

-उनके बड़े कद का राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस को मिल सकता है फायदा
– भारती भाई की कलम से
जिस तरह भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस में फूट डालने के लिए ज्योतिरादित्य को कांग्रेस का बागी बनाकर भारतीय जनता पार्टी में सम्मिलित किया और केंद्र में मंत्री बनाया उसका बदला कांग्रेस अब ले सकती है समय आ गया है उठापटक की राजनीति में मुंहतोड़ जवाब देने का भारतीय जनता पार्टी ने ज्योतिरादित्य को तोड़कर न केवल दलगत राजनीति में उथल-पुथल मचाई थी बल्कि परिवार में भी सीधे तौर पर कलह पैदा कर दी।पूरे देश के राजनीतिक हलकों को बखूबी जानकारी है कि राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की बीजेपी आलाकमान से ठनी हुई है। मैं पक्के तौर पर तो नहीं कह सकता लेकिन पूरा घटनाक्रम बताता है कि सचिन पायलट के माध्यम से जिस तरह राजस्थान की गहलोत सरकार को तोड़ने की असफल कोशिश की गई उसमें अप्रत्यक्ष रूप से गहलोत सरकार को बचाने हेतु श्रीमती वसुंधरा राजे का सहयोग व सहानुभूति न हुई होती तो शायद प्रदेश की गहलोत सरकार बच नहीं पाती। अब क्योंकि एक बार यों लग रहा है कि मंत्रिमंडल के विस्तार के पश्चात सचिन व गहलोत दोनों खेमे संतुष्ट हैं होना भी चाहिए क्योंकि राजनीति को जिस तरह से भी संभव हो सकता था संतुलित करने की कोशिश की गई और इसे राजनीतिक हलकों में सम्मान की दृष्टि से भी देखा जाना चाहिए क्योंकि राजनीति के चाणक्य अशोक गहलोत ने पूरी सूझबूझ के साथ मंत्रिमंडल में हेरफेर व विस्तार इस तरह से किया कि सभी को पूरा प्रतिनिधित्व मिले इससे कांग्रेस की अंतर्कलह समाप्त होती लग रही है।


2023 में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव में अब 2 वर्ष रह गए हैं 1 वर्ष तक शायद कांग्रेस पूरी शांति के साथ यहां सत्ता में काबिज रह सकती है इसके पश्चात चुनावी वर्ष शुरू हो जाएगा और कोई भी नया व्यक्ति शायद ही मुख्यमंत्री की दावेदारी करने आगे आएगा क्योंकि जनता के किसी भी विरोध या असफलता का ठीकरा अपने सर कोई नहीं फुडाना चाहेगा। यानि कहने का मतलब है कि राजस्थान में अब कांग्रेस को कोई खतरा नहीं है हां यह भी सर्वविदित है कि राजस्थान में यदि आज कमजोर है तो भारतीय जनता पार्टी है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी का एक बड़ा धड़ा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ है जिस के महत्व को नकारा नहीं जा सकता पिछली बार 200 में से 120 सीट अमित शाह ने दी थी जिसमें केवल 13 प्रत्याशी विजई रहे थे इसके उलट श्रीमती वसुंधरा राजे ने 80 लोगों को टिकट दिया था जिसमें 60 लोग जीत कर आए थे।एक सकारात्मक पहलू यह भी है कि वसुंधरा राजे मध्य प्रदेश से हैं जहां सदियों से उनके पूर्वजों का शासन रहा मध्य प्रदेश से ही अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बना यदि वसुंधरा राजे केंद्र की राजनीति में आती हैं तो कांग्रेस को मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में भी फायदा होना सुनिश्चित है इसी तरह भारतीय जनता पार्टी वसुंधरा राजे की मां श्रीमती विजय राजे सिंधिया की स्थापित की हुई है उन्होंने अपने लहू और श्रम जल से इसे सींचकर राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाया था अब यदि कांग्रेस में वसुंधरा राजे आती हैं तो जो फायदा अकेले ज्योतिरादित्य के माध्यम से स्वर्गीय श्रीमती विजय राजे सिंधिया कीर्ति का बीजेपी में मिलेगा उसका कुछ ना कुछ हिस्सा वसुंधरा राजे के माध्यम से फिर कांग्रेस को भी मिलेगा। इससे भी सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि राजस्थान मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय राजनीति में यदि भारतीय जनता पार्टी की कोई बड़ी ताकत है तो वह वसुंधरा राजे हैं। उनके बगैर चाहे भारतीय जनता पार्टी कितने ही नए नए प्रयोग करे वह सब महत्वहीन ही साबित होंगे। ऐसी माकूल परिस्थितियों का आकलन करते हुए कांग्रेस को चाहिए कि वसुंधरा राजे जैसी कद्दावर नेता को अपने साथ ले बेशक उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ले या आगे आने वाले लोकसभा चुनाव हेतु प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में सामने लाए यदि दोनों में ऐसा कुछ हो सका तो राजनीतिक समीक्षकों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी बैशाखियों का सहारा लेने को विवश हो जाएगी क्योंकि बढ़ते हुए डीजल पेट्रोल के अनुचित दामों काले कृषि कानूनों और बहुत सारी असफलताओं के चलते भारतीय जनमानस पूरी तरह भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मतदान करने का मानस बना चुका है हाल ही में हुए देश भर में उपचुनाव ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि देश का आवाम किसी भी हालत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों से खुश नहीं है ऐसे में कांग्रेस को कतई ऐसा नहीं मानना चाहिए कि देश का जनमत उसे स्वीकार नहीं करेगा।
