ञ बहुत विद्वान संत थे और मधुर वाणी के धनी थे। उनके द्वारा संगीतबद्ध और गाए भजनों को लाखों लोग नित्य श्रवण करते हैं। उन्होंने जय जय राधा रमण, सुंदर कान्हा, हरि सुंदर नंद मुकुंद, गुरु इत्यादि अनेक सुमधुर और पावन धुनों का सृजन किया। जब वे इक्कीस वर्ष के थे तब पहली बार श्री श्री रविशंकर से मिले और फिर उनके प्रति श्रद्धा का भाव इस तरह से उनमें रोपित हो गया कि उन्होेंने अपना पूरा जीवन ही गुरु भक्ति और आर्ट ऑफ लिविंग को समर्पित कर दिया। वे केमीकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट थे। ऋषि नित्य प्रज्ञ प्रमुख रूप से द आर्ट ऑफ लिविंग के पर्यवेक्षक के रूप में जाने जाते थे। वे संस्था के प्रशिक्षकों और स्वयंसेवकों को तैयार करते थे। ऋषि नित्य प्रज्ञ का नाम नितिन लिमिये था। गुरुदेव श्री श्री रविशंकर ने 2008 में उनका नाम ऋषि नित्य प्रज्ञ कर दिया। खैरीवाल ने बताया कि इस अवसर पर संस्था के वरिष्ठ सदस्य रवि कथूरिया, परताराम चौधरी, राजकुमार भटनागर, शीला चौधरी, गीता भटनागर, जानकी वल्लभ, मनीष गंगल, सुरेश दाधीच, राकेश छाजेड़, तिलोक सोनी, सुभाष दाधीच, प्रवीण किंगर, मुकेश शर्मा, मनमोहन अग्रवाल, अजय खत्री, तरुण गहलोत, एन के सारवाल, प्रवीण हूजा, सुधीर भाटिया, आशी जैन इत्यादि ने भी ऋषि नित्य प्रज्ञ से जुड़े अपने जीवन के अनेक अनुभवों और संस्मरण प्रस्तुत किए तथा उनके प्रति अपनी संवेदनाएं प्रकट करते हुए श्रद्धांजलि व पुष्पांजलि अर्पित की।