

भारत की जनता बहुत भावुक है और भगवान के नाम से तो बहुत सेंटीमेंटल है। कई चालाक और लालची व्यक्ति इसी बात का फायदा उठाते हैं और जब जहां मौका मिलता है कपड़े या थर्माकोल से मंदिर का एक ढांचा बनवा कर अस्थाई रूप से मिट्टी या प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी भगवान की मूर्ति (जिन्हें हम अक्सर झांकियों में देखते हैं) वहां रख देंगे और प्रचार प्रसार करके जनता को वहा बुलाने के लिए गीत भजन संगीत करेंगे और वही पैसे इकट्ठा करेगे। सात आठ दिन बाद मंदिर का ढांचा हटालेगे और भगवान की मूर्ति कहीं भी रख देंगे जिस पर धूल मिट्टी मकड़ी के जाले जमा होते रहेगे। फिर कोई और समय आएगा तो साफ सुथरा, रिपेर सिपेर, कलरिंग करके फिर कहीं और उस मूर्ति को लगाकर पैसा इकट्ठा करने का सिलसिला चलता रहेगा।
आपसे पूछना चाहता हूं क्या हमारे यहां पक्के मंदिरों की कमी है क्यों हम ऐसे लालची लोगों के आकर्षण में फंसते हैं और अपनी भावना का ठेस पहुंचाते हैं। वैसे भी हमारा बहुत मन दुखता है जब हम गणेश चतुर्थी के बाद गणेश जी और नवरात्रि के बाद नवदुर्गा की इन मूर्तियों का बुरा हश्र देखते है।
यदि यह सब सिर्फ भगवान मे आस्था जगाने के लिए हो तो इसमें कोई बुरा नहीं पर यदि यह पैसा कमाने का जरीया है तो यह समाज के लिए बहुत दुखदाई है।
अशोक मेहता, इंदौर (लेखक, पत्रकार, पर्यावरणविद्)