बीकानेर नगर निगम के अभी तक के सभी महापौर भले कहलवा दिए है। महापौर सुशीला कंवर और आयुक्त गोपाल राम बिरधा का विवाद विकृत लोकतंत्र का पूरे प्रदेश के समक्ष ताजा उदाहरण है। विवाद इतना विकृत रूप ले चुका है कि आयुक्त और महापौर पद की मर्यादा भी तार तार हो गई है। गुंडागर्दी, अफसरशाही का भोंडा रूप जनता के सामने आने लगा है। जनता में महापौर और आयुक्त के प्रति कितना नकारात्मक भाव है कहीं भी इनकी चर्चा करके जान सकते हैं।आयुक्त कोई दूध के धुले नहीं हैं उन पर सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं का मोहरा बनने का आरोप हैं। वे महापौर के खिलाफ जो भी कर रहे हैं वो प्रतिशोध की भावना से प्रेरित है। कम महापौर और उनके समर्थक भी नहीं हैं वो जो कर रहे है वो लोकतंत्र की अच्छी तस्वीर तो नहीं हो सकती। उनकी भी छवि तो धूमिल हो ही रही है।उनके आकाओं और समर्थकों के भी दाग लग रहे हैं। बीकानेर नगर निगम के प्रति आम धारण है कि अच्छा काम नहीं हो पा रहा है। जनता परेशान है और नगरीय विकास अवरूद्ध हो गया है। आयुक्त ने नगर निगम सचिव हंसा मीणा के साथ महापौर और उनके सहयोगियों के व्यवहार की पुलिस रिपोर्ट, उनके स्तर पर जांच रिपोर्ट निदेशक स्वायत्त शासन विभाग को भेजकर महापौर के निलंबन की अनुशंसा की है। निगम में कार्मिकों के दो गुट बन गए। जो भी खींचतान है उसका नुकसान जनता को भुगतना पड़ रहा है। महापौर और आयुक्त अपने व्यवहार और कृत्तव्यों में विफल रहे हैं। उनका अहंकार और स्वार्थ के टकराव का खमियाजा जनता क्यों भुगते? सरकार इस ड्रामा की मूक दर्शक क्यों बनी हुई है? बीकानेर नगर निगम की व्यवस्था पूरी तरह ट्रेक से बाहर हो गई है। अब अंकुश तो लगाओ सरकार!