– किसानों की 26 जनवरी को प्रस्तावित परेड के कारण या राहुल गांधी की प्रेस कॉन्फ्रेंस के कारण ?

19 जनवरी मंगलवार को कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसानों को समर्पित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, इस मौके पर उन्होंने किसानों के नाम समर्पित एक पुस्तक का भी विमोचन किया ।
20 जनवरी बुधवार को आंदोलनकारी किसानों और सरकार के नुमाइंदों के बीच एक बार फिर से वार्ता का सिलसिला जारी रहा, वार्ता मैं किसानों की समस्या का समाधान बीच का रास्ता के रूप में निकलकर सामने आया की कृषि कानूनों पर डेढ़ साल के लिए विरालगा दिया जाए सरकार ने यह प्रस्ताव किसानों को दिया, सरकार के द्वारा दिए गए इस प्रस्ताव के बाद देश के अंदर राजनीतिक हलचल तेज हो गई और चर्चा होने लगी कि क्या सरकार किसान आंदोलन के सामने झुकती नजर आ रही है, या सरकार आंदोलनकारी किसानों के द्वारा 26 जनवरी को प्रस्तावित किसान परेड के कारण डर गई है, दबी जुबान खबर यह भी सुनाई दी की सरकार राहुल गांधी की आक्रामक और दमदार प्रेस कॉन्फ्रेंस के कारण डर गई है क्योंकि राहुल गांधी ने पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए स्पष्ट कर दिया है कि सरकार को कृषि बिल हर हाल में वापस लेने होंगे ।

कृषि कानून और आंदोलनकारी किसान सरकार की तरफ से किसानों के साथ वार्ता पर पहली नजर रख रहे विश्लेषक, शायद आठवें दौर की वार्ता की विफलता के बाद हुए उस डेवलपमेंट की तरफ अपना ध्यान आकर्षित शायद नहीं कर रहे जो करना चाहिए ! किसान आंदोलन का प्रमुख चेहरा गुरनाम सिंह चंदू नी की अचानक से कांग्रेस सहित विपक्ष की अन्य पार्टियों के साथ बैठक हुई जिसको लेकर मीडिया में चर्चा और डिबेट होने लगी की आंदोलनकारी किसान नेताओं में दरार पड़ गई, दरअसल यह दरार नहीं बल्कि सरकार के लिए शायद यह एक संकेत था की यदि सरकार ने हमारी बात नहीं मानी तो हम विपक्ष का सहयोग भविष्य में लेंगे ? जबकि आंदोलनकारी किसान अभी तक किसी भी राजनीतिक पार्टी का सहयोग लेने से कतरा रहा है ,गुरनाम सिंह के अचानक कांग्रेस के नेता से मिलने पर संयुक्त मोर्चा के अंदर भी विवाद इसी बात को लेकर था की जब देश के किसी भी राजनीतिक दल से आंदोलन में सहयोग नहीं ले रहे ऐसे में गुरु नाम सिंह विपक्ष के नेताओं से क्यों मिले ?कुछ देर तक भ्रम की स्थिति भी बनी लेकिन भ्रम की स्थिति ज्यादा समय तक नहीं रही, किसान नेताओं न एकता का परिचय दिया और असमय ही खड़े हुए विवाद को आपस में मिल बैठकर खत्म कर दिया, लेकिन दूसरे ही दिन कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की जो किसानों के लिए समर्पित थी उसमें राहुल गांधी ने तीन कृषि बिलों के खिलाफ आक्रामक तेवर दिखाए !
भाजपा सरकार को आंदोलनकारी किसानों के द्वारा 26 जनवरी को दिल्ली मे ट्रैक्टर मार्च निकालने का इतना डर शायद नहीं है जितना कि 29 जनवरी से चलने वाले संसद सत्र में विपक्ष के द्वारा कृषि बिलों को लेकर करने वाले हंगामे का डर है !
सरकार के द्वारा किसानों के सम्मुख रखे गए प्रस्ताव पर किसानों का संयुक्त मोर्चा क्या फैसला लेता है उसका इंतजार करना होगा लेकिन किसानों की समस्याओं को लेकर सरकार अब गंभीर चिंतन में है और वह समस्या का समाधान शीघ्र करना चाहती है यही वजह है कि सरकार ने बीच का रास्ता निकालते हुए किसानों के सामने प्रस्ताव रखा है कि तीनों बिलों को डेढ़ साल के लिए होल्ड पर रख कर समस्या का समाधान निकाल जाए , अनेक कृषि विशेषज्ञ और के किसान नेता जिसमें आर एस एस का किसान संगठन भी शामिल है इस प्रस्ताव को सही मान रहे हैं और आंदोलनकारी किसानों को अपनी हठधर्मिता समाप्त कर आज का रास्ता निकालने का सुझाव दे रहे हैं !बिल को होल्ड पर रख कर वार्ता करने की बात एक बार किसानों की ओर से भी सुनाई दी थी और यह बात सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से कही थी और सुप्रीम कोर्ट में 2 महीने के लिए इस पर स्टे भी लगाया, सरकार किसानों के सामने प्रस्ताव रख रही है कि तीनों बिलों को डेढ़ साल के लिए होल्ड पर रख कर समस्या का समाधान ढूंढें, लगता है अब सरकार किसानों की समस्या के लिए गंभीर दिखाई दे रही है किसान मानते हैं या नहीं इंतजार कीजिए !
देवेंद्र यादवकोटा राजस्थान