बीकानेर। जाम्भाणी साहित्य अकादमी बीकानेर द्वारा आयोजित ज़ूम और अपने फेसबुक पेज पर रविवार 15 मई को ‘पाश्चात्य दर्शन के परिप्रेक्ष्य में जाम्भाणी साहित्य’ विषय पर एक ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता इंदौर (मध्यप्रदेश) निवासी सुप्रसिद्ध चिंतक और लेखक श्री नर्मदाप्रसाद उपाध्याय ने अपने व्याख्यान में बताया कि यूनान के महान दार्शनिक सूकरात,प्लेटो, अरस्तू और थेलीज, पाइथागोरस, जेनो, जॉर्जियस और सॉक्रेटीज आदि की विचारधारा ही पाश्चात्य दर्शन का मूलाधार है। इसी को आधार बनाकर पश्चिमी जगत में विद्वानों ने आगे कार्य किया है। इस दर्शन का विश्व में व्यापक प्रचार-प्रसार इसलिए हुआ की इसके मानने वाले देश सर्वसुविधासंपन्न और शक्तिशाली थे। विश्व विजेता सिकंदर महान इनका शिष्य था। प्रचार-प्रसार के अभाव में भारतीय दर्शन सिमटकर रह गया। जाम्भाणी दर्शन तो और भी गुमनामी और अंधेरे में रह गया। उन्होंने बताया कि अभी में एक ‘उत्तर-आधुनिकतावाद’ विषय पर आयोजित सेमिनार में भाग लेने के लिए विदेश में था तो मैंने वहाँ जाम्भाणी दर्शन की बात की तो सभी बहुत प्रभावित हुए और उनकी इसके बारे में और जानने की उत्सुकता जागी। पाश्चात्य और जाम्भाणी दर्शन में एक मूल अंतर यह की जाम्भाणी दर्शन कहता है कि आप प्रकृति की पूजा करके परमेश्वर को पा सकते हो और अपना तथा जगत का जीवन सुखमय बना सकते हो, जबकि पाश्चात्य दर्शन के लिए तो यह कल्पना के बाहर की वस्तु है। उपाध्यायजी ने कहा की जाम्भाणी दर्शन बहुत विलक्षण है।यह भारतीय छ: दर्शनों और प्रस्थानत्रयी की बात करता है,यह निर्गुण ब्रह्म की भी बात करता है, सगुण अवतारवाद की भी महिमा गाता है।यह माला लेकर बैठकर भजन करने की बात नहीं कहता,यह तो अपने दिनचर्या के कामकाज करते-करते नामजप और नामी के स्मरण की बात कहता है। उन्होंने जाम्भाणी साहित्य अकादमी और गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय हिसार की शोधपीठ का आह्वान किया कि वह इस दर्शन जो केवल आचरणीय बनकर रह गया इसके दार्शनिक पक्ष का प्रचार नहीं हुआ,उसका व्यापक प्रचार-प्रसार करे। उन्होंने अपने उद्बोधन में जाम्भाणी साहित्य के मूर्धन्य विद्वान स्वर्गीय डॉ हीरालाल माहेश्वरी का स्मरण करते हुए कहा कि उनके शोधकार्य से जाम्भाणी साहित्य को विद्वत जगत में पहचान मिली थी।
जाम्भाणी साहित्य अकादमी के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ बनवारीलाल सहू ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि उपाध्यायजी के सुझावों के अनुसार अकादमी विभिन्न दर्शनों के साथ जाम्भाणी दर्शन के तुलनात्मक अध्ययन के लिए प्रयासरत है और कईं विश्वविद्यालयों में शोधकर्ता जाम्भाणी साहित्य पर शोधकार्य कर रहे हैं। श्री उपाध्याय जी भी ‘पाश्चात्य दर्शन के परिप्रेक्ष्य में जाम्भाणी साहित्य’ जो पुस्तक लिख रहे हैं।उनको सुधी पाठकों को बेसब्री से इंतजार है। इनकी एक पुस्तक ‘जुग जुग जीवे जम्भ लुहारूं’ को पाठकों ने बहुत सराहा था।
जाम्भाणी साहित्य अकादमी के अध्यक्ष आचार्य कृष्णानंदजी ऋषिकेश ने आशीर्वचन कहा। डॉ विपलेश भादू अबोहर (पंजाब) ने सभी विद्वानों, आयोजकों और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया। श्री पूनमचंद पंवार हरदा (मध्यप्रदेश) ने मंच संचालक किया। तकनीकी प्रबंधक डॉ लालचंद बिश्नोई बीकानेर और कार्यक्रम संयोजक अकादमी प्रवक्ता विनोद जम्भदास रहे।