—असम में गैस कुएं में लगी आग
— एक गैस कुएं ने बदल दी जिंदगी
असम।देश के उत्तर पूर्वी राज्य असम (Assam) के एक बड़े क्षेत्र में जनजीवन मुश्किल होता जा रहा है. असम के बागजान क्षेत्र में करीब 150 दिनों से आग लगी हुई. इसी साल 9 जून को हुए एक गैस धमाके के बाद राज्य सरकार के ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) के एक गैस कुएं में आग लग गई थी. 150 दिनों के बाद भी यहां लपटें उठ रही हैं और ये भारत में अब तक की सबसे लंबी आग (Fire) बन चुकी है. आग बुझाने में तीन लोगों की मौत हो गई थी और 3000 लोगों को अपना घर छोड़कर कैंप में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
हालांकि कई लोग अपने घरों में लौट चुके हैं लेकिन जिनका घर आग के नजदीक है वो अभी भी अस्थायी कैंपों में रहने को मजबूर हैं. ओआईएल ने कहा है कि आग में अपना घर खोने वाले 12 परिवारों को 25-25 लाख रुपए का मुआवजा दिया गया है. इसके अलावा जो परिवार कैंपों में अपने घरों से दूर रहने को मजबूर हैं, उनके खर्चे के लिए कंपनी हर महीने 50 हजार की सहायता राशि जारी रखेगी.
भारत में इससे पहले भी इस तरह के कई हादसे देखने को मिल चुके हैं. 1967 में असम के सिवसागर जिले में ओएनजीसी के कुएं में लगी आग कड़ी मेहनत और तमाम प्रयासों के बावजूद 90 दिनों तक चली थी. आन्ध्र प्रदेश में ओएनजीसी के ही प्लांट में लगी आग को बुझाने में 65 दिन लगे थे. 2005 में असम के डिकोम क्षेत्र में ओआईएल के कुएं में लगी आग 20 दिनों बाद बुझी थी.
सेहत और प्रकृति पर असर
इस आग से न सिर्फ स्थानीय लोगों को परेशानी हो रही है बल्कि पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों को भी नुकसान पहुंच रहा है. आग से प्रभावित पूरा क्षेत्र घने जंगलों, संरक्षित जल स्रोतों का केंद्र है. इस क्षेत्र में मगुरी-मोटापुंग वेटलैंड्स स्थित है, जिसमें दुर्लभ प्रजाति की गंगा डॉल्फिन पाई जाती हैं. आग के धुएं का असर इन सभी प्राकृतिक धरोहरों पर पड़ रहा है. खबरों की मानें तो एक गंगा डॉल्फिन की मौत भी हो चुकी है. प्रदूषण के चलते वेटलैंड का पानी दूषित और पीला भी होने की खबर है.
इस धमाके के बाद कुएं से प्रोपेन, मीथेन, प्रोपलीन और दूसरी गैसों का एक मिश्रण हवा में 5 किमी के दायरे में फैल गया. इसके चलते स्थानीय लोगों को सेहत से जुड़ी कई तरह की दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा, जैसे आंखों में जलन, सिरदर्द, उल्टी. आग से निकलने वाली राख, धुआं और गैस फसलों, जमीन और पालतू जानवरों को भी प्रभावित कर रहे हैं. आने वाले समय में इसका असर खेती के लिए भूमि की उपजाऊ क्षमता पर भी पड़ सकता है.