बीकानेर नगर निगम चुनाव में भाजपा की टिकट देने का अधिकार यहाँ के सांसद और केन्द्रीय राज्य मंत्री अर्जुन मेघवाल को पार्टी ने सौंपदी थी, हालांकि औपचारिकता पूरी करने के लिए टिकट की माँग करने वालों की छानबीन करके पैनल तैयार करने के लिए बाकायदा भाजपा नेताओं की कमेटी बनाई गई थी मगर वास्तविकता यह है कि इस कमेटी के पास कोई अधिकार नहीं था और ना ही दिमाग लगाने की छूट थी, मात्र अर्जुन मेघवाल के दिये नामों को पैनल में जोड़ने की बाबू गिरी थी । हालांकि यह कहने से ही कोई परहेज नहीं है कि पैनल बनाने का काम जिन निष्ठावान लोगों को सौंपा गया वह भाजपा के कम अर्जुन मेघवाल के ज्यादा वफादार माने जाते हैं, और उनके हाथों पैनल का काम सौंपते ही भाजपा की जड़ों से जुड़े कार्यकर्ताओ को आभास हो गया कि यह कमेटी भाजपा के प्रति कम अर्जुन मेघवाल के प्रति ज्यादा निष्ठा रखने वालो की वरीयता देखकर पैनल बनायेगी, कहा जाता है कि उनकी सोच सही साबित हुई, पैनल में भाजपा के प्रति वफादारी रखने वालों को दर किनार करके अर्जुन मेघवाल के प्रति ज्यादा निष्ठा रखने वालो की वरीयता देखकर उसी हिसाब से पैनल बनाया गया ।

पैनल व टिकट बंटवारा देखकर भाजपा की जड़ों से जुड़े कार्यकर्ता ओ ने खूब माथा पीटा और पार्टी हाई कमान के सामने रोष प्रकट करके विरोध भी दर्ज करवाया, मगर सारा व्यर्थ गया, जयपुर-दिल्ली रोते गये ओर रोते ही वापस लौट आए, किसी ने उनकी फरियाद नहीं सुनी,अर्जुन सब पर भारी पड़े ।

यह सच्चाई है कि अर्जुन के तीर के वह भाजपा के सारे नेता शिकार हो गये, जो पार्टी के प्रति ज्यादा और अर्जुन के प्रति कम निष्ठावान थे, कुल मिलाकर अर्जुन मेघवाल ने अपने संसदीय क्षेत्र के भाजपा नेताओं को प्रत्यक्ष रूप से टिकटों के बंटवारे के माध्यम से संदेश दे दिया कि अपने संसदीय क्षेत्र में अर्जुन ही भाजपा है, उनका फैसला अंतिम होता है, गलत हो तो भी सही है, चाहे प्रदेश हो या देश का पार्टी हाई कमान, अर्जुन के फैसले को बदल नहीं सकते ।

बीकानेर के एक वरिष्ठ भाजपा नेता जो कि पार्टी की जड़ों से जुड़ा हुआ है, उसके इस कथन में काफी सच्चाई नजर आती है कि ‘आई तो छाछ मांगने थी, बन गई घर की मालिकन’ याने अर्जुन मेघवाल दस साल पहले सरकारी नौकरी छोड़कर बीकानेर संसदीय क्षेत्र से भाजपा की टिकट प्राप्त करने में कामयाब हो गये थे, और पार्टी की लहर के झोंके व निवर्तमान सांसद के जन विरोध के चलते जीतकर संसद पहुंच गये थे,और अपनी कला के माध्यम से पार्टी उच्च नेताओं से गहरे संबंध बनाकर बीकानेर संसदीय क्षेत्र के उन पार्टी वरिष्ठ नेताओं पर बाण छोड़कर घायल करते गये जिनके प्रति अंदेशा था कि यह आगे चलकर कभी भी उनकी राह के रोड़े बन सकतें है, यह कहना गलत नहीं होगा कि अर्जुन के बाण के शिकार लगभग वह भाजपा नेता हो गये जो जो कभी भी उनके लिये सिरदर्द बन सकते थे, कईयों को तो मजबूरन पार्टी छोडनी पड़ी और कई घायल होकर अर्जुन के मुकाबले के लायक भी नहीं रहे, इस तरह अर्जुन ने बीकानेर संसदीय क्षेत्र की समूची भाजपा पर नियंत्रण करके एक छत्र राज कायम कर लिया, और लगभग सभी जी हजूरियो को संसदीय क्षेत्र में पार्टी की कमान सौंप दी, अर्जुन का फैसला चाहे गलत हो या सही, उस पर मुहर लगाना संसदीय क्षेत्र के पार्टी पदाधिकारियों की मजबूरी होती है, अन्यथा उनकों पता है कि अर्जुन उनको औकात बताने में रियायत नहीं देंगे ।
कहने को तो नगर निगम चुनावों में वार्ड पार्षदो को भाजपा की टिकटों का बंटवारा आवेदकों की योग्यता व पार्टी की वरिष्ठता को ध्यान में रखकर किया गया है, इस बात में भी शक नहीं पार्टी नियमों अनुसार टिकट छानबीन इत्यादी कमेटियों बनाकर औपचारिकता तो सारी निभाई गई, मगर यह भी वास्तविकता है कि कमेटियों ने सिर्फ बाबूगिरी का काम करके औपचारिकता पूरी की, टिकट तो उन्ही आवेदकों को मिली जो अर्जुन की ‘गुडबक्स’ में है, पार्टी की जड़ों से जुड़ी वरिष्ठता और योग्यता का महत्व ही खत्म कर दिया ।

बीकानेर संसदीय क्षेत्र में भाजपाई चाहे भय से आशंकित होकर खुले रूप से नहीं बोले, मगर दबी जुबान में तो यह कहते ही है कि पार्टी में वरिष्ठता व निष्ठा तथा योग्यता की पहचान खत्म होकर ‘गुलामी “प्रथा” का चलन सर्वोपरि हो गया है, और अर्जुन बिना आधार व जमीन से जुड़े नेताओं के बहकावे में आकर पार्टी के वरिष्ठ व जमीन से जुड़े नेताओं को “बाण” से घायल कर रहे हैं, यह भविष्य में पार्टी के लिए खतरनाक साबित हो सकता है ।
बीकानेर संसदीय क्षेत्र में भाजपा का भविष्य क्या होगा, यह कहना तो अभी मुश्किल है, मगर यह सच्चाई है कि अभी तो अर्जुन के बाण निशाने पर लग रहे है ।