रिपोर्ट – अनमोल कुमार

मोढेरा सूर्य मंदिर में प्रवेश करने पर आपकी उदासियां अतीत के महान सनातनी पूर्वजों के अदम्य भक्ति से उत्पन्न वैभव के सामने घुटने टेक देती हैं। आज यह मंदिर अपने यौवन के दिनों की तरह पूर्ण स्थिति में ना होते हुए भी प्राचीन सनातन सभ्यता की समृद्धियों की चमक बिखेरने में कामयाब रहा है। खास बात है कि इसके निर्माण में चूने का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसमें पूजा करने की भी मनाही है।
इस मंदिर परिसर में एक कुंड है जिसके बारे में अलबरूनी लिखता है कि हमारे लोगों ने जब उसे देखा तो वो चकित रह गए उनके पास इसकी प्रशंसा के लिए शब्द नहीं थे और धरती पर इसके बराबर ख़ूबसूरती वाली इमारतों का निर्माण संभव नहीं है। इस कुंड के चारो ओर 108 छोटे-छोटे मंदिर हैं, इस मंदिर की संरचना ऐसी है कि 21 मार्च और 21 सितम्बर के दिन सूर्य की प्रथम किरणें गर्भगृह के भीतर स्थित मूर्ति के ऊपर पड़ती हैं।
इस मंदिर का निर्माण इस तरीके से हुआ था कि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक सूर्य कहीं भी हो, गर्भगृह के पास स्थित दो स्तम्भ हमेशा उसके प्रकाश से के दायरे में रहते हैं, मंदिर के एक मंडप में 52 स्तम्भ हैं, जो साल के 52 सप्ताह की ओर इशारा करते हैं। जिस मंदिर को हमारे इतिहास की किताबों में पहले पन्ने पर उतरकर हमारे पूर्वजों की महानता का प्रतिनिधित्व करना चाहिए था उसे हमारे इतिहासकारों ने आखिरी पन्ने पर भी जगह देना उचित नहीं समझा।
सनातन विरोधी षड्यंत्रों और उपेक्षाओं के बावजूद विज्ञान के साथ उन्नत वास्तुकला के मिलन के संयोग से बना हमारा यह वैभवशाली मंदिर हमारी समृद्ध संस्कृति का गवाह बनकर खड़ा है
वर्तमान में यह भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और इस मंदिर में पूजा की इजाजत नहीं है।
श्रीराम से जुड़ा पौराणिक तथ्य
कहा जाता है कि इस मंदिर के आसपास का क्षेत्र पहले धर्मरन्य था। रावण का अंत करने के बाद भगवान राम ब्रह्महत्या से मुक्ति के लिए धर्मरन्य आए थे और यहीं पर व्रत, हवन किया था। श्री राम ने एक नगर भी बसाया था, जिसे ही मोढेरा कहा गया। उन्होंने जहां हवन किया था, वहीं पर सूर्य मंदिर की स्थापना की गई थी।